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Sahitya Arpan Competition - दहेज
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दहेज

Competition Stats

  • #Entries 17

  • #Likes 18

  • Start Date 02-Mar-21

  • End Date 05-Mar-21

  • Competition Information/Details

    कहते हैं कि दहेज प्रथा खत्म होगयी। परन्तु आज भी यह एक कीड़े की तरह समाज को खोखला कर रही है। आये दिन समाचार पत्रों, सोशल मिडिया व समाचारों में टीवी पर इस विषय में कुछ न कुछ चलता ही रहता है। आइये इसी विषय को अपनी कलम से आईना दिखाते हैं। एक प्रहार करते हैं ऐसी कुरीति पर। इस विषय इस कुरीति पर आप सभी की कलम अवश्य चलनी चाहिये

    रचना भेजने के नियम
    1. रचनाएं विषयानुसार ही लिखे.. धार्मिक राजनैतिक भावनाओं को आहत करने वाली रचना न हो।
    2. यदि रचना लम्बी है तो आप उसे भाग में विभाजित कर डाल सकते है।
    3. वेबसाइट पर पोस्ट करने के उपरांत अपनी रचना या उसका लिंक सोशल मीडिया पर साझा कर सकते हैं।
    4. रचना पोस्ट करने के लिए एडिटिंग ऑप्शन में प्रतियोगिता का चुनाव करना न भूले। या फिर प्रतियोगिता लिंक से ही ऐड एंट्री करें।
    5. रचना के साथ चित्र कोई भी सलंग्न अवश्य करें।

    धन्यवाद
    साहित्य अर्पण कार्यकारिणी

    कहानीलघुकथा

    #दहेज़

    • Edited 3 years ago
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    और....कहानी पूरी हो गयी
    --------------------------------------
    रविवार का दिन था।वीकेंड की छुट्टियाँ थीं। इसलिए वह घर पर थी। उसने ड्राइंग रूम में खेल रही छ: वर्षीय बेटी से पूछा - " गुड्डा-गुड़िया के साथ खेल रही हो बेटा
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    Kamlesh  Vajpeyi

    Kamlesh Vajpeyi 2 years ago

    ह्रदयस्पर्शी..!!

    Kamlesh  Vajpeyi

    Kamlesh Vajpeyi 2 years ago

    ह्रदयस्पर्शी..!!

    शिवम राव मणि

    शिवम राव मणि 3 years ago

    बहुत भावपूर्ण

    कहानीसामाजिक

    कठपुतली

    • Edited 3 years ago
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    #

    "बहू? अरी ओ बहू ? सुनती हो? तुम्हारी पड़ोस वाली चाची आयी हैं दो कप चाय लिए आना?" :- मां जी ने बड़े अधिकार भरे लफ़्ज़ों में आदेश देते हुए मुझसे कहा।

    "हाँ लायी!" :- मैंने कहते हुए जल्दी से चूल्हे पर पानी रख कर
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    कहानीसामाजिक, प्रेरणादायक, लघुकथा

    बेटीयों की बलि कब तक?????

    • Edited 3 years ago
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    हम आये  दिन अखबारों में ये खबर पढ़ते हैं कि दहेज के लिए ससुराल वालों ने बहु को जला दिया। हर पल हर क्षण एक बेटी ससुराल वालों के अत्याचार का शिकार होती है।
    हर माता-पिता अपनी बेटीयों के लिए एक अच्छे
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    कहानीसामाजिक, लघुकथा

    सजा

    • Edited 3 years ago
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    टिंग-टोंग....टिंग-टोंग
    अपर्णा ने जैसे ही दरवाजा खोला पुलिस को देख सहम गई। चंद मिनटों में जितने बुरे विचार आ सकते थे, सोच दिल बैठ गया।हिम्मत कर बोली,"जी कहिए? किससे मिलना है आपको!"

    "अपर्णा जी हैं?"

    "जी
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    Champa Yadav

    Champa Yadav 3 years ago

    शानदार... और मार्मिक रचना👌

    Bina Chaturvedi

    Bina Chaturvedi 3 years ago

    बहुत सुंदर।हमेशा की तरह बेहतरीन कथानक।

    Ekta Kochar

    Ekta Kochar 3 years ago

    मार्मिक कहानी 👌👌👌👌👌👌

    Vijaykanta Pareek

    Vijaykanta Pareek 3 years ago

    Aankho ke aage drishy aa gya.marmik

    Bhavay Joshi

    Bhavay Joshi 3 years ago

    भावुक किंतु समाज की सच्ची तस्वीर

    Seema Pande

    Seema Pande 3 years ago

    Heart touching story 👌🏽

    Kamlesh  Vajpeyi

    Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

    अत्यंत मर्मस्पर्शी रचना..!

    Meeta Joshi3 years ago

    धन्यवाद सर🙏😊

    Shivangi lohomi

    Shivangi lohomi 3 years ago

    Speechless 😍👌👌👏👏 awesome story

    Meeta Joshi3 years ago

    Thank you so much❤️

    Mukesh Joshi

    Mukesh Joshi 3 years ago

    मार्मिक चित्रण व अपर्णा जी का मजबूत व्यक्तित्व👌👏

    Meeta Joshi3 years ago

    Thanks🙏

    लेखआलेख

    दहेज रूपी दानव

    • Edited 3 years ago
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    #दहेज़ रूपी दानव!

    दहेज तो हमारे समाज में एक आम- सी बात है। लड़की मतलब दहेज के पैसे इकट्ठा करना शुरू.....। चाहे लड़की खुद अपने पैरों में खड़ी क्यों ना हो.....? दहेज देना तो बनता है भाई.....!

    इस पर तो लड़के वालों
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    शिवम राव मणि

    शिवम राव मणि 3 years ago

    बिल्कुल सही

    Champa Yadav3 years ago

    शुक्रिया.... शिवम जी

    लेखआलेख

    दहेज देना है तो देना है

    • Edited 3 years ago
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    दहेज लेने और देने का रिवाज़ बहुत पेचीदा है। वेसे दहेज लेना और देना दोनों ही कानूनन जुर्म हैं लेकिन आज के दौर में ये जुर्म तब तक जुर्म नही कहलाता, जब तक की कोई जाकर ना बताये। मेने दहेज प्रथा को लेकर
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    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    अद्भुत

    शिवम राव मणि3 years ago

    धन्यवाद आपका

    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    अद्भुत

    लेखआलेख

    दहेज़ का अभिशाप

    • Edited 3 years ago
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    दहेज..का अभिशाप
    मात्र यह एक शब्द मन को झकझोर सा देता है.. न जाने कितनी दुल्हनों ने इसके दुष्प्रभाव झेले, कितनों ने चुपचाप अमानुषिक अत्याचार सहे, घुट घुट कर यन्त्रणाओं के बीच, जीवन जिया, कितनों ने
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    Poonam Bagadia

    Poonam Bagadia 3 years ago

    सार्थक लेख ...!

    Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

    जी.. धन्यवाद

    Meeta Joshi

    Meeta Joshi 3 years ago

    कम शब्दों में गहरी बात कही आपने

    Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

    मीता जी. धन्यवाद..!

    Meeta Joshi

    Meