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भुलक्कड़ - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कहानीसंस्मरण

भुलक्कड़

  • 314
  • 6 Min Read

#कहानी/किस्से
भूल जाऊं कुछ,फिर वह सामान हो या किसी की चुभी हुई बात,यह मेरी फितरत नहीं।मेरी याददाश्त से मेरे घरवाले परेशान रहते हैं।मेरी स्वर्गीय माताजी कहावतों ओर मुहावरों की चलती फिरती डिक्शनरी थीं।मजे की बात की कब,किसी मौके पर कौन सी कहावत बोलनी है ,इसमें उन्हें महारत हासिल थी।उनका असर मुझ तक क्यों न आता!तो..जब तब मैं कहती हूं,' मेरी मां यह कहती थीं ' अब अगर नहीं कहती तो बच्चे पूछते हैं,"हां,इस विषय में आपकी माताजी क्या कहती थीं ?" तो यह तो हुआ अच्छी याददाश्त का नमूना।
अब मां से ही विरासत में मिला कि किसी भी पर्स या बटुए को बिल्कुल खाली न कर देना।कुछ भी छोड़ो,चाहे एक ही रुपया,पर्स खाली नहीं रहना चाहिए ।बस यहीं.. ,यहीं चूक हो जाती है।अब पर्स खुले आम तो नहीं रखा जा सकता।हर पर्स में रुपए तो जरूर होंगे,मगर पर्स कहां गुप्त हो जाता है ढूंढने में घंटों लग जाते हैं।
अब छोटी बेटी ने अलमारियों के अंदर सामान की लिस्ट बना कर चस्पा कर दी है।फिर भी कुछ चीजों को छिपाकर रखने का मजा कुछ और ही होता है।सो छिपा देती हूं और खुद ही परेशान होकर ढूंढ़ निकाली हूं।
अक्सर कहूंगी, इस बार मैंने बहुत संभाल कर रखा है।बच्चे हंसते हैं,"जरूरत से ज्यादा तो नहीं संभाल कर रख दिया!"
बस थोड़ी सी भुल्लकड़ हूं.. उतनी भी नहीं।

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Priyanka Tripathi

Priyanka Tripathi 3 years ago

सही सबसे साथ ऐसा ही होता है

Gita Parihar3 years ago

जी, कमोबेश

दादी की परी
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