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"पर"
कविता
मास्टरजी
प्रेम की परिभाषा
मां ने मुझको जन्म दिया,पर पिता ने मुझको पाला है ।
2020 तू क्यूं रुठा है रे?
करवा चौथ पर पति की व्यथा
परंपरा और आस्था
तुम होते तो बात ओर होती
पराया धन
चित्र पर आधारित प्रतियोगिता
इंसानियत की परिभाषा
मासूम परिंदे
स्त्री की अभिलाषा
पाप और पुण्य से परे
बेटे बहादुर होते हैं
धुंधलापन ------------------------ इस रात के घने अंधेरे में मैं देखना चाहता हूँ चारों ओर इस दुनियाँ का रंग रूप पर कुछ दिखता नहीं पर मन में एक रोशनी सी दिखती है | बस हर तरफ से नजरें हारकर बस उसकी तरफ मुड़ जाती है दिखती है वह दूर से आती हुई पर उस
ये परमेश्वर
एक नारी हूँ
पर हमें भी लिखना है
मेरे बाबू जी
कव्वाली-बच्चों के नैतिक मूल्यों पर
मैं हूँ हिन्दी सज रही माथे पर मेरे बिंदी
इंसान आज जमी पर आया है।
अन्तः परिचय
चालीस की देहरी पर
जोगन की यात्रा
शून्य से शिखर तक
बेटी हूं मैं : पराया धन ना कहना
देस विदेस की सैर
बेटी को पराया धन न कहना
जब कोई धोखा देता है
हम पास तो हैं पर साथ नहीं
माँ देवी पर हाइकु
एक नन्हीं परी
मेरी नन्हीं परी
सिमटते परिवार
गुरूर तुम पर.....
घायल परिंदा
नादान परिंदे
"चेहरे पर चेहरा"
सुरभित मुखरित पर्यावरण
तारे जमीन पर
दीपोत्सव
भैया दूज
ढोल की थाप पर
छठ महापर्व
पानी पर चलता है क्यों
तुम मिले
इक उजाले का नयन में आस होना चाहिए
ख़ुद पर विश्वास
घर
सबकुछ तो तय हैं ..
सैर देस परदेस की
क्यों चुप बैठो हो परमपिता ?
इन प्रश्नों की शरशय्या पर
यादें
जीवन का एक दिन सा भी
जो अपने है उनको पराया ना कर
अधरों पर मुस्कान
पर्पल कविता
कब तख
शीत ऋतु
शीत ऋतु
पराक्रम दिवस
एक नन्हीं परी
(राष्ट्रीय बालिका दिवस) गर मैं गर्भ में न मारी जाती...
खूंटी पर टंगी वर्दियां
खूंटी पर टंगी वर्दियां
तड़पती हूँ
माँ का स्पर्श
सियासत जरूरी है।
बचपन में
ना कर इतना गुमां अपनी कलम पर ऐ शायर
नस नस से गुजरती संवेदनाएँ
परिचय
परिवर्तन
फोन ऐ मोहब्बत
गरीबी और परायापन
मन में आता ताव
मौन स्वीकृति
साहस पर मुक्तक
चाँद छुट्टी परहै
चाँद आज छुट्टी पर है
अंतर्द्वन्द्व
*अधूरी कहानी"
मेरा परिवार
पराली हूँ मैं।
प्रेम और गलतफहमी
फूल के चेहरे पर
हाशिए पर सैनिक
प्रेम
जिंदगी
सड़कों पर बिखरी हुई यह विवशता
चेहरे पर मुस्कान आएगा
जय हिंद
एक नन्ही परी
परिवार
पेड़ बचाओ
पर्यावरण सप्ताह विशेष हाईकू
बरखा बरसी पर कलश खाली
पिता पर वर्ण पिरामिड
उसका होना
मेरे घर आई एक नन्ही परी
पंछी निराले रंगीले।
परछाईयाँ अगर बोल सकती
" चाय पर " 💐💐
चतुष्पदी मुक्तक ,,,,शिक्षक पर
मेरे बाबू जी
प्रेम की परिभाषा
बन के परिंदा
यशोधरा
ये शून्य ही सम्पूर्ण है
ये स्पर्श
मौन
परिवर्तन कहीं आस-पास है
सच्ची दोस्त
*प्यार अपने आप से कर.....*
दिल पर ज़रा हाथ रख दो
चल उस पर
कौन यहाँ पर...
