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"हाँ"
कविता
हाँ वही इश्क करना है मुझे
"हाँ... ज़िद है"
हाँ, यही तो जीवन है
"चाँद की चाँदनी "
कवि हो जाना
हँसो तो कुछ इस तरह
किताब लिखना
कहाँ से लाओगे
हाँ माँ तुम ही तो हो
हाँ इश्क़ में तेरी मेरी एक ही राशि है
इतना हँसो कि रोने का वक्त ना मिलो
चल खुसरो, घर आपने
हाँ, वो प्यार करती है
धुंधलापन ------------------------ इस रात के घने अंधेरे में मैं देखना चाहता हूँ चारों ओर इस दुनियाँ का रंग रूप पर कुछ दिखता नहीं पर मन में एक रोशनी सी दिखती है | बस हर तरफ से नजरें हारकर बस उसकी तरफ मुड़ जाती है दिखती है वह दूर से आती हुई पर उस
मेरे बाबू जी
सुनहरा बचपन
क्यों पढ़ूँ अखबार
नये दौर के बच्चों में नादानियाँ कहाँ रही
हम भी कभी इंसान थे
इतना हँसें कि रोने का वक्त ना मिले
अंतर मिट गया
कहाँ कठिन है ज़िंदगी
उलझन
एक अदद जिंदगी
मेरे बालों की सफेदी
एक टुकड़ा धूप
वो चली आ रही थी
मनवा रे
साठ गाँठ
हँसो कुछ इस तरह
कविता
सिमटते परिवार
कहाँ खो गया मेरा प्यार
विकास
और ये सब तुडे़-मुडे़ से, सिकुडे़ से अखबार
धरती, अंबर और समंदर
पाली थी अब तक जो खुशफहमियाँ
कहाँ खो गया मेरा प्यार
बहरी क्यों सरकार आज है
अधकचरे से ये रिश्ते
शहर में बसा गँवार मन
जिंदगी ऐसे ही चलती है
हाँ मैं थोड़ी बदल गईं हूँ
सब कुछ पाकर भी....
हाँ हम आम लोग हैं।
आहट साजन की
मेरा प्यारा मीशु
सियासत जरूरी है।
कहाँ गए वो बचपन के दिन
#बचपन के पल...
गाड़ी धीरे हाँको
संवेदना
बस बच्चा ही बना रहे
अंजान पथ
कहाँ खो गए तुम
मन बन वनवासी राम सा
उसकी हर सौगात को सम्मान दें
तेरे बिना धड़कन भी कहाँ धड़कती है
तेरे बिना धड़कन भी अब कहाँ धड़कती है
कविता
कहाँ गए वे दिन
चल खुसरो घर आपने
हम भी कभी इंसान थे
अखबार
सड़कों पर बिखरी हुई यह विवशता
चेहरे छुपाने पड़ रहे हैं
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
हाँ, हँसो कुछ इस तरह
मैं आज की व्यवस्था हूँ
हाँ, यही तो जीवन है
कौन जाने कब कहाँ ......
मेरे बाबू जी
कहाँ गये वो दिन कान्हा...
मैं मेरी हाँ मेरी...
आफ़्ताब-ए-ज़ीस्त
तुम ही बतलाओ कान्हा...
दिये तले अँधेरे
यात्री गण अपने सामान का खुद ध्यान रखें
मैं व्यवस्था हूँ
मैं व्यवस्था हूँ
कौन यहाँ पर...
