कविताअतुकांत कविता
एक पिता अपने हिस्से की हर ख़ुशी
करता है न्योछावर संतान के हिस्से में
संतान के ऊपर न आए कोई भी संकट
इसलिए ख़ुद संकट से लड़ जाता है।।
एक पिता संतान के हिस्से में आने वाले
मुश्किल रूपी धूप को हर लेता है
तमाम झंझावातों से उबार देता है
भले ही ख़ुद सहन करता है असहनीय दर्द।।
एक पिता नहीं देखना चाहता है
अपने बच्चे को किसी भी पल उदास
पिता की बस इतनी ही रहती है अभिलाषा
मेरी संतान के हिस्से में हो असीमित ख़ुशी।।
एक पिता जब असमय ही ईश्वर के
पास चला जाता है सर्वदा के लिए
तो संतान के ऊपर टूट जाता है दुःख का पहाड़
ख़ुद को संभालना संतान के लिए होता है बहुत कठिन।।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित