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"!"
कविता
"इस बार जो बरसा सावन"
पिता!
"हाँ... ज़िद है"
पहल्यां ही बता देंदी
मिलाते तो सही
काश कुछ ऐसा हो जाए
काश! युँ ही
"अपना इंडिया अब भारत बनने लगा"
हे भारत माँ!
पराया धन
क्या जानती हो
सबके दिल में
क्या कर रहे हो तुम?
ऐ! मेरे साए
छोटे आका
माँ से कुछ प्रश्न
मैं क़लम हूँ
ईश्वर,अल्लाह सब माँ !
सोचो न!
काश! तुम भी समझते
सच बताना - कुमार आशू की ग़ज़ल
मौला.....! तू करम करना
काश ! मुड़कर देख लेते
बेटी हूं मैं : पराया धन ना कहना
"कोरोना का कहर"
काश ! मृत्यु से पहले जाग जाते
!! नवरात्रि में नवदुर्गा माँ !!
हे माँ!
शक्ति दो माँ !
काश..एक बार तुम मेरी खामोशी सुन लेते
आह!
पापा से प्रश्न
नारी ही नारी की सूत्रधार है!
नया ख़्वाब
हे! देशभक्त जाँबाज वतन के रखवालों
कलम से लगन लगी
वो अनजान है।
पर्पल कविता
मेरे बेटे
खूंटी पर टंगी वर्दियां
"आख़िर कौन हो तुम"
सपने में पापा आए
ऋतुराज बसंत
जिंदगी ! तुझे पढ़ न पाया
जिंदगी ! तुझे पढ़ न पाया
गाँव ! तुम्हारी बहुत याद आती है
गाँव ! तुम्हारी बहुत याद आती है
शायद ज़िन्दगी होना था...!
"रिमझिम सावन की बूंदे..."
शुक्रिया माँ
मैं पुकारुँ तुझे
मैं कविता हूँ...!
सूर्पनखा की नाककटाई !
केवाड़ी डोम काटत !
प्रभु
बुढ़ौती में हमरा के लव होइ गवा..!
मेरी माँ ख़ुश रहे
शौर्य गीत
"चहु ओर खुशियां फैल जाएंगे"
कोरोना बोलो तुम्हे कब है जाना
हे कृष्ण! कितना आसान है
जूगनू बनू या कि जोगन
ओ कान्हा
फिर देख !!!
हे सहचरी क्षमा करना
विवाह के बाद
जीवन का सच!
उठो युवा तुम उठो ऐसे
जुबां खामोश कहती है !
नाख़ुदा का कसूर देखा!
मत पूछ मुझ से हबीब मेरे
हे आशुतोष !
माना कि मश्ग़ूल हो तुम
यादों का आभास हुआ मुझ में
किसी काम के न रहे
साहिल से अनजान रहा
तन्हा होकर रह गई जिंदगी
सुकूँ से बशर हम सैर करें
बशर मग़र कभी रोया नहीं
दर्द किसानों के वो क्या जाने
निकालने को जाए कहाँ ख़ुद का ग़ुबार आदमी
बंदे तेरा अंदर कहाँ है
महब्बत महब्बत होती है
खुशबुएं नदारद बशर
तसव्वुर में हबीब हमारा देखा
है गुफ़्तगू भी लाज़िम राब्तों के वास्ते!
छुपाकर अपने ग़म रखिए
औरत,स्त्री... !
कोई येह तो बताए के हिंदुस्तान और भी है
सुकून-ए-ज़ीस्त मयस्सर ही नहीं कहीं आदमजात में
सबा से गुज़र जाओ
मुकम्मल कर सफ़र बशर हम आते हैं
रिश्ते याद तो आ जाते हैं
फ़न कोई उस्ताद के बग़ैर आता नहीं
सांझ ढलने दीजिए
यौम-ए-हिंदी मुबारक
क्या बताए बशर किसीको
संवेदना
संवेदना
*गूंगी बिन आवाज़ ग़ज़ल*
हयात मेरी बता मुझको
कोई अपने मां-बाप से बड़ा नहीं हो सकता
*लोग किरदार समझ लेते हैं*
*खुद का चश्मा लगाकर देखा*
कमी आशियाँ की रही
नफ़रत गवारा नहीं
*हुई उम्रेतमाम शाद होते होते*
अहबाब भी हैं
नाम उनका
*जिंदगी का पता नहीं*
क्या तेरा, क्या मेरा !!
*कलम दवात के सहारे हैं*
तबीब करने लगे शिफ़ा वबा से
*शजर की छाया में*
औक़ात
ज़ाहिर अपनी तजवीज़ हम क्यूं करें
*ज़रूरी राब्ते निभाना हुआ*
किसी और का नसीब क्या जानें
आदमी, आदमी रहा ही नहीं
*मुझमें मैं रहा ही नहीं*
मुझ में 'मैं' बचा ही नहीं
खामियाँ हर कहीं होती हैं
हयात-ए-मुस्त'आर की सदाक़त जानले
बीते बरस की बातें पुरानी कहानी हुई
बैठे रह गए वो हाथ मलते रहे
हरसूरत हरसू हरशय के हालात पर लिख
फ़रेब भरे हैं प्यार में
बे-सबब तकरार क्यूँ करें
सूना पड़ा बाज़ार
किनारों को मिलतेहुए नहीं देखा
हबीब ने कमाल किया
छू कर देखूँ क्या आसमान!!
गिला अब कुछ भी नहीं
एक बार बोलकर
ख़ुशगवार मंज़र देखा करो
मेरे वतन
तिश्नालबी छुपानी नहीं आती
अय्यारी जहाँ होगी
हर भरे दरख़्त अब कहाँ रहे
कागज़, किताब ओ कलम बचे
सोने वालों की सहर होगी
न दिन चैन देगा न नींद चैन देगी
बेशुमार तल्ख़ियां
यादों से बिछुड़ना ना आया
अपने आप पर ए'तिमाद ओ एहतराम की इब्तिदा करें!
ज़ीस्त है बशर जीकर जाएगी
फिर उन्हीं का ख़्वाब आएगा
कुछ भी बदल सकते हैं
जीने केलिए जगह नहीं
गैरों की कहानी पूछने लगे हैं
हाथ कब तक मलते रहोगे
हमने बच्चा बनकर रहना चाहा
बन गए किस्से-कहानी अफ़्साने लोग
मरनेपे तुला होतो क्या करें
रंग जाओ दिल के रंग में
रंग लगाकर नहीं गया
मसर्रतों से ख़ौफ़ज़दा
हासिले-सुकूने-क़ल्ब
किरदार की सच्चाई लिख
कुछ तो वज़ह रही होगी
मंज़िल का पता नहीं
अल्फ़ाज से नहीं
काम भूल गए
जिंदगी क्या चीज़ है मौत से इंसान डरता नहीं
सामने इक किताब वही
लोग सुबह के अख़बार क्यूँ हैं
हुई शामे हयात सहर होते हुए
हिज़ाब नहीं करते मुलाक़ात करते वक़्त
जीना ला-हासिल है
रहगुज़र को सफ़र कहते हैं
दरख्तों की छांव में
सुगम सरल डगर कहते हैं
गुम किताब चश्मे-पुरनम में
लम्हे जो जी लिए अपने नाम चाहिए
माँ से बड़ी नेमत नहीं
कोई किसी केलिए ज़रूरी नहीं हो सकता
ईनाम ओ सजा का पता नहीं
सहर की आस में
डूबने केलिए इक जिंदगी चाहिए
ढूंढते रह जाओगे
ऐ मंज़िल मिरी रुक जा जरा
उसी का आस्तां ज़रूरी था क्या
मनसे अंधा अपने अंदर क्या देखे
तमाशाई सभी बवाल के हैं
उम्रभर हमको काम आईं माँ की दुआएं
मदहोशी जैसे हो गए हैं
मन के पट खोल दिया करो
यादों की बारात
जिंदगी तिरे लिए हमने मरके देख लिया
हर रहगुज़र-ए-सफ़र से गुज़र के देख लिया
जमाने को बदलने का कारण होते हैं
तू देख, मेरा कृष्णा आ गया!
