कवितालयबद्ध कविता
अधरों पर मुस्कान
करती हर संकट आसान
अधरों पर मुस्कान ।
न पीड़ित हों, ना पीड़ा दें
रखें सर्वजन सुखाय का ध्यान ।
और अधरों पर मुस्कान
न हो पर निंदा में रसमग्न।
न हो वहशीपन का जश्न
हो मानवता का सम्मान।
और अधरों पर मुस्कान
कुत्सित छल- कपट से अंजान।
हंसता मुखड़ा अधरों पर मुस्कान
यह वरदान भाग्य से पाता है इंसान।
अधरों पर मुस्कान,चेहरे पर ममता
कौन न बोलो मर मिटता ?
रखने में कुछ ना लगे, अधरों पर मुस्कान
खुद को भी लगता भला मुस्काता इंसान।
बड़भागी इंसान जिन पाई अधरों पर मुस्कान
चौपाया दोपाया का अंतर दे पहचान।
चेहरा हो गमगीन आभूषण सब बेकार
अनमोल है अधरों पर मुस्कान।
गीता परिहार
अयोध्या