कवितालयबद्ध कविता
गीत है संगीत है
ढोल की थाप पर, नाच रहा है मन,
कोयल की कूक सा,गा उठा है मन.
आनंद मग्न हुआ, नाच रहा है मन,
ढोल की थाप पर नाच रहा मन।
गीत है संगीत है, रीत है, प्रीत है,
गौरियों के मन बसा, सपनों का मीत है.
सपनों के देश में, जा रहा है मन.
ढोल की थाप पर, नाच रहा मन.
बालों में फूल है, आँखें कजरिया,
अंग -अंग नाच रहा, जैसे बिजुरिया.
पैरों की ताल पर, नाच रहा है मन,
ढोल की थाप पर ,नाच रहा मन
वाद है विवाद है, हर्ष है विषाद है,
प्राणों में है भरा, कैसा निनाद है.
नृत्य में पीड़ाओं को, बहा रहा मन.
ढोल की थाप पर, नाच रहा मन.
सुर है ताल है, घुँघरुओं की झनकार है,
महुआ की गंध लिए, स्वप्निल संसार है.
ताड़ी सा फेनिल, हुआ जा रहा मन,
ढोल की थाप पर ,नाच रहा मन.
राजेश्वरी जोशी
उत्तराखंड