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प्रेम की परिभाषा - Kumar Sandeep (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कवितालयबद्ध कविता

प्रेम की परिभाषा

  • 248
  • 12 Min Read

मैंने अपनी आँखों से देखा है

मन से महसूस किया है कि

प्रेम के आँगन में भ्रमण करने वाले

प्रेमी, सबकुछ त्याग

प्रेमिका के जीवन में

ख़ुशियों के रंग भरने का

करते हैं प्रयत्न।।



मैंने अपनी आँखों से देखा है

प्रेमी को मछली की भाँति छटपटाते

जब उसकी प्रेमिका

प्रेमी से रुठकर

कई दिनों तक नहीं मिलने का

प्रण लेती है।।



मैंने अपनी आँखों से देखा है

जब प्रेमी, प्रेमिका की गली से

होकर, अपनी गली की ओर

जाता है, तो उस क्षण

प्रेमी, एकटक प्रेमिका की

खिड़की की ओर निहारता है

ताकि देख सके अपनी प्रेमिका को

अर्थात, प्रेमी को सुकून मिलता है

प्रेमिका के दर्शन मात्र से।।



मैंने अपनी आँखों से देखा है

प्रेमी को व्याकुल होते हुए

जब उसकी प्रेमिका

महज चंद मिनट में ही

फोनकॉल को कट कर देती है।।



मैंने अपनी आँखों से देखा है

प्रेमिका के चेहरे पर पसरे सन्नाटे को

जब उसका प्रेमी

उससे बहुत दूर जाने की बात

को रखता है प्रेमिका के समक्ष।।



मैंने अपनी आँखों से देखा है

प्रेमिका को भी प्रेमी की भाँति

व्याकुल होते हुए, जब उसका प्रेमी

कुछ दिनों तक गली से

होकर नहीं गुजरता है

किसी कारणवश।।



मैंने अधिकांश प्रेमियों को

जो वास्तव में प्रेम की सच्ची परिभाषा

से भिज्ञ हैं, उन्हें देखा है

नारी शक्ति का सम्मान करते हुए

नारी के संग दुराचरण करते

कभी भी नहीं देखा मैंने

इन जैसे प्रेमियों को

इन जैसे प्रेमियों को

न बोलने वाला जीव भी

बारम्बार सलाम करने को

व्याकुल रहता है।।



मैंने प्रेम वाटिका में

प्रेमी को प्रेम का बीज रोपते

देखकर, जब प्रश्न किया कि

"तुम्हारी नज़र में प्रेम क्या है?"

तो प्रेमी का जवाब था

"प्रेम रात्रि में जलने वाले दीपक

की भाँति है, जो अंतर्मन में

बैठे समस्त मैल को

तन-मन से बाहर निकालकर

हमें निर्मल कर देता है।।"



मैंने एक दिन एक प्रेमी को

जीभर रोते देखा तो

प्रश्न किया, "प्रेमी तू रो रोकर

अश्रु की धार क्यों बहा रहा है"?

तो प्रेमी ने अपने आँसुओं को

पोंछते हुए कहा, "राही तू

न समझ सका पीड़ मेरी

मैं दुनिया का सबसे

नालायक आशिक़ हूँ शायद

इसीलिए तो मेरी प्रेमिका

न समझ सकी मेरे अंतर्मन की व्यथा को

जानता हूँ मुझे खोकर उसने

सबसे अनमोल चीज़ खो

दिया जीवन का।।"



मैंने उस प्रेमी को हँसते हुए कहा,

"प्रेमी तू रो मत तुम्हारी प्रेमिका

तुम्हारे मन की बात न समझ सकी

और न ही प्रेम की परिभाषा

सो तू मायूस न हो

और जी ज़िन्दगी रोकर, नहीं हँसकर।।"



इस तरह मैंने देखा है

अनेक प्रेमी व प्रेमिका को

जो प्रेम में ख़ुद को ख़ुद भी संभाल

नहीं पाते हैं उनका तन स्थिर

और मन अस्थिर रहता है,

व्याकुल रहता है।।





©कुमार संदीप

मौलिक, स्वरचित

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