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"लिए"
कविता
खुद में खुद के लिए अभि ज़िदा हूँ मैं (स्वाभिमान)
इसलिए दुःखी हूँ
ललायित हूं मैं
बेबसी
करवाचौथ
एक चॉकलेट उनके लिए
हमसफ़र/दोस्त
मैं आज की व्यवस्था हूँ
*प्यार अपने आप से कर.....*
जिंदगी की डायरी
मैं व्यवस्था हूँ
मैं व्यवस्था हूँ
अपने सपनो के लिए
गीत.. हाथ में खंजर लिए
तुम क्या जानो तुम मेरे लिए क्या हो।
वक़्त मिलता ही कहाँ है बशर जिंदगी को संवरने के लिए
न्याय के लिए,,,
इन्सानियत के लिए फ़रियाद करें
जिंदगी मिली है जीने के लिए
जीने के लिए सारा जग भागे
सुधार आगे के लिए परिवेश
ख़ामोशी से बेहतर लफ़्ज अगर बशर हों तो बोलिए
सुकून थोड़ातो अपने लिएभी बचाकर रख बशर
हंसने के लिए बशर रोनेको तैयार हो जाता है
जीने केलिए बंदा मरने को तैयार हो जाता है
अपने -अपने रस्ते हो लिए
*जीने के लिए मरता हूँ मैं*
सफ़र से गुजरता हर कोई है
इबादत केलिए न इल्मो-हुनर चाहिए
*शाद रहने केलिए नाशाद रहता है*
किसी के लिए किसी में कोई खास बात होती है ©️ "बशर"
तेरी इक झलक पाने केलिए आतुर
मुस्तक़बिल के अपने खुद ही खुदा होंगे हम
मुस्तक़बिल के अपने खुद ही खुदा होंगे हम
उम्र-भर के लिए सो जाएंगे
खुद केलिए बचाकर अंधेरा रखा
नहीं बसर करने के लिए किसीने पूछा
जफाओं के लिए मैं वफ़ा सोचूं
जीहुजूरी का नाफरमान हूँ मैं
जख़्मे-जिगर सहलाने केलिए
जीने केलिए जगह नहीं
मेहनतकश 'ऐश-ओ-'इशरत केलिए रोता नहीं
रहे बैठे तिश्नगी लिए अरसा
बेटा उसके लिए फ़रिश्ता है
कुदरत का शाहकार लिए फिरते है
है बशर तैयार
दो जून केलिए
जीने केलिए तैयार रहो
खुदको समझाने केलिए तैयार रहो
जीने केलिए मरना पड़त है
किसी और केलिए रोकर भी देखो
आदमी बेचैन है सांसभर चैनो-अमन केलिए
हमतो अपनी गलतियों केलिए मश्हूर हैं
शुक्रिया मेरी जिंदगी में आने केलिए
जीने के लिए मरना पड़ता है
लम्हे जो जी लिए अपने नाम चाहिए
कोई किसी केलिए ज़रूरी नहीं हो सकता
हसरतों के पगडंडियों पर बढ़ने लगा हूं.....
आख़िर ज़हर तो पीना पड़ता है
डूबने केलिए इक जिंदगी चाहिए
आज और कल बिगाड दिए
सामने आकर खड़े हो गए ग़म ए हयात
साथ अपनी कब्र लिए फिरते हैं
दोस्तों से हारा हो
मनहूस जगह है जमाने केलिए
नाम केलिए बदनाम हो जाता है
मन के पट खोल दिया करो
जिंदगी तिरे लिए हमने मरके देख लिया
खून पसीना बहाना पड़ता है
जीत नहीं सकता है किसी केलिए
कहने केलिए तैयार रहो
खुद क्यूँ खुद केलिए बुरा सोचो
मसाइल सारे लोगों को लड़ाने केलिए
दूसरों की जान बचाने के लिए 🥹🥀
वो घड़ी हमारे लिए किस मतलब की
सुकूनै-क़ल्ब केलिए नींद ज़रूरी
मां-बाप केलिए बेटोंसे बढ़ कर रही हैं बेटियाँ
रखे ऊंची आवाज़
कमाने के लिए घर से निकलना पड़ता है
काम केलिए निकल जाया करो
ज़ौक़-ए-परवाज़ केलिए खुला आसमान है
असामान्य काम को अंजाम देने के लिए तैयार करती है
वक़्त कहाँ है
बेवज़ह लोगों केलिए दुनियामें कोईजगह नहीं है
हमारे लिए दुआ मांगने वाले ही हमारे क़ातिल निकले
क़ामयाबी केलिए तुम्हारा यक़ीन ज़रूरी है
ज़माना क्या कम है रक़ाबत केलिए
आप मुक़म्मल दुनिया हो अपने घर केलिए
दोस्त हमेशा दोस्ती निभाने के फ़र्ज़ के लिए होने चाहिए
इस जहाँसे आगे जहाँ औरभी है
क्या मर्द अपने प्यार केलिए मर सकता है
ये शेरो-सुख़न उसे बुलाने केलिए है
जगना पड़ताहै सुब्ह फिरसे उड़ने केलिए
खुद केलिए सच्चा रहने वाला दूसरों केलिए झूठा नहीं हो सकता
याद आते हैं सिर्फ़ भुलाने केलिए
बेहतर मुस्तक़बिल केलिए
ख़ून-ए-जिगर चाहिए फ़न केलिए
हुनर महज़ लफ़्ज़ों का नाकाफ़ी है
एक वज़ह ने मज़बूर कर दिया रुक जाने केलिए
किसी केलिए धड़कना भी ज़रूरी है
अकेला पुरू ही काफ़ी है सिकंदर को हराने केलिए
कहानी
हिंदी दिवस के लिए
महंगी भूल
अपशगुन
माँ के लिए
लेख
क्या ये कलम का अपमान नहीं?
एक दूजे के लिए
महिलाओ की सुरक्षा के लिए समाज को सजग होना पड़ेगा।
शिक्षक बच्चों के भविष्य के लिए अपना आज और कल कुर्बान करते हैं
पीयूष गोयल द्वारा लिखित पुस्तक “सोचना तो पड़ेगा ही” के लिए साक्षात्कार..
मेरे लिए बसंत का विशेष महत्व है।
बच्चे मानव जाति के लिए वरदान हैं
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