गोरा-काला
मैं एक सोयी चेतना हूँ
कल फिर हो ना हो
खो गया है मेरा प्यार
अर्द्धनारीश्वर सा सच
पहला पहला कदम
यात्री गण अपने सामान का खुद ध्यान रखें
मतलब की बातें करते हैं
किसीको पता कहाँ है
तेरी यहाँ पर याद किसे रहती है
वक़्त मिलता ही कहाँ है बशर जिंदगी को संवरने के लिए
तू ख़ुद यहाँ पर बशर जबतक किसीके काम का नहीं
निकालने को जाए कहाँ ख़ुद का ग़ुबार आदमी
बंदे तेरा अंदर कहाँ है
ख़त में उसके आज भी वही ख़ुश्बू आती है
इक उम्र गुजरी है बशर यहाँ तक आने में
दीपक जगता बुझता रहता है
अच्छा-खासा वक़्त हमारा बशर जहाँ से गुज़र गया
नेकदिल इन्सान भी बशर यहाँ गुनहगार हो जाते हैं
चार दिनों का है तू तो बशर मेहमान यहाँ
मंज़िल से लौटे हुए मुसाफ़िर कहाँ जाएं
बीते हुए वोह जमाने ढूंढ़ कर कहाँ से लाऊँ
कहाँ सुनता है
*यहाँ पर नहीं हूँ मैं*
*माटी में माटी होने दफ़्न आ गई*
*रंग-ए-मौसम-ए-हयात*
*ख़्वाहिशें कहाँ ख़त्म होती हैं*
ज़मीन से उठकर मिट्टी कहाँतक जाएगी
आना यहाँ दुबारा नहीं
जिंन्दगी हमें कहाँ कहाँ ले गई
मंजिल से फिरभी दूरी है
किनारों को मिलाने चले हो
जाने तू कहाँ है माँ
तुमको मुबारक ये जहाँ
अय्यारी जहाँ होगी
हर भरे दरख़्त अब कहाँ रहे
जाने वजूद हमारा कहाँ होगा
दूर खुद से भागता रहा आदमी
कहाँ गया आदमी
रुपय्या बचा कहाँ है
मंहगी यहाँ जमीनें कमबख़्त हो गई
अहसासात और जज़्बात यहाँ
बशर तू कहाँ फिदा है
मुद्दत हुई जिसे खुदसे मिले
कौन है तेरा मेरे सिवा यहाँ पर
अकेला अब्र बेचारा कहाँ कहाँ बरसे
बाद-ए-आज कल भी होते हैं
वो लड़की नहीं है वो एक तितली है
जब रखवाला ही जुआरी था
जितनी सफाई देगा ज्यादा यहाँ
दाल में कहाँ कहाँ काला है
इन्सान की क़ीमत कहाँ
रहा नहीं वक़्त रौशनाई का
बशर हैं सब अग़्यार यहाँ
सुकून-ए-क़ल्ब किसीको यहाँ नहीं मिलता
ख़ुदकुशी का हौसला कहाँ से लाएं
अहबाब की पसंद का हो ख़्याल जहां कमाल वहाँ है
रूतबा उसकी पहचान नज़र आता है
दीनो-ईमान वाले यहाँपर अक़्सर नाखुश रहते हैं
फरेबियों का यहाँ इंतज़ार करते हैं
नाकाम मोहब्बत 🥹
लबों से बयां नहीं होती
चांद 🌙
एहसास
ये ज़िन्दगी के रेले
ग़ज़ल
आदमी जिंदा कहाँ है आज आदमी
मौत न जाने कहाँ मर गई
बबूलके पेड़ बोकर बशर आम कहाँसे खाएगा
सफ़र में किसीका कहाँ घर "बशर"
अहबाब की रक़ाबतें पहचानने का इल्म कहाँ से लाईए
वक़्त कहाँ है
अजूबा यहाँ पर नहीं 'बशर' कोई इकलौते हैं
इस जहाँसे आगे जहाँ औरभी है
इन्सान कहाँ है
आदमी के भेस में मिलते शैतान यहाँ हैं
इन्सान का इम्तिहान हालात लेते हैं
खुद को हया आती है
कहानी
"बाबा यहाँ ना छोड़ो मुझे..अपने साथ ले चलो।
बोए पेड़ बबुल के आम कहाँ से पाए
तुलनात्मक तलवार
जहाँ चाह वहॉं राह
" बादलों से घिरा आसमान "
"यादों के संग""
" कचरे-वाला " 💐💐
" फौजी -बिटिया " 💐💐
हाँजी ना जी
" अपना गाँव अपना देश " 🍁🍁
"वह मुझको छोड़ गया मां" 🌺🌺
लेख
जानें कहाँ गए वो दिन
डर....
लाॅकडाउन का एक दिन
डायरी से...
सतर्कता की अति भी अच्छी नहीं
लोकतंत्र में व्यक्ति कहाँ है ?
धुँधला होता रंग
धुँधला होता रंग
कारवाँ गुज़र गया
सुनो सब ठीक होगा
इश्क़
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