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"बशर"
कविता
सब जायज़ दिखाई देता है
शीशा सच ही बोलेगा
सुकून मग़र बशर भरपूर है
मैं हो गया फ़कीर बशर
वक़्त से बशर बना कर चल
कुछ भी नहीं है बशर बात नई जिंदगी में
घर की बात बशर रखा कर घर मेंअपने
चाल बशर उक़ज़ा की मतवाली है
मतलब की बातें करते हैं
किसीको जीना आ जाता है बशर
हयाते-मुस्त'आर बशर कमाल की हो
वक़्त मिलता ही कहाँ है बशर जिंदगी को संवरने के लिए
ख़त्म करो बशर येह तलाश अपनी गैरों की हयात में
और बशर इस जहां में क्या रखा है
सुकूँ से बशर हम सैर करें
तू ख़ुद यहाँ पर बशर जबतक किसीके काम का नहीं
बशर मग़र कभी रोया नहीं
बशर सब -कुछ जान लेता है
सुकून वोह बशर मिल गया इक फ़क़ीरी से
बशर ज़ेरे-ए-असर आकर दामने-कोह के सहन में बस गया
बशर तुझको जीना अभी आया ही नहीं
ख़ामोश रहकर बशर वो अश्आर हज़ार कह देते हैं
इक उम्र गुजरी है बशर यहाँ तक आने में
खुशबुएं नदारद बशर
किसका बशर इंतज़ार करें
जो कभी नहीं रोते बशर उन्हे क्या ग़म नहीं होते
अच्छा-खासा वक़्त हमारा बशर जहाँ से गुज़र गया
तुमअपने सपने बशर जिस ज़बान में देखो
सालती है बशर हमको येह ख़ामोशी औलाद की
किस क़दर है बशर जरा देखिए दिलका विश्वास उनका
साथ जिस शख़्स के हमेशा तुमने शराफ़त की होती है बशर
दिल का बुरा नहीं बशर आदमी वक़्त का मारा है
अबतो जीना शुरू कर बशर
विसाले-हबीब की बशर सदा हमको रहती आस है
बीते हुए दिन बशर अब अक्सर बेहतर लगने लगते हैं
सितम हमने बशर क्या क्या न क़ल्ब बेचारे पे किए
असल जिंदगी बशर हर तर्ज़ ओ तक़रीर से परे होती है
कामिल कोई शय नहीं है इधर बशर जमाने की
जख़्म-ए-जिगर को बशर मेरे हरा अभी कुछ रोज रहने दे
हयात में मग़र बशर हयात से मात खाता है आदमी
बेसबब बोलने का नुकसान मग़र बशर ज़रूर हो जाएगा
बेसबब बोलने का नुकसान मग़र बशर ज़रूर हो जाएगा
नेकदिल इन्सान भी बशर यहाँ गुनहगार हो जाते हैं
मुकम्मल कर सफ़र बशर हम आते हैं
इन चरागों को तो बशर बुझ ही जाना था
ख़ाकसारी में भी बशर उन की बड़ी शान होती है
निगाहें आज तक टिकी हैं बशर उसी तरफ़ मुंतज़िर तुम्हारी
मुस्कुराते रहो बशर
ख़ामोशी से बेहतर लफ़्ज अगर बशर हों तो बोलिए
तहरीर-ए-मुक़द्दर लिख दी है बशर खुदा ने हमारी पानी पर
चार दिनों का है तू तो बशर मेहमान यहाँ
सुकून थोड़ातो अपने लिएभी बचाकर रख बशर
ज़ीस्त से जिंदगी-भर से यूं खेलता रहा है बशर
जीवन वह है बशर जो हम ने जिया है
अना के मरीज़ की बशर दवा क्या है
आता नहीं है बशर कभी फ़न कोई उस्ताद के बग़ैर
सुलझी हुई मिली थी बशर हयात आदमी को
पीछे रहबर के क्यूं चलें बशर जब हम अपनी ही डगर चलें
खेलते रहेंगे रक़ीब बशर हमारे जज़्बात से
हंसने के लिए बशर रोनेको तैयार हो जाता है
आरजू दिल की बशर कह कर बयाँ की नहीं जती
*साथ बशर अपने ला नहीं सकता*
जमाने गुज़र जाते हैं बशर खुशियों के आने में
*बशर अपने रास्ते बदलता रहा*
अच्छे -भले लोग बशर बीमार हो जाते हैं
*हमें बशर हरसू इन्सान में इन्सान नज़र आता है*
*रहगुज़र मुकद्दर में ''बशर'' तेरे लिखा है*
*है तसव्वुर के भी पार बशर*
*हम से ही "बशर" हमारी बात हो गई*