विवाह के बाद
परिशुद्ध प्रेम
किस राह के हो अनुरागी
परछाईं
फिर से सतयुग भू पर लाओ
लोगों के चेहरे
नन्हीं सी परी
भारत रत्न
मेरा अल्प परिचय
आजकल मेरे महबूब सर पर पूरा आलम उठाए हुए हैं
कुछ लोग यूँ ही परेशान हैं
तेरी यहाँ पर याद किसे रहती है
तू ख़ुद यहाँ पर बशर जबतक किसीके काम का नहीं
अनेक सैय्याद एक परिंदा
सियासत में
परियों की शहजादी
सु पंथ पर चले जो
सालती है बशर हमको येह ख़ामोशी औलाद की
आदमी परेशान-सा रहता है
गुड़िया है मोमकी या बनी फौलाद की
सुधार आगे के लिए परिवेश
असल जिंदगी बशर हर तर्ज़ ओ तक़रीर से परे होती है
कमाल तो है मग़र बुलंदियों पर टिके रहने
चांद पर बसने की बात करते हैं
प्रेम पर बलिहारी
तहरीर-ए-मुक़द्दर लिख दी है बशर खुदा ने हमारी पानी पर
समझें पर्व का मर्म
थोड़ी-सी जरुरतों वाले घर की रहगुज़र पर
ओ साथी रे
मातृभूमि
कर्मों के बल पर बदल गए
*पीठ पर वार नहीं करते*
*पानी पर तहरीर*
*ए'तिबार खुदपर ही रहा नहीं*
लीजिए प्रेम का अवलंब
परिवार
क्या तेरा, क्या मेरा !!
कवि का परिचय
माटी का तेरा खिलौना
अधिकांश होते हैं गुमराह
*यहाँ पर नहीं हूँ मैं*
पर्दा 🥹
सीतमगार 🥺
मंजिल-ए-मक़्सूद
बुलंदी पर बने रहना और बात है
सरपर ले लिया पत्थर उछालके
किस मुकाम पर आ गए हैं हम
*सरपर कुछ नहीं आस्माँ के सिवा*
चलते बने लोग बशर खाक डाल कर कब्र पर
अपनी पसंद की रहगुज़र हम निकलें
*खजूर पर लटके*
खामियाँ हर कहीं होती हैं
गुरेज कर जरा परहेज रख
वोह फ़ना हो जाते हैं सचके हकपर खड़े रहने में
पैरों पर खड़ा नहीं होता
आमाले-कमाल तेरा तुझपर है
बीते बरस की बातें पुरानी कहानी हुई
टिके हैं कैसे पांव आसमान के जमीन पर
आदमी, आदमी की बू से परेशाँ है बहुत
"सफलता के शिखर"
हरसूरत हरसू हरशय के हालात पर लिख
बर्फ़ पर घर बसाने लगे हैं
सफ़रपर तो निकलना पडेगा
आ गए मां-बाप दहेज में
गैरों और बेगानों पर भी ऐतिबार किया
ख़ामुशी पर सवाल खड़ा
मरतीं आ कर साहिल पर
ताकीद परेशान करती है
इन्सान बेसबब परेशान रहता है
कहे अश्आर तमाम मग़र अपनेही शिफ़ा-ए-मर्ज़ पर
बुर्के पर नक़ाब लगाकर आया
तुम्हारी परछाई दिखाई देती हो
आदमियत खोने पर
इरादा अगर हम पर छोड़दो
जीहुजूरी का नाफरमान हूँ मैं
परेशानियाँ हर-बात में
घरोंदे राब्तों के रेत पर
ना हम को कोई शिकायत है
उनपर ऐतबार नहीं किया जा सकता
अपने आप पर ए'तिमाद ओ एहतराम की इब्तिदा करें!
सच से परेशानी है
तक्लीफ़ में परिवार साथ हो
महाशिवरात्रि
एक परिंदा
कौन है तेरा मेरे सिवा यहाँ पर
रिश्ते खतरे में
मुकद्दर है 'बशर' का परेशाँ होना
वीर चरणों के स्पर्श से...
