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कवितानज़्म
उम्र -ए-हयात हमें किताबी दौर से बाहर ले आती है, सबक किताब-ए-हयात के हमें खुद जिंदगी पढाती है! किसी मकतब का कोई उस्ताद कभी ना बता पाया, वोह बात "बशर" तजुर्बात -ए -हयात हमें बतलाती है! @"बशर"