कहानीसामाजिकअन्य
अभी थक हारकर पलँग पर बैठी ही थी कि तभी याद आया कि एक कॉल कर लूँ। उठकर पर्स में से फोन निकलने के लिये पर्स उठाया। तभी बेटी पास आकर,
"मम्मी मेले हाथ गन्दे हो गए धुलवा दो ना"
पर्स वहीं रखकर हाथ धुलवाने चली गयी रुचि,
"बहु एक कप चाय मिलेगी क्या?"
"जी माँजी अभी लायी"
कहकर रुचि रसोई की तरफ बढ़ चली,
बेटी वहीं रसोई में आकर खड़ी हो गयी,
"मम्मी मेले को भी थोली ची नमतीन देना खाने को"
"ठीक है बेटा"
चाय छानकर उसको नमकीन देकर,
"नीचे मत गिराना बेटा चींटी आजायेगी वरना"
चाय का कप सास को देते हुए,
"माजी आपकी चाय, मुझे बस एक फोन करना है बाकी का काम मैं आकर फोन करके देखती हूँ"
"ठीक है बहु"
रुचि पर्स से फोन निकालने जाती है। पर यह क्या पर्स में फोन ही नही है। रुचि घबरा जाती है। पूरे घर में छानबीन में लग जाती है पर फोन कहीं नही मिलता है। घर का फोन उठाकर अपने फोन पर काल करने की कोशिश करती है। पर फोन नॉट reachable जाता है। अब रुचि घबरा जाती है। तभी विकास घर आता है।
"रुचि विकास आया है उसे एक ग्लास पानी तो देना"
रुचि घबराई सी विकास को पानी दे देती है। उसकी शक्ल की उड़ी रंगत देखकर विकास समझ जाता है कि कुछ तो गड़बड़ है। वह रुचि को पूछता है क्या हुआ है। रुचि रो पड़ती है। अब विकास और रुचि की सास उसे रोता देख परेशान हो जाते हैं।
"क्या हुआ रुचि रो क्यों रही हो"
"विकास मेरा फोन नही मिल रहा जो दो दिन पहले तुमने मुझे गिफ्ट में दिया था"
"घर में देखा क्या?"
"सब जगह देखा घर में नही है आफिस से आई हूँ तबसे नही मिल रहा है"।
"बहु तूने कॉल किया फोन पर?"
"जी माँजी काल करके देखा पर नही मिला"
"तूने बताया क्यों नही इतनी देर से अकेले परेशान हो रही है, जाने दे एक फोन ही तो था, इतना परेशान मत हो, अब सबक मिल गया एक बार....... अगली बार ध्यान से चीज़ रखना"।
रुचि की सास रुचि को चुप कराने की कोशिश कर रही थी।
"माँजी नया फोन खो गया मैं सच में बहुत लापरवाह हो गई हूँ"
"तू लापरवाह नही है तू मेरी बहु है, हम सबका इतना ध्यान रखती है तुझसे फोन खो जाए हो ही नही सकता, और अगर हो भी गया तो कोई बात नही, फोन ही तो था।"
रुचि रोये जा रही थी, विकास रुचि के फोन पर कॉल करने की कोशिश कर रहा था।
फोन स्विच ऑफ नही है बस नॉट reachable बता रहा है।
"रुचि की सास जाने दो विकास अब फोन जिसकी किस्मत का है छोड़ दो"
सब लोग फोन को लेकर उदास थे, तभी रुचि की बेटी रुचि को कहती है।
"मम्मी आप त्युं लो लहे हो"
सभी उसकी और देखते हैं। उसके हाथ में फोन उसने अपने पीछे दोनो हाथो से पकड़ा हुआ था। विकास ने उसके हाथ से फोन अपने हाथ में लेते हुए पूछा।
"बेटा ये आपको कहाँ से मिला"
"ये तेबल पर लखा था, मैंने थेलने के लिये उथा लिया,"
विकास बेटी को गोदी में उठा लेता है।
"अच्छा तो ये हमारी नन्ही नटखट नमकीन टेबल के नीचे बैठकर खा रही थी"
टेबल के नीचे खूब सारी नमकीन बिखरी पड़ी थी।
"Shhhh पापा मम्मी तो मत बताना मैं फोन तला रही थी वरना मम्मी डातेंगी, थोलि नमतीन भी गिल गयी है।"
उसकी मासूमियत देखकर सब जोर से हँस पड़ते हैं। सभी के चेहरे पर मुस्कुराहट थी, क्योंकि फोन के साथ साथ एक और यादगार दिन उन सबकी जिंदगी में जुड़ गया था।- नेहा शर्मा
बहुत कुछ सोचने को विवश करती हुई रचना,वाह!
धन्यवाद 🙏🏻
ह्रदयस्पर्शी कहानी, आज के बच्चों का मोबाइल दीवानापन दर्शाती।
धन्यवाद