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शीत ऋतु - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

शीत ऋतु

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प्रभाकर दझिणायण से बढ़े उत्तरायण।
आया लोहड़ी ,मकर संक्रांति पर्व पावन।।

शीत ऋतु
दिनकर धनु से निकल कर ,करते मकर प्रवेश ।
होती भेंट पुत्र शनिदेव से कटते सारे क्लेश।।

नव उर्जा संचरित हो ,तन पाए नवस्फूर्ति।
खिचड़ी,लड्डू, तिल, मेवों से करें उदरपूर्ती।।

रंग बिरंगी पतंगें झूमे हर्षित नील गगन में।
नवल ऋतु का स्वागत मुदित तन-मन से।।

छंटा कुहासा,खिली धूप है,मधुर तराना कोयल गाए।
देव दिन विशेष शुभदायक 'देव दान' पर्व कहलाए।।

गीता परिहार
अयोध्या

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