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"कोई"
कविता
माँ
कोई दिल में जब उतरता है
गुरु की महिमा कोई क्या गाए
धुंधलापन ------------------------ इस रात के घने अंधेरे में मैं देखना चाहता हूँ चारों ओर इस दुनियाँ का रंग रूप पर कुछ दिखता नहीं पर मन में एक रोशनी सी दिखती है | बस हर तरफ से नजरें हारकर बस उसकी तरफ मुड़ जाती है दिखती है वह दूर से आती हुई पर उस
खुद में खूबसूरत है हम
जब कोई धोखा देता है
अब कोई नही है
२०२० तुमसे कोई शिकायत नहीं
जब कोई बात दिल में घर कर जाती है
संवेदना
कोई शहर बाकी है
क्या तेरा भी है नाम कोई?
कोई तो खास है
अदृश्य सी कोई आस
है ऐसा कोई
कोई मजहब नहीं होता
भूली-बिसरी कोई याद
जिंदगी से कोई शिक़वा नहीं...
कोई राह दिखला दो
हैं कोई बात
भूली-बिसरी कोई याद
कविता की आहट
कोई लैला बुलाता है
सावन के महीने में कोई बड़ी शिद्दत से याद आता है
ख़ुदा का अपना कोई मज़हब नहीं है
क्यूं करे कोई नफ़रत उनसे
काश लूटने कोई हमारे रंजो -मलाल आ जाता
कोई येह तो बताए के हिंदुस्तान और भी है
कामिल कोई शय नहीं है इधर बशर जमाने की
कोई नहीं है क़रीब मिरे
आता नहीं है बशर कभी फ़न कोई उस्ताद के बग़ैर
फ़न कोई उस्ताद के बग़ैर आता नहीं
मेरी किसीसे कोई जफ़ा नहीं
कोई और काम आ गया है
*वक़्त से बड़ा नहीं उस्ताद कोई*
कोई अपने मां-बाप से बड़ा नहीं हो सकता
मतलब कोई और निकालता है
सफ़र से गुजरता हर कोई है
कोई साथ दे 😍
किसी के लिए किसी में कोई खास बात होती है ©️ "बशर"
कोई ठेहरा नही 💗💗
कहीं कोई ऐब नहीं
कोई किसीसे जफ़ा करे ऐसा न खुदा करे
शब्दशिल्पी कोईभी नहीं हो जता
कहीं कोई दवा नहीं शिफ़ा नहीं
सवाल ही गलत किया जाए तो जवाब कोई क्या बताए
कोई मुनव्वर नहीं मिलता
बदल गए कल और आज
तुमसे ज्यादा नहीं है खास कोई
दिमाग से पैदल बेबात की बात करता है
चाहे भी कोई तो किस क़दर चाहे
अंधेरों का कोई मुंतज़िर नहीं होता
ना हम को कोई शिकायत है
है कोई बशर फ़रिश्ता मग़र
उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं
मुक़म्मल कहीं कोई सपना
कोई अपनों से दूर न रहे
पहूँच कोई नहीं रहा है
हर कोई आम खाना चाहता है
दुनिया से कोई उम्मीद ही नहीं
उसे कोई सूचित करो
इसे समझाये कोई
बस दुआओं में मिला कोई हक़ नहीं आया
कोई भी चीज खास नहीं है
ऐतिबार कोई एक तोड़कर जाता है
कोई फसल न लहलहाई
ज़रूर कोई दम है
और कोई नहीं मेरा ही साया था
कोई बेवफ़ा हो जाए
आंखों ने मेरी कोई सपना नहीं देखा
मफ़रूर कहे चाहे कोई मग़रूर कहे
मुझे नहीं फ़िक्र कोई हाले-दिल बताने में
कोई किसी केलिए ज़रूरी नहीं हो सकता
मालिक-वालिक कोई नहीं
शायद मसाइल का कोई हल भी हो
जायका चखने में कोई हर्ज नहीं है
तुम्हेभी कोई ग़म नही हमें भी कोई ग़म नहीं
ख़ामोशी से बड़ी कोई बात नहीं
नहीं कोई ग़म फ़कीर बन जाने का
रातोंरात कोई मुल्क़ हिंदुस्तान नहीं हो जाता
घरबार कोई क्या देखे
तीरगी को सुब्ह ओ सहर कोई कैसे कहे
हरकोई हरकिसी से बेगाना है
अपने अंदर तो कोई-कोई कलंदर था
मुर्शिद मौला पीर फ़कीर न कोई
इश्क़ 💔🥀
दिनरैन जगकर गर बिताए तो कोई कैसे बिताए! © 'बशर' بشر.
तेरे फैसले पे मेरा कोई सवाल नहीं
कोई अपना चाहिए
कोई भी जुस्तजू बाक़ी न रहे
राजी हमसे कोई था ही नहीं
कोई पहचानता नहीं था
न हबीब का कोई पयाम है
ज़िन्दगी जीने का नाम है कोई सजा नहीं
मरने से पहले कोई कार ए नुमाया तो कर जाते
हमाराअपना जहां कोई तो हो
दिल पर कोई गहरी बात लग जाती है
बग़ैर गलतियों के तो कोई तजुर्बा ही नहीं
गाँव की गलियों से निकलकर कोईदरवेश आया @"बशर"
साये में उसके कभी बैठा नहीं कोई बशर
क्या अबकभी कोई न बसेगा सूनीपड़ी जमींपर
कोई पराया कोई अपना नहीं रहता
दिलचस्पी बाक़ी कोई मुझ को रही नहीं हयात में
शराबी से शराबी कहे चल कोई शराबी ढूंढें
दूसरे भी पसंद करने लगेंगे
बेवज़ह लोगों केलिए दुनियामें कोईजगह नहीं है
इन्सान कभी वालदैन से बड़ा हो नहीं सकता
उससे न जा सकाहै आजतलक कहीं कोई बचकर
मरहम-शिफ़ा इसका क्या कराए कोई
कोई किसीका आसक्त नहीं होता
कोई गैर क्या समझेगा
आपके अलावा आपके साथ कोई नहीं
अजूबा यहाँ पर नहीं 'बशर' कोई इकलौते हैं
हमारी भी चाह की कोई राह निकले
बाप-बेटे से बढ़कर दादू-पोते का प्यार
अपनी कोई ख़्वाहिश नहीं
लेख
“कोई भी अमर नहीं है लेकिन संघर्ष हमेशा चलता है”
प्रेम कोई खेल नहीं
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