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Start Date 15-Feb-21
End Date 21-Feb-21
Competition Information/Details
आज फिर नीरव रात की खामोशी में अपने कमरे में बैठा अपनी अधूरी कहानी को पूरा करने की कोशिश कर रहा था पर उसका अंत उसे सूझ ही नही रहा था काफी जद्दोजहद के बाद वो अपनी डायरी बंद करके अपने बेड पर पसर गया पर दिमाग मे कहानी के अंत की सोच थी कि बार बार समुद्र में आये तूफानी लहरों की भांति हिलोरे ले रहे थे।
अपनी कहानी के अंत की खोज में वो अपने भूत में पहुँच गया था जहाँ से इस कहानी की कलियां फूटने की शुरुआत हुई थी...
वो जैसे खुद से ही बातें करने लगा..!
बात दो साल पहले की है जब अचानक से काम के सिलसिले में अपने परिवार से दूर मुझे जयपुर आना पड़ा था
दिन भरके काम की थकान से चूर जब मैं अपने गेस्टहाउस पहुँचता तब मानो गेस्ट हाउस की खामोश दरों दीवार मुझे खाने को आती थी मुझ नीरव के मन की नीरवता उस समय और गहरा जाती जब घर से फोन तो आता पर किसी कारण वश बात नही हो पाती
उस दिन भी कुछ ऐसा ही था घर से आया फोन खराब नेटवर्किंग के कारण खुद ही डिसकनेक्ट होगया था मेरे बार बार कॉल करने पर भी जब फोन नही लगा तो एक गहरी उदासी को अपने जेहन में लपेट कर मैं खिड़की के पास खड़ा हो दूर आसमान के उड़ते पछियों से खुद की तुलना करने लगा।
शाम होते ही कैसे ये सभी अपने अपने आशियाने की ओर अग्रसर थे। एक मैं ही हूँ जो अपने आशियाने से दूर था विचारों की उधेड़बुन अपना कोई संचा तैयार कर पाता उससे पहले ही मेरे मोबाइल की रिंगटोन बज गई।
आवाज सुन कर चेहरे पर अत्यंत ओजस्वी मुस्कान मेरे होठों के किनारे धरना दे कर बैठ गई।
मैंने तुरन्त भाग कर मोबाइल उठाया।
माँ और बच्चों की आवाज़ सुनने को मैं बेचैन था
"हैलो....
वहाँ से एक मखमली अपरिचित आवाज कानो में शहद घोलने लगी।
कौन...?
मैने दिमाग पर जोर देते हुये पूछा।
मैं गूँजन...!
नाम बताने के बाद उसने जो बातों की झड़ी लगाई तो ये जानने की भी कोशिश न कि के उससे बातें करने वाला हैं कौन.!
उसकी सारी बातें मेरे सर से ऊपर जा रही थी फिर भी मैं उसकी रस भरी आवाज़ में मैं खोने लगा था
अब तू भी कुछ बोलेगा या मैं ही बोलती रहूँगी..!
वो बोल कर चुप हुई।
जी... मैं क्या बोलूँ..!
कौन बोल रहा है?
जी.. मैं नीरव..!
नीरव कौन..? मुझे तो दीप से बात करनी थी
लगता हैं देवी जी आपने गलत नम्बर मिला दिया है..!
मैं एक छोटी से हँसी के साथ बोला
मेरी हँसी जैसे आग में घी का काम कर गई
रॉन्ग नम्बर था तो तुम बोल नही सकते थे ?
कह कर एक लम्बी चौड़ी डाट लगा कर फोन काट दिया।
मुझे समझ नही आया इसमे मेरी गलती कहाँ थी।
पर आज अकेले पन का एहसास नही हो रहा थ मीठी सी बोली में मैने खुद को उसमें डूबते महसूस किया।
उसकी आवाज़ रह रह कर कानो में गूँज रही थी
दिल तो चाह रहा था एक बार फिर उससे बात हो पर हिम्मत नही हुई ऐसे किसी अंजान लड़की को फोन करने की।
दूसरे दिन सुबह मैं ऑफिस के लिए निकल ही रहा था कि उसका कॉल आ गया
हैल्लो.. नीरव जी..!