हम उसकी ही फ़रियाद करते हैं
खुद से निकलकर नहीं देखा
किसीसे मिलकर नहीं देखा
हम अपना विश्वास लिखते हैं
हम सदा रवैय्या अपना नर्म रखते हैं
ग़मख़्वार होना चाहिए
पूरी होनी चाहिए ग़रीब की हसरत
लोग क्या कहेंगे
उभरे हम नहीं हैं
दिनरैन जगकर गर बिताए तो कोई कैसे बिताए! © 'बशर' بشر.
तेरे फैसले पे मेरा कोई सवाल नहीं
तुमबिन हम नहीं
बिनआग के ही आग जला देते हैं
भगवान भी प्रतीक्षा में घर के बाहर खड़े हैं
मेरे सबअपने मुक़म्मल हों
भैंस के आगे बीन बजाने का क्या फ़ायदा
मुक़म्मल किसीके इश्क़ का ख्वाब नहीं
बस गया है एक उसी का नाम
नसीहतों पर अम्ल किया करो
ना तो नाकाबिल औलाद हराम का खा खाकर शर्माती है! @"बशर"
जज़्बात भी अपने पास रखा करो
वक़्त भी बदलेगा और ये दिन-रात भी बदलेंगे
शीरीं किसीकी हुई नहीं फ़रहाद के बग़ैर
कांटोभरा रहगुज़र नहीं देखा
दफ़्तर दफ़्तर आना-जाना माथा थाम लेना
झूठ नहीं बोलूं तो गर्मी से झुलस जाऊं
मसर्रत हासिल होगी
हरगिज़ नहीं बशर बेखुदी की रहगुज़र होता
अपने-आप से जमा-खर्चे के हिसाब मांगे
उसके आने के बाद बरस
रैनबसेरे के मेहमानों की बात क्या करें
आनेवाले हैं बहोत
कितने लोग वो देखते हैं जो उन से छुपाया जा रहा है! @"बशर"
बातों से तक़दीर नहीं बदला करती
खुद में गुम भी रहा करो
उस से क्या जुदा होना
हम सब अपने अपने सारे ऐब निकालें
बात ही कुछ ऐसी है
तालीम की ज़रुरत ही है!
हर हालात में चलते जाना
हैनहीं रिहाई की रज़ा तेरी
जीना बड़ा दुश्वार और नासाज़ कर दिया
गाँव की गलियों से निकलकर कोईदरवेश आया @"बशर"
मै कमल हूँ
जीना ही छोड़ दे 'बशर' ग़म-ए - रंज - ओ - मलाल में
याद सताती है
वफ़ा-ए-मुहब्बत ना समझ लेना
चौकस और होशियार
रंजीदा हर शख़्स के सूरते-हाल पर संजीदा हो जाना हरदम उनका
साथ उसके शराफ़त रहे
बिन चले मुसाफ़िर की पहचान क्या
तराना-ए-हयात हमने गा लिया
मुहब्बत के चराग़ जलाते चलें! @ डॉ.एन.आर. कस्वाँ"बशर"
फ़साना-ए-सफ़र अपना क्यूं बेदम लिखें
हरजगह गुड़ी पड़वा हो ज़रूरी नहीं
मुफ़लिस की सल्तनत में धनदौलत आसपास नहीं आती
इस जहाँसे आगे जहाँ औरभी है
वो ना आने पर अड़ी हैं
हम लौटकर नहीं आएंगे
हम नहीं दिखा रहे होते हैं अक़्सर वो हम होते हैं
अपने ही दगा दे जाते हैं
इन्सान को इन्सान से मिलाये तालीम
कहानी
अब बस!!
काश!रावण जिंदा होता
प्रेमी
तुम बच्चे भी!
मिनी ! कम बोलो
एक और साल...!
ऑटो
वह खत....!!
कईएक पहलू जीवन के.....!!
Mere Papa
Mere Papa
लेख
संभल ए मानव !
संस्मरण-"काश ! होली खेल ,लेती"
अपनी_पहचान_हिंदी!
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