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कवितानज़्म
सियासत की स्याह रातों में भाईचारे का ख़्वाब लिखना होता कैसे ग़ुरबत में ग़रीब के गुजारे का हिसाब लिखना आखिर येह इंतिखाब भीतो तुझे खुद ही करना है 'बशर' इस इंतिखाब की ताबीर पे किताब कोई नायाब लिखना © 'बशर' بشر.