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एक नारी हूँ - Kumar Sandeep (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

एक नारी हूँ

  • 295
  • 5 Min Read

मैं अपनी ख़ुशी की परवाह नहीं करती हूँ
हर पल परिवार के विषय में सोचती हूँ
परिवार की ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी है शामिल
हाँ, मैं एक नारी हूँ
अपना सर्वस्व परिवार के खातिर अर्पित करती हूँ।।

सड़क किनारे व गली मुहल्लों में इंसान के रुप में
जो हैं दानव वो तीखी नज़रों से देखते हैं मुझे
नहीं जानते हैं वे आज की नारी कमज़ोर नहीं है
हाँ, शायद उन्हें ज्ञात नहीं कि
नारी सबक सिखलाने की क्षमता रखती है पापियों को।।

नारी की महिमा का वर्णन शब्दों में संभव नहीं है
नारी की शख़्सियत सचमुच अतुलनीय है
फिर भी पता नहीं क्यों आज भी नारी को
नहीं दिया जाता है उचित मान व सम्मान
हाँ, नारी को उचित मान व सम्मान मिलना ही चाहिए।।

जानती हूँ मैं लाख करूँ बयां अपनी शख़्सियत
पर कुछ मानव रुपी दानव को नहीं समझ आएगी
कि नारी होती है साक्षात देवी का स्वरूप
हाँ, नारी के साथ दुर्व्यवहार करना, प्रताड़ित करना
मानव रूपी दानव को ले जाएगा असमम मृत्यु के द्वार।।

©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित

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Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

नारी सब पर भारी

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत खूब सन्दीप

Kumar Sandeep3 years ago

धन्यवाद आपका

वो चांद आज आना
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