लेखअन्य
मंदिर में दर्शन के बाद कुछ देर सीढ़ियों पर क्यों बैठा जाता है ?
हिंदू धर्म में एक परम्परा हैं कि किसी भी मंदिर में दर्शन के बाद बाहर आकर मंदिर की सीढ़ियों या अहाते में थोड़ी देर बैठना चाहिए और इस श्लोक को बोलना चाहिए।
यह श्लोक आज हमे मनन करना चाहिए और आने वाली पीढ़ी को भी बताना चाहिए। श्लोक इस प्रकार है: ~
"अनायासेन मरणम् , बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम् ,देहि मे परमेश्वरम्॥"
अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर न पड़ें, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हों चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं।
बिना देन्येन जीवनम् अर्थात् परवशता का जीवन ना हो। कभी किसी के सहारे ना रहना पड़े।ठाकुर जी की कृपा से बिना लाचार हुए ही जीवन बसर हो सके।
देहांते तव सानिध्यम अर्थात् जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। ठीक वैसे, जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर (कृष्ण जी) उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। और उनके दर्शन करते हुए भीष्म पितामह के प्राण निकले।
देहि में परमेशवरम्,हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना।
अतः दर्शन करने के पश्चात, कुछ देर मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर, ईश्वर से प्रार्थना करते हुऐ उपरोक्त श्र्लोक का पाठ अवश्य करना चाहिए।
हम भगवान की प्रतिमा के सममुख आंखें मूंद लेते हैं,जबकि भगवान का दर्शन सदैव खुली आंखों से करना चाहिए, ठाकुर जी को एक टक निहारना चाहिए,आंखें बंद क्यों करना, हम तो दर्शन करने आए हैं।
अतः भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का, मुखारविंद का, श्रृंगार का, संपूर्ण आनंद लें, प्रभु के निज-स्वरूप को अपने मन में बसा लें।
दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठें, तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किया है, उस स्वरूप का मन ही मन ध्यान करें।
मंदिर से बाहर आने के बाद, सीढ़ियों पर बैठ कर स्वयं की आत्मा का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें और अगर निज आत्मस्वरूप ध्यान में भगवान नहीं आएं तो दोबारा मंदिर में जाएं और पुन: दर्शन करें।