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सिमटते परिवार - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

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सिमटते परिवार

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बदलती भारतीय संस्कृति का प्रभाव हमारी सोच पर, हमारे सामाजिक ढांचे पर, हमारी पारिवारिक संरचना पर देखा जा सकता है। बदलाव का कारण जो भी हो ,आधुनिकता हो अथवा उससे आगे बढ़कर उत्तर-आधुनिकता हो, अथवा अन्य कारण। पिछले कुछ वर्षों से हमारा समाज, व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक- विभिन्न स्तरों पर निरंतर परिवर्तित हुआ है। ‘गलोबलाइजेशन’ के द्वारा हम पास तो आ गए, पूरा विश्व हमारा घर बन गया, पर हम स्वयं के परिवार, समाज और अपनों से दूर होते गए। हम आभासीय बन गए। पति-पत्नी, माँ-बाप, चाचा-चाची, दादा-दादी, नाना-नानी इन सभी की जगह ‘हम दो-हमारे दो’या 'हमारे एक' ने ले ली। दो कमरों का मकान हो गया, लोग सिमटते चले गए। परिवार बिखर गया, ‘संयुक्त’ नाम ‘एकल’ बन गया।
बदलाव की परिणति समाज और व्यक्ति दोनों को प्रभावित करती है।व्यक्ति स्वतंत्र तो हो गया किंतु अपने जीवन में असंतुलित होता चला गया। सारे रिश्ते बेमानी हो गए।स्त्री-स्वातंत्रय ने आर्थिक रूप से स्त्री को सबल किया,मगर उसी सबल स्त्री की अस्मिता को बलात्कार और शोषण ने छलनी कर दिया।
पहले एक परिवार यानि तीन पीढियां हुआ करती थीं।हमारे देश की पारिवारिक और सामाजिक व्यवस्था की सुदृढ़ता का सम्मान पूरी दुनिया में किया जाता था, किंतु संपन्नता के साथ एकल परिवारों में इस भावना ने जोर पकड़ा कि बुजुर्ग नई पीढ़ी पर बोझ हैं।संकुचित जीवन शैली, स्वार्थ सिद्धि में बलबती आज की पीढ़ी संगठित परिवार को छोड़ कर अलग रहना ही पसंद कर रही है।एकल परिवार के नाम पर जिस नए किस्म की पारिवारिक संरचना अब हमारे देश में बहुतायत से दिखने लगी है, पश्चिमी देशों में वह काफी पहले विकसित हो गई थी।
इस संदर्भ में एक घटना की याद स्वाभाविक है,जब अमेरिका से मुंबई लौटकर एक युवा ने अपने फ्लैट का दरवाजा खुलवाया, तो वहां उसे अपनी मां का कंकाल पाया। पता चला कि वह करीब एक साल से अपनी मां के संपर्क में नहीं था।यह कैसा डिजिटल समाज है, जिसमें अपने करीबियों की सुध लेने और उनकी पीड़ा को अपनी पीड़ा समझने का चलन खत्म हो गया है?
जिंदगी में कुछ चीज़ें ऐसी होती है जो हर हाल में इंसान के लिए अतिआवश्यक होती है;कामयाबी , नाकामयाबी , खुशी,परेशानी। ऐसे पलों में उसका अपना परिवार ही सहारा होता है।यह जानते हुए भी आखिर परिवारों के सिमटने का क्या कारण हो सकता है?
संयुक्त परिवारों के टूटने का एक कारण बच्चों का नौकरी या व्यवसाय के लिए शहरों में बसना भी है, जहां आवासीय सुविधा सीमित और महंगी है। दूसरा कारण शहरों की चकाचौंध से नई पीढ़ी का गांवो को छोड़कर शहरों की ओर आकर्षण भी है। स्वतंत्रता भी एक कारण हो सकती है, जहां नई पीढ़ी बड़े- बुजुर्गों की टोका -टोकी सहन नहीं कर पाती, वह भी अलग रहना पसंद करते हैं। आपसी तालमेल और सामंजस्य की कमी, आर्थिक विपन्नता जैसे अन्य अनेक मुद्दे भी एकल परिवारों को जन्म दे रहे हैं।
बीते दशक से मोबाइल जहाँ एक तरफ दूरस्थ लोगो को जोड़कर वरदान साबित हुआ वही समयाभाव के चलते दूसरी तरफ निकटस्थ लोगो को दूर कर अभिशाप बनता जा रहा है।भारतीय पर्वो व उत्सवों में रचनात्मक रूप से वह हर्ष व उल्लास गायब सा हो चला है।चाहे वह गुझियों की मिठास हो, दीपों का उत्सव हो, या अन्य कोई धार्मिक, राष्ट्रीय पर्व सब फीके हो चले हैं।पहले त्योहार पूर्व घर के सदस्यों में रचनात्मक तेजी आ जाती थी।सब मिलकर त्योहार को भव्य बनाने के लिए कार्य योजना बना कर अलग अलग दायित्व लेकर त्योहार पूर्व पखवारे से ही तैयारियां शुरू कर देते थे।लेकिन मोबाइल ने वह सब छीन लिया।
अधुनिकता के भंवर जाल में फंसे इंसान को पर्वो की जानकारी ही मिलती है सोशल साइट्स से।फिर शुरू हो जाता है ज्ञान से भरा फ़ेसबुकिया सेलिब्रेशन, शुभकामनाएं और संदेश प्रेषित करने में पर्व का सारा दिन निकल जाता है।शाम को पूजा के समय सेल्फी, और फोटो सेशन के बगैर पर्व का समापन तब तक नही होता जब तक फेसबुक पर टैग, व समूहों में पोष्ट न हो जाये।बाद में खान पान और नींद।
सोचिए किस तरह का पर्व मनाया हमने!क्या यही भारतीय पर्व का तरीका है?
जिम्मेदारियों के बोझ तले इंसान सुबह का निकला जब शाम को घर लौटता है तो भारी थकान के बावजूद सोशल स्टेटस चेक करना नही भूलता बमुश्किल खाने का समय निकाले मगर रिप्लाई करता है, इस दिनचर्चा में वह देश, दुनिया, समाज, राजनीति का हाल समाचार, सोशल ज्ञान, हंसी मजाक आदि विषयों पर अपडेट पा लेता है।लेकिन छूट जाता है परिवार का स्नेह।ऐसा नही कि वह परिवार को भूल रहा होता है लेकिन याद भी तब आती है जब रात्रि पहले पहर को समाप्त कर रही होती है और सदस्य सो गए होते हैं।सुबह फिर वही भागमभाग…..दिनचर्या।

परिवार को प्राथमिकता देनी होगी तभी सम्बन्धों में प्रगाढ़ता आएगी और परिवार अपना अस्तित्व बनाये रख सकेंगे।
गीता परिहार
अयोध्या

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

एक ज्वलंत सच्चाई का आपने बहुत अच्छी तरह से सही मूल्यांकन किया है.👌👍🙏🙏

समीक्षा
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