*हयात ने मारा बशर*
क्या बताए बशर किसीको
*पता ही नहीं नाम बशर का*
*जग से नहीं हौड़ बशर*
*जीने की आरज़ू रखे है बशर*
कुछ ऐसा लिखो बशर
जीने की हसरत है
"बशर" किरदार तेरा कितना महान है
'बशर' को चालबाजियां कहां आती हैं
*मुफ्त की शय*
हमसफ़र
शर्माते हैं
सलीक़ा
*लिहाज*
हुनर ख़ामुशी का सीख बशर
दिल बदल गए
*उन्हींसे दूर रहना उन्हींको चाहना*
हुई नींदें हराम रातों की
हालाते-हयात को बशर नसीब समझ बैठे
हालाते-हयात को बशर नसीब समझ बैठे
ख़ुलूस किस शय का नाम है"
चलते बने लोग बशर खाक डाल कर कब्र पर
मन भरकर बशर बात हुई
रोया मग़र बशर गोया आकर दिसम्बर के महीने में
खामोशियां इस क़दर "बशर" नहीं अच्छी
खुदसे सुनना चाहता हूँ
बतियाते रहा करो बशर
जख़्म दिखलाकर तमाशा क्या करना
तवज्जोह किया करो दिलके मकान की
जन्नत को भी ला सकता है क़रीब अपने
मुर्शिद खड़ा देख कर
जद अपनी "बशर" अपने दस्तरस में नहीं
खुद खुदा ही जाने उसकी खुदाई
वोह फ़ना हो जाते हैं सचके हकपर खड़े रहने में
इरादा न बदल
इरादा न बदल
किसी के लिए किसी में कोई खास बात होती है ©️ "बशर"
हम भी तो देखें दिल उसका अपने सीने में डालकर
नुक़ूश-ए-दर्द अपने छोड़ चला
विसाले-यार न हुआ
हो गई पहचान उसे
एक और बरस हयात से चला गया
*बेसबब बशर बेताब*
पूछो तो यही कहता है बशर
चले जाएं रंजो-मलाल भी
कोई किसीसे जफ़ा करे ऐसा न खुदा करे
तन्हाइयों की हैं बशर मजबूरियाँ बहुत
मां -बाप भी बंट जाते हैं
भवसागर तरने को
सच और हक़ की सब बात करते हैं
सैलाब लाने लगे हैं कभी बूंद को तरसाने लगे हैं
सुख़न कहने से रह गया
बहने लगी सर्द सबा
तीसरा हमें गवारा नहीं बशर
नसीब ने दिए हमें बेशुमार ग़म
पूछते आना बशर चैनो-अमन के दाम
बशर की औक़ात क्या है
तिरे शहर में क्या क्या नहीं होता
खुद से बशर बेगाना होता चला गया
खुदको खाली मत होने देना
तहरीर ए कलम नायाब हो
होंठों पे तबस्सुम हो
खुदही बशर खुदके रहबर
'बशर' नादान है
खूबियाँ औरों की देख "बशर"
लोग अपनी ज़रूरतों को याद रखते हैं
राब्तों में दम नहीं है
उम्रे-तमाम इंतज़ार करने को भी हम हैं तैयार
सरक न जाएं रिश्ते हिफ़ाज़त रखा करो
फरिश्तों को सुना है पलटते हुए अपनी बात से
बाप औलाद से डरता है
तुम्हारा नाम बिगाड़ेंगे
गिला अब कुछ भी नहीं
अंधेरों का कोई मुंतज़िर नहीं होता
दुश्मनी सरेआम किया करो
तुमको मुबारक ये जहाँ
उसीको हम देखते हैं
"बशर" खुद को धोका देता है
आजाद मुक़म्मल तौर से ख़ुश्बू-ए-चमन है
है कोई बशर फ़रिश्ता मग़र
जानवर आदमी से प्यार करता है
ज़ीस्त है बशर जीकर जाएगी
अहसासात और जज़्बात यहाँ
हम में उनमें फ़र्क ही क्या
'बशर'' ऐसा भी दर-ब-दर नहीं देखा
बशर तू कहाँ फिदा है
बात कुछ भी नहीं
महरूम कर दिया दादू को पोते के दीदार से
सूरत से भी बढ़ कर होता है स्वावलंबन
राब्ते निभाते भी हैं
हिज्र-ओ-विसाल का सिलसिला रह गया
कौन है तेरा मेरे सिवा यहाँ पर
और फिर वो भी सो जाते हैं
साथ की पहचान
फ़ासला दरमियान में रहा
जीने केलिए जगह नहीं
हौसला मग़र है
मसर्रतों के गीत
मां - बाप के पास बैठ जाया करो
बशर तेरी कहानी इब्रतनाक है
