कवितागजल
*** GHAZAL ***--
वक़्त के बदलाव में क्या से क्या हो गये हम l
हुज़ूम ए दुनियाँ में न जाने कहाँ खो गये हम l
वो खूबियां हमारी जिन पर हमें नाज था l
वो बिंदास लम्हा जब बिना ताज सरताज था l
उमर छोटी थी पर जज्बा बड़ा था l
लोगों के सुख -दुःख में हरदम खड़ा था l
ये चलते चलते न जाने कहाँ खो गया ल
वक्त के बदलाव में क्या से क्या हो गया l
हुज़ूम ए दुनियाँ में इन्सान न जाने कहाँ खो गया l
मन कि मर्जी के मालिक हुआ करते थे हम l
पाबन्दिया बाँध पाएं कहाँ उनमे दम l
रोजी -रोटी तो जरिया था जुड़ने का मगर,
उसके खातिर अपनों से ही जुदा हो गये हम l
वक़्त चाहने से भी हमारे लौट के अब नहीं आएगा l
हर गुजरता लम्हा दूर हमसे चला जायेगा l
जिंदगी रफ्त -रफ्ता गुजरती गयी l
ख्वाहिशें भी हमारी जरुरत दर जरुरत बदलती गयीं l
जिंदगी में कुछ हमने पाया तो कुछ खो गया l
वक़्त के बदलाव में क्या से क्या हो गये हम l
हुज़ूम ए दुनियाँ में न जानें कहाँ खो गये हम l
(आलोक मिश्र )
कृपया मेरी इस ग़ज़ल को अपना भरपूर आशीर्वाद दें l मैंने बहुत ही शिद्दत से लिखी है ये ग़ज़ल l
कृपया मेरी इस ग़ज़ल को अपना भरपूर आशीर्वाद दें l मैंने बहुत ही शिद्दत से लिखी है ये ग़ज़ल l