कवितालयबद्ध कविता
देख रहा हूँ जीवन को,
तेरे इन दो नैनो से।
तू हंसती तो मिलती प्रेरणा,
उपजी नव किरणों से।
चलता तेरी उंगली थामें,
देख निरन्तर चरणों को।
तूने सिखलाया है सब कुछ,
स्वीकार कर अभिनंदनों को।
चुका नही पाऊंगा माँ,
मैं कभी भी इन ऋणों को।
याद तेरी आएगी जब-जब,
खोल भूतकाल के सब पट,
मैं छुउंगा तेरे चरणों को।-नेहा शर्मा