कहानीहास्य व्यंग्य
घर लौटे ही थे हम की भानु थके हारे सोफे पर बैठे थे। चप्पल निकाल हम शू रैक में रखते हुए बोले,
“जिज्जी के यहाँ गए थे, बच्चे आज खाना लेने नही आये थे, सो वही देने गए थे”
भानु ने पैर टेबल पर रखते हुए बोला,
“हम्म्म्म अब कैसी है जिज्जी के पैर के चोट”
शशि- “अब ठीक है आज दौड़ लगा रही थी जिज्जी, ठीक हो गयी है बोल दिया है कि टिफ़िन की जरूरत नही है अब वो खुद ही बना लेंगी”
भानु- “एक ग्लास पानी देना शशि,
शशि रसोई में जाकर पानी लेकर आती है,
भानु- शशि एक बात करनी थी तुमसे, सोच रहा हूँ कैसे कहु।
शशि- बोलो भानु क्या बात है
शशि सोफे पर भानु के बगल में बैठते हुए कहती है।
भानु- शशि कल मुझे ऑफिस के काम से शहर जाना है। मैंने कभी तुम्हे ऐसे अकेले नही छोड़ा सोच रहा हूँ कैसे करूँ। काम जरूरी है जाना ही पड़ेगा।
शशि भानु का हाथ पकड़ते हुए
आप जाइये अगर जाना जरूरी है तो, मैं रह लुंगी अकेले। कितने दिन के लिये जाना है।
भानु- एक हफ्ता
शशि- एक हफ्ता हाय दैया हम कैसे रहेंगे आपके बिन इतने दिन?
भानु- जिज्जी को बुला लेना (हंसने लगता है बोलकर)
शशि- ना बाबा इससे अच्छा मैं मेरे पीहर चली जाती (कहकर उदास हो जाती है)
भानु- अच्छा जाओ ना मेरा ऑफिस बैग उठाकर लाओ।
शशि उठकर जाती है बैग उठाकर लाती है। भानु बैग में से एक पेपर निकालकर शशि को देकर बोलता है
“पढो इसे”
शशि पेपर को उलट पलटकर देखते हुए।
“क्या है ये”
भानु “पढो तो सही”
शशि जैसे जैसे पेपर पढती है उसके चेहरे पर खुशी बढ़ती जाती है जैसे ही पेपर पढ़ना खत्म होता है वह भानु को खुशी से चिल्लाते हुए गले से लगा लेती है।
शशि “भानु क्या सच मे हम दोनों शिमला जा रहे है घूमने के लिये”।
भानु “हाँ पगली ये आफिस साइड से कुछ लोगों ने कूपल टूर प्लान किया है एक हफ्ते का तो हम लोग भी जा रहे हैं कल सामान तैयार रखना।
शशि खुशी से पेपर को देखती रहती है।
भानु “अब इसे ही देखती रहोगी तुम या खाना भी मिलेगा भूख लग आयी है जोरो से”।
शशि पेपर रख रसोई में खुश होते हुए खाना लगाने चल देती है।-नेहा शर्मा।