मुकद्दर है 'बशर' का परेशाँ होना
पैग़ाम रखो याद
मुकद्दर में नहीं गुफ़्तगू
न रही किसीसे उम्मीद
अकेले कैसे जिया जाता है
लफ़्ज़ों की भरमार किसी
बशर किताबी बातें कहता है
है बशर तैयार
रंग जाओ दिल के रंग में
हवाओं से जर्द पत्तों को इश्क़
रात काटी जाती है
ख़ुश्बू भी हो तो बात बने
रातों की नींद गंवाई है
हासिले-सुकूने-क़ल्ब
सलाहियत से महरूम
कुछ तो वज़ह रही होगी
खुद को भूला हूँ तेरी याद में
इंतज़ार-ए-हबीब ताक़यामत रहेगा © डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर"
अब तो 'बशर' याद ही नहीं
हिम्मत बुलंद है जहां
जीना सिखाकर ही दम लेगी
सभी दौलते-दर्द से मालामाल हैं
"बशर" बड़ा मुख़्लिस था
दौलत से परखने लगे हैं
वक़्त की बयार
बंदपड़े अपने घटके पट खोल
भीतर बाहर एक जैसा हो
अपने तेरे तुझको जगाने नहीं आए
किताब नायाब लिखना
नश्वर सब ये संसार मान कर
शफ़्फ़ाफ़ हो क्या खाक दामन
हुआ मशहूर हयात में
बताएं क्या नुक़्स आपको मय के बशर
सोता ही नहीं है आदमी आठों पहर
सच्चे अहबाब मिलना ख़ूबसूरत ईनाम है
सफ़र का हो गया
अपना घर तो अपना घर होता है
जिस नज़र से देखेंगे दुनिया वैसीही दिखाई देगी @ "बशर "
हमतो अपनी गलतियों केलिए मश्हूर हैं
दाल में कहाँ कहाँ काला है
अपनी शेख़ी बघारने वाले लोग
नींद रात-भर आती नहीं है बशर
ख़ुलूस-ए-वफ़ा दरकिनार हुई
आदमजात झुक जाएगी
इन्सान की औक़ात उसकी गैरत में होती है
इन्सान बस खुश रहा करे
उम्मीदों की कश्तियां
सुगम सरल डगर कहते हैं
मुश्क़िल है घरको घर करना
बहुत कुछ खोना पड़ता है
भीगी हुई वोह रातें सारी
दर-हक़ीक़त ये है कि मां की बदौलत हम हैं
पता लगा कि लापता निकले
बशर हैं सब अग़्यार यहाँ
जब तलक "बशर" बच्चा था
बर्बाद ज्यादा हुआ बचा कम है
सहर की आस में
"बशर" फिरभी अकेला था
अपना ना रहे साथ तो याद आती है
किनारों से ही खिसकती है ज़मीन अक़्सर
ये तो दिलों का सौदा है बशर
तुम रह जाओ टूटकर
यकसाँ खुद भगवान नहीं होता
भरोसा करना चाहिए
रोना तमाम उम्र का तेरा बेकार हो जाएगा
येह सब सपने लगते हैं
सब भूल जाएंगे तुम कितने अच्छे थे
फिसलने वालों का पता तो चला
सारा शहर उसके जनाजे में निकला इक वो न निकला जनाज़ा जिसके तक़ाज़े में निकला @"बशर"सारा का सारा शहर उसके जनाजे में निकला
रूह फिर लौट आती है
हम खुदही कहीं रहे नहीं साथ अपने
हयाते-मुस्त'आर हमारी बिन तुम्हारे न गुज़रेगी
दिल लगाने पर भी नहीं लगता बशर तिरे शहर में
दिल लगाने पर भी नहीं लगता बशर तिरे शहर में
कब्र किसीकी कभी होती कहीं आबाद नहीं
खुद ही खर्च हो जाओगे
छोटे दिल वाले बड़ी बातों की फ़िक्र नहीं किया करते। -बशर
बदले हुओं से मिलने को तैयार नहीं हैं हम
खुदगर्ज लोग सिखा जाते हैं
पता ही नहीं कौन हबीब है कौन रक़ीब है
चाहत नहीं रहती कुछ कहने की
चाहत ही मिट जाती है जग में रहने की
वहीं पे खड़े थे हम
वहीं पे खड़े थे हम
नासमझी और नादानी से
राब्ता अपने रब से रखिए
मुर्शिद मौला पीर फ़कीर न कोई
राब्ते रह गए मतलब के वास्ते
किसीको सहना अलग बात है
सलाहियत कम होती है
मां की दुआ का असर
दिनरैन जगकर गर बिताए तो कोई कैसे बिताए! © 'बशर' بشر.