परिंदे के दिल से कफ़स निकालना है
इन्सानियत पर सबका अधिकार होता है
क्रोध
ऊपर वाला सब देखता है
आदमी परेशान रहता है
आख़िर डूबना है शबो-शाम होने पर
भाईचारे से है हमारी हस्ती
दौलत से परखने लगे हैं
मंज़िल ख़्वाब नज़र आने लगे
मज़हब की दीवारों से ऊपर
खौफ़ कितना मासूम परिंदों को
परिंदा कहीं भी जाए शामको वहीं लौट आएगा
मजदूर दिवस
औलाद मा-बाप से बड़ी नहीं हो सकती
उम्मीद पर सारी दुनिया टिकी है
रक़ीब भो नहीं पर वो मिरा हबीब भी नहीं
परेशान कर गया 💔🥀
रहा नहीं वक़्त रौशनाई का
दिलके काशाने में हमारे सनम हैं
बूढा हो गया होता अगर मां का सर पर हाथ नहीं होता
ज़मीन पर चल कर देखो
अंदेशा न था साजिशों के राज पर
तैयार सुख-दुख में इक आवाज़ पर
मुख़्तलिफ किरदार
मालिक-वालिक कोई नहीं
हसरतों के पगडंडियों पर बढ़ने लगा हूं.....
तुमने रुख़सार पर अपने ये जो तिल लगा रक्खा है
रास्वता क़्त पर नहीं दिखाया
सपने का प्रतिबिंब हृदय पर अब-तक छाया......
पता उसको भी है अपनी जात का
मतलब-परस्त लोगों का रिश्ता बेमानी होता है
शजर बड़ा उदास हुआ
धर्म जात और परिवार की परवाह है
उसी का आस्तां ज़रूरी था क्या
चाहे जिस घर जा बैठे
आप पर हमें ऐतबार है
वही दूर हैं जो सबसे क़रीब हैं
रब पर भी भरोसा नहीं होगा
मदहोशी जैसे हो गए हैं
दुआ में हम क्या मांगें
दिल लगाने पर भी नहीं लगता बशर तिरे शहर में
दिल लगाने पर भी नहीं लगता बशर तिरे शहर में
एक व्रक्ष तुम लगाओं
सरहद पर वीर जवान
कर्मों का असर किरदार पर दिखता है
खाली मत बैठो घर पर
वही तुम पर फिदा है
लोग क्या कहेंगे
सिफ़त हज़ार अवगुणों पर भारी है
दीनो-ईमान वाले यहाँपर अक़्सर नाखुश रहते हैं
हमारे हुनर का ना कहीं पर नामोनिशान था
बर्ताव और रवैय्या औलाद का
नसीहतों पर अम्ल किया करो
खुदको आस्मान पर नहीं रखा हमने
जेरो-ज़र पर नज़र रखता है @"बशर"
आस्माँ में आशियाँ नहीं होता
क़ाबिलियत पर ग्रहण लग जाता है
दुश्मनों की चढ़ छाती पर-देशभक्ति कविता
अपनी कमियों पर भी गौर करना
Pehchano mujhe
परिणीता
दिल पर कोई गहरी बात लग जाती है
सरमाये लगते हैं
पराये होकर भी अपने लगते हैं
देश के रास्तों पर शूल
सूरज भी उफ़क पर उतर आता है
रुह ने भरी है परवाज़
सुख दुःख
किसी और दरगाह पर जा कर करें दुआ
अक़्सर परेशान रहा करते हैं
रंजीदा हर शख़्स के सूरते-हाल पर संजीदा हो जाना हरदम उनका
क्या अबकभी कोई न बसेगा सूनीपड़ी जमींपर
मलामतें बड़े-बड़ों को बेपर्दा बेनक़ाब कर देती हैं
मुफ़लिस का सुकून तो देखो सड़कों पर जाकर
किनारे पर खड़े- खड़े दरिया पार नहीं होता
कोई पराया कोई अपना नहीं रहता
लबों पर नहीं तबस्सुम की लकीर
काबू अपनी जुबाँ पर हर-सूरत रखिए
मसर्रतें जीत के दीदार की
क़िस्मत पर किसीका नाम नहीं लिखा होता
अपने पराये का पता लग जाता है
हज़ार किन्तु लगाये हैं इक हां के साथ
फोन पर बात होगई मान लियाकि मुलाक़ात होगई
किसी बशर पर यक़ीन नहीं रहा
ज़ौक़-ए-परवाज़ केलिए खुला आसमान है
डूबेंगे सभी साहिल पर आकर
अपनी क़ाबिलियत पर भरोसा किया करो
माटी से शुरू माटी पर ख़त्म बात हयात की
हकीक़त पर शक है
अजूबा यहाँ पर नहीं 'बशर' कोई इकलौते हैं
इन्सान क्यूँ इतना परेशान रहता है
ऐतबार हमारा हम पर हो
ज़िंदगी को हांकना पड़ेगा उसके हालपर
मुसीबतें खुशियों पर तारी रहती हैं
हम तपती रेतपर ही बैठेहुए देखते रह गए
वो ना आने पर अड़ी हैं
उसके चाहे बग़ैर कहींपर पत्ता नहीं हिल सकता
ध्यान सब पर रहता है बड़े सरकार का
अदावतों पर उतारू हो रहे हैं
कहीं भटक न जाएं हमारे क़दम
पतंग हौसले की "बशर" रख सदा परवाज़ पर
किराए के मकान
परवरिश में ऐहतियात भी ज़रूरी है
इन्सान ग़लत रस्तेपर चल पड़ता है अक़्सर
कहानी
फ़िक्र
"बातों के परिन्दे"
"समय की रेत पर पलता प्रेम"
किसान की माँ - 2
दादी की परी
दादी की परी
हैप्पी वाला बर्थडे
कहानी औरत की
रस्सी जल गई पर बल नहीं गया
परी और टूटू की दोस्ती
वार्ड नम्बर -17
सब पर पानी फिर गया
सब पर पानी फिर गया
मैच्युरिटी
अक्ल खूंटी पर
शीर्षक- बरसात की एक रात
एक हाथ दोस्ती का
चाक पर जिंदगी
पति परमेश्वर
माँ की सीख
"प" से "म" तक
अभागे की परिभाषा
समाधान
मैचिंग मैचिंग
अपराजिता
परवरिश की कीमत
पराई बच्चियां
छठ पर्व
भुलक्कड़
क्यूँ बुलाते चाय पर ?
वह परी
ठिठुरन
अब मायके नहीं जाऊँगी
नई दुनिया
तितली
परिवार
प से म तँक
कहां गये वो दिन
यशोदा माँ
उजाला
पैसे पेड़ पर नहीं उगते
परी का फ्राक
पवित्र बन्धन
फोन
स्वच्छता अभियान
इस घर में मां की ममता बसी है...
उम्मीदों का बोझ
चाँद छुट्टी पर चला गया
भूलक्कड़ परी
परछाईं
मुझमें संस्कार है पर आप मैं नहीं???
भरोसा शेरावाली पर
दोराहे पर खडी़ जिँदगी
हैपी mothers डे माँ
जिज्जी भाग 10
कच्चे रास्ते - (भाग २) साप्ताहिक धारावाहिक
धूप के आर-पार
नसीहत
कच्चे रास्ते (भाग ६) साप्ताहिक धारावाहिक
"संयुक्त परिवार "
पराई होती हैं बेटियां
" तुम्ही से शुरू तुम्ही पर खत्म"
कच्चे रास्ते (भाग ८) साप्ताहिक धारावाहिक
धरती से टिका अंगूठा
"छठ पर्व विशेष " 💐💐
नाचो पर दूर दूर
"अपराधिनी "
"अपराधिनी " 🍁🍁 अंक ... 2
" अपराधिनी " 🍁🍁
पराधीन
कर्ण और दुर्योधन
रावण, परशुराम और सीता स्वयंवर
एक दिन सफलता मेरे सपनें में आई
असफलता से सफलता की ओर
युवाओं में नशीली पदार्थो की लत
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पाठक के दिलोदिमाग पर अमिट छाप छोड़ने में सफल है "डियर ज़िंदगी"
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धरती का आवरण है पर्यावरण
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वर्षा ऋतु पर मेरे विचार और भावनाएँ
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योग और योग दिवस पर मेरे विचार
शिक्षक दिवस पर मेरे विचार
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परिवार में भावों का अध्ययन
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जीवन में क्रोध प्रबंधन पर मेरे विचार।
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