कवितालयबद्ध कविता
क्रोध
भूल से भी कभी ना क्रोध करना
आए क्रोध तो सीखो सही दिशा देना और संभालना
क्रोध का है अपना पूरा परिवार
जो बिगाड़ दे अच्छा खुशहाल संसार
जिद है क्रोध का अपनी लाडली बहना
जिद के आगे अच्छे अच्छे का होता है हारना
हिंसा है क्रोध की प्रियतम पत्नी
कभी कभी बाहर आता, है रक्तपात की जननी
बड़े भाई है क्रोध का, नाम है अहंकार
आ जाए तो, मन से विलुप्त होता सम्मान और प्यार
जिससे डरता है क्रोध, वह है क्रोध का पिता 'डर'
डर कर मनुष्य, मृत्यु से पहले ही जाता मर
निंदा करना और चुगली करना है दो बेटियां
जो ले जाती है जीवन की खुशियां
क्रोध तो है ह्रदय की प्रेम की कटार
विनाश ही विनाश करता है क्रोध का परिवार
जो करता क्रोध, होता बुद्धि में भेद
मन में रहता खेद, चरित्र में होता छेद
हर क्षेत्र में सिर्फ मिलता असफलता
जो है क्रोध के साये ने पलता
इसलिए क्रोध अपने आस पास आने न देना
हो सके जितना, अपने से दूर भगा देना