कोई अपना चाहिए
ख़बर नहीं के वो मौत की क़तार में है
दीनो-ईमान वाले यहाँपर अक़्सर नाखुश रहते हैं
फरेबियों का यहाँ इंतज़ार करते हैं
हमारे हुनर का ना कहीं पर नामोनिशान था
तू भी मेरी कमज़ोरी है
तू नदिया की धार मैं किनारा सा रहता हूँ
छोटेसे नामकी शुरुआत मुश्क़िल से होती है
अपना पीछा करते हुए अरसा हुआ
दिले-मुज़्तर थाम लिया
मुहब्बत में फ़ना
कौन से हुनर थे मुझमें
मुक़म्मल किसीके इश्क़ का ख्वाब नहीं
बस गया है एक उसी का नाम
चल अब दूकान अपनी बंद कर
वापस घर लौट कर भी जाना है
खुदको आस्मान पर नहीं रखा हमने
हमको अपने घर लौटना भी होगा
हम मुंतज़िर ही बैठे रहे
मुक़द्दर हर-पल लिखा जाता है
ग़लती देखने वाले की भी होती है
ना तो नाकाबिल औलाद हराम का खा खाकर शर्माती है! @"बशर"
जेरो-ज़र पर नज़र रखता है @"बशर"
अपनों की फ़िक्र से निकलें तो हाल अपना देखें © 'बशर' bashar بشر
आस्माँ में आशियाँ नहीं होता
मुश्क़िल काम में दिलचस्पी कमाल होती है
अन्दरूनी ताक़त
हरगिज़ नहीं बशर बेखुदी की रहगुज़र होता
रैनबसेरे के मेहमानों की बात क्या करें
गुल खिलना ही नहीं
आनेवाले हैं बहोत
कितने लोग वो देखते हैं जो उन से छुपाया जा रहा है! @"बशर"
इंतज़ार तेरा
उस से क्या जुदा होना
क्या बहिश्त में भी भूखे रहना पड़ता है
सिवाय अच्छाइयों के बाक़ी कुछ बचा ही नहीं
बिखर जाने दो सपने बीती रात के
मैं जल्द ही समझदार हो गया
ज़िन्दगी जीने का नाम है कोई सजा नहीं
याद आते हैं
हम सब किराएदार हैं
मुसाफ़िरखाना संसार है
उम्र-ए-तमाम शब-ए-तन्हाई है
बात ही कुछ ऐसी है
आँखें दिखा रहा है
लबोंको बंद ज्यादा रखो कम खोलो
इत्तेफ़ाक और कहीं होता है
वही झूठ बोला जिसका झूठ कभी झूठ नही लगा हमको
मिले नहीं बुराई किसी सूरत जमाने से
दिल में नहीं ठहर पाएगा
दिल में नहीं ठहर पाएगा
जुनूँ नहीं खोना चाहिए
सबके सब बे-असर हुए
कबूतर बाहर निकालना
ना जाने किस मुकाम
वो घड़ी हमारे लिए किस मतलब की
खुदा से भी नहीं डरता है
जीने लगा तो बशर मर गया
रहगुज़र ही में बशर गुज़र गया
जिंदगी के सफ़र में बशर वापस जाना है
अगर हम मुस्कुराएंगे तो
निगाहे-मुहब्बत से ज़ालिम ने इशारा न किया होता
मसर्रतों के चुरा लो अवसर थोड़े बहुत
हमको ही है नहीं ख़बर हमारी
बंदा तक़दीर के भरोसे ही रहता है
गाँव की गलियों से निकलकर कोईदरवेश आया @"बशर"
सबब बेकली और बेचैनी का
भूलकर भी अपना घर ना छोडना
उड़ने की हिम्मत चाहिए
तुझ बिन दुनिया वीरान लिखते हैं
तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
मां-बाप केलिए बेटोंसे बढ़ कर रही हैं बेटियाँ
जगमगाता है अक़्सर घर बेटियों वाला