उसकी मधुर आवाज में अपना नाम सुन मैं जन्नत पहुँच गया।
मैं खुद को संभालते हुए बोला
जी..बोलिये..!
माफ कीजियेगा कल गुस्से में कुछ ज्यादा ही बोल दिया जबकि गलती मेरी ही थी..!
उसने बहुत ही शालीनता के साथ माफी माँगी
बस यही से मेरे जीवन की एक नई शुरुआत हो गई।
धीरे धीरे हम दोनों में बातें होने लगी और अब आँख उसकी गुड मॉर्निंग से खुलती तो रात उसकी बेवजह की बातों से, बातें करती सोती थी।
कुछ ही दिनों में हम दो अजनबी एक दूजे की जिंदगी का हिस्सा बन गये थे।
जी हाँ मुझे उसकी बातों से प्यार होने लगा था इस प्रेम-तरंग की तरंगें भी उसकी चुलबुली बातों से ही दिल मे उठने लगी थी....
क्रमश:
नीरव उस अंजनी अनदेखी लड़की गूँजन के प्रेम-पाश में बंधने लगा था अब वो उसकी चुलबुले अंदाज़ को उसकी खूबसूरती सँग बांध कर उसे अपने सपनो में सजाने लगा..! बस इसी परिस्थिति पर आपको गीत लिखना है।
कहानीकार
पूनम बागड़िया "पुनीत"
कवितागीत
अजनबी सी दस्तक
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अजनबी सी दस्तक ने सपने जगा दिए
अनजाने एहसास दिल में समा गए
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अच्छी रचना है , बिल्कुल कहानी के अनुरूप ।
हार्दिक आभार सरिता जी🙏🙏
कवितागीत
सा रे गा मा ( अंत का आरंभ)भाग-१
दिनांक--२१/०२/२०२१
विधा--गीत
विषय--- प्रेमी का इंतज़ार
ख्वाबों में आकर वो मुझको, यूँ सताने लगी है।
सारी- सारी रैना अब तो , वो जगाने लगी है।
छा रहा नशा मुझपर उसकी, प्यार
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कविताअतुकांत कविता
गरीबी और परायापन
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कौन बात करता है आजकल गरीब जानकर |
लोग अपना मुँह फेर लेते हैं उसे बदनसीब मानकर |
सबको डराती है यह गरीबी ,रूलाती है यह गरीबी |
दूर हो जाते हैं अपने भी ,कोई रह न जाता करीबी
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कविताअतुकांत कविता
गरीबी की मार
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तोड़ जाती है तुम्हारा विश्वास ,तोड़ जाती है हौसला |
गरीबी उजाड़ जाती है ,बना बनाया घोंसला |
अपने पराए हो जाते हैं जैसे साँप और नेवला
हर कोई करने लगता है तुम्हारी जिंदगी का
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लेखआलेख
लोकतंत्र में व्यक्ति कहाँ है ?
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क्या यह व्यवस्था व्यक्ति की गरिमा को सुनिश्चित कर पा रही है ? मेरा उत्तर है नहीं | हम अभी भी तर्क नहीं ताकत की भाषा समझते हैं | तमाम तर्कों को ताकत
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Bahut Achi Kavita Aapne likhi hai babhi Shree. Hume aap per proud hai.
धन्यवाद जी
नवनीत का अर्थ मक्खन होता है शायद। पहले मैंने इस्तेमाल किया है फिर हमने । रचना के भाव अच्छे हैं , थोड़ी वर्तनी गत सुधार की आवश्यकता है आदरणीया ।
सरिता जी मुझे आपका यूं निष्पक्ष होकर समझाना बहुत बहुत अच्छा लगा। आपका यह प्रेम सभी पर बनाये रखिएगा।
जी अवश्य
कवितालयबद्ध कविता
डायरी के पन्नों में सिमट न सका मेरा प्यार,
अनकहे किस्से का अंत नहीं होना था...
सोचते
सोचते जब गिरा तुम्हारी यादों के छाँव में,
तो मुझे ऐसे ही ख़ामोखा नहीं सोना था...
मुझे करना था सफ़र उस हमसफ़र के यादों
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कविताअतुकांत कविता
गाँव ! तुम्हारी बड़ी याद आती है
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गाँव बहुत शिकायत है तुझसे
पर बहुत याद आती है तुम्हारी
शहर की इन सड़कों पर ,अभी भी तेरी गलियाँ हैं भारी |
कुछ हैं वजह जिससे तेरे यहाँ
जीना दुस्वार
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कविताअतुकांत कविता
बदलते शक्ल
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हम दर्पण लेकर आए थे |
उन्होंने आईना दिखा दिया |
उनकी तस्वीर देखना चाहता था
उन्होंने मेरी शक्ल समझा दिया |
बड़े अरमान थे उनके रूप उकेरने की
उन्होंने मेरी शक्ल ही उकेर दी |
जैसे
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कविताअतुकांत कविता
कुछ उल्टा सीधा
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कहना था थोड़ा,मैं ज्यादा ही कह गया |
न जाने कैसे कब किस धारा में बह गया |
सुनकर हम भौंचक्के रह गए |
हम जो सुन न पाए वो वह कह गए |
प्यार का अतिरेक था ,या चाहत का भँवर
हम ड़ूबने
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कविताअतुकांत कविता
गाँव ! तुम्हारी बड़ी याद आती है
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गाँव बहुत शिकायत है तुझसे
पर बहुत याद आती है तुम्हारी
शहर की इन सड़कों पर ,अभी भी तेरी गलियाँ हैं भारी |
कुछ हैं वजह जिससे तेरे यहाँ
जीना दुस्वार
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कवितागजल
सावन की बूंदों ने ऐसा जादू ढाया है
मेरे मन में हसरतों को फिर से जगाया है
चलो डूब जाए प्यार के सागर में
रिम झिम बरखा ने गीत गाया है
सावन की .....
कोमल सा ये मन,सुनके बिरहा की धुन
हो गया व्याकुल, देख सावन
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कविताअतुकांत कविता
जिंदगी ! तुझे पढ़ न पाया
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तूने जिंदगी को लिखा
मैं जिंदगी को पढ़ न पाया
डूबता उतराता ही रह गया
सागर की इन लहरों में
ऊपर आकाश था
पर मैं न चढ़ पाया |
समझ न पाया इसकी भाषा
शायद बड़ी थी
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कविताअतुकांत कविता
कामदेव राज
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भारत हो अमेरिका
हर जगह कामदेव का राज एक सा |
लक्ष्मी हर जगह दिखती हावी |
शिवजी में हर किसी को आज
फिर से दिखने लगी है खराबी
सरस्वती के नाम पर
चलता रंग गुलाबी |
न जाने कामदेव ने
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कवितागीत
ओ सनम मेरे सनम.....
ये क्या हुआ कैसे हुआ
जाने न मन.........
कैसी हैं बेताबियाँ, सुन रहा
अब तरफ़ तेरी ही आवाज़ मन.....
धड़कनों को आ रही तेरी सदा
लगता है जैसे हो तुझसे रिश्ता
जनम-जनम का सनम.....
ये क्या हुआ कैसे हुआ
जाने
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कविताअतुकांत कविता
मन के आईने में
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क्यों किसी के पैरों के आहट से ही
दिल धड़क जाता है |
रगों में लहु तेज दौड़ जाता है |
अजीब सी झनझनाहट होती है
जैसे लगता है कोई बिजली सी
कौंध गयी सारे जहन में |
कुछ अनकहे से अल्फाज
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कविताअतुकांत कविता
प्यार का मर्म
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प्यार जाना है मैंने ये कैसे कहूँ |
प्यार का कायदा न अबतक आया मुझे |
ऐसा नहीं कि मैंने की वेवफाई
पर वादा निभाना न आया मुझे |
वे वादे भी करते हैं ,कसमें भी खाते हैं |
प्यार जताने
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कविताअतुकांत कविता
प्यार का मर्म
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प्यार जाना है मैंने ये कैसे कहूँ |
प्यार का कायदा न अबतक आया मुझे |
ऐसा नहीं कि मैंने की वेवफाई
पर वादा निभाना न आया मुझे |
वे वादे भी करते हैं ,कसमें भी खाते हैं |
प्यार जताने
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बहुत समय बाद आपकी रचना देखकर अच्छा लगा आदरणीय। 🙏🏻
धन्यवाद आदरणीया | आपने ही तो इस मंच पर लाया है |
बहुत प्यार भरी रचना है आपकी, बहुत बढ़िया चित्र का चयन भी बखूबी किया..! ऐसे ही लिखते रहे शुभकामनाएं..!💐
आत्मीय आभार आदरणीया
बहुत खूबसूरत यह तस्वीर मानो जीवित कर रही है रचना को। बहुत प्यारा सा लिखा है आपने
हार्दिक आभार आदरणीया
कवितागीत
आयोजन:- सा रे गा मा (अंत का आरंभ)
विषय :- प्रणय मिलन की आकांक्षा
विधा:- गीत
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【रचना】
प्रीत तेरा मंत्र जैसा, स्वास मे ही धारता हूँ।
बिन तुम्हारे कुछ नहीं मैं, बात यह स्वीकारता हूँ।।
आ प्रिये
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बहुत ही खूबसूरत शब्द संयोजन आदरणीय 🙏
सहृदय आभार
शानदार शब्दों का चयन.. बेहतरीन कल संयोजन... और विषय पर सटीक बैठती रचना... बहुत खूब... आप सतत् ऐसे ही खूबसूरत सृजन करते रहे आदरणीय.. एवं मंच पर अपनी रचना प्रेषित करते रहे.. बहुत बधाई
सादर अभिवादन सहित नमन
वाह... माँ हिन्दी की आप पर विशेष कृपा है..
सादर अभिवादन सहित नमन
बहुत खूब
सादर अभिवादन सहित नमन
सहृदय आभार
सहृदय आभार
बहुत खूबसूरत..👌
सहृदय आभार
सहृदय आभार आदरणीया
सहृदय आभार
सहृदय आभार
कवितागीत
शीर्षक-फोन ए मोहब्बत
इक अंजानी मोहतरमा से
फोन पर बात हो गई
बोली सुनकर दिल ने कहा
ख्वाबों की मल्लिका मिल गई
इक चुलबुली नाज़नी से
दिल की डोर बंध गई
चंचल और शोख हसीना से
अनदेखी चाहत हो गई
खनकती सी
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वाह सपना जी .. फोनिक मुलाकातें...👌👌👌
शुक्रिया पूनम जी🙏🥰
कवितागीत
मीठी-मीठी बातें
तेरी मीठी मीठी बातों से
दिल को चेन आ गया
मखमली आवाज जो सुनु
धक धक धक जियरा बोले
नयन बांवरे तुझको ढूंढे
तेरी मीठी मीठी बातों से
दिल को चेन आ गया
डायल जो घुमाऊँ तेरा नंबर
लग जाय
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भाव अच्छे हैं । बड़ी ज्यादा हो गई । शब्दों की पुनरावृत्ति न होती तो छोटी रहती ।
Ok....sujhav ke liye sukriya...aise hi pyar bnaye rakhiye aur khule dil se pratikriya dete rahiye