कोशिश की आस काम आती है
अक्ल अपने पास ज्यादा समझते हैं
'अक़्ल अपने पास ज्यादा समझते हैं
बचपन अक़्सर याद आता है
बचपन अक़्सर बहुत याद आता है
जीना ही छोड़ दे 'बशर' ग़म-ए - रंज - ओ - मलाल में
जीनाही छोड़दे बशर ग़मे-रंजो-मलाल में
इन्सान वही होता है
फासले की तदबीर
बदल डाली अपनी तक़दीर
खाली हाथों ही आना पड़ता है
रुह ने भरी है परवाज़
ठहरे नहीं दिन सुनहरे रुकी नहीं सुहानी रात किसीकी @"बशर" بشر
काबे में भी वही है काशी में भी वही है
लोगों के दिलों में जगह बनाकर
दिखावा मत करो
याद सताती है
"बशर" खुद फिर रोता है
अपनी खुदीमें ही मैं अपना कारवाँ होता जा रहा हूँ आलमी यौम ए बुज़ुर्गियत मुबारक @ "बशर" بشر
साये में उसके कभी बैठा नहीं कोई बशर
मुझको मुझमें रहने ही नहीं दिया आख़िरी तक
मशक़्क़त इन्सान की
क्या अबकभी कोई न बसेगा सूनीपड़ी जमींपर
अपने अंदर सैलाब समेटे बहता होगा
खाना-पीना सब हराम हो गया
बबूलके पेड़ बोकर बशर आम कहाँसे खाएगा
क़िस्मत पर किसीका नाम नहीं लिखा होता
ऐसा करके दिखाएं कि निंदक शर्मिन्दा हो जाएं @"बशर"
सफ़र में किसीका कहाँ घर "बशर"
किसी बशर पर यक़ीन नहीं रहा
मुहब्बत के चराग़ जलाते चलें! @ डॉ.एन.आर. कस्वाँ"बशर"
पहचान अपनी बनानी पड़ती है
इन्सान कभी वालदैन से बड़ा हो नहीं सकता
रास्ते निकल जाते हैं
गुमाँ ओ ग़ुरूर मत कर बशर
आप मुक़म्मल दुनिया हो अपने घर केलिए
अजूबा यहाँ पर नहीं 'बशर' कोई इकलौते हैं
वोह तबीब ओ हबीब तेरे हर मर्ज की दवा जानता है
अहबाब भी कम नहीं बदले
माटी के पुतले को बनाने वाला कूज़ा-गर स्वयं भगवान है
चंद रोज की मेहमान है
ज्यादा देर तक टिका नहीं सुरूर किसीका बशर
प्यार में हम हर हद से गुज़र जाएंगे
ये शेरो-सुख़न उसे बुलाने केलिए है
खुदसे मिलनाभी उतनाही ज़रूरी है
दिल की अनसुनी करकेअक़्ल का निकला दिवाला
कल था न आज है 'बशर' ये ज़माना आपका
हुनर महज़ लफ़्ज़ों का नाकाफ़ी है
हमारी भी चाह की कोई राह निकले
अपने तुम्हारे कितने अपने हैं
हम किसीकी फ़ितरत को नहीं बदल पाएंगे
विसाल-ए-हक़ीक़त से "बशर" फ़रेब से तुम हिज्र करो
रात रात न हुई
सारी क़ायनात की तस्वीर बदल जाएगी खुद बदलो तुम्हारी तक़दीर बदल जाएगी सुकून -ए-क़ल्ब अपना कायम रखो बशर बाहरके रंजो-ग़म की तासीर बदल जाएगी
नजरों से समझाकर देखेंगे ©
पतंग हौसले की "बशर" रख सदा परवाज़ पर
अपनी कोई ख़्वाहिश नहीं
अजीब दुनिया
किसी केलिए धड़कना भी ज़रूरी है
खुद को हया आती है
जीवन तेरा बशर बस इक सफ़र लगता है
इन्सान ग़लत रस्तेपर चल पड़ता है अक़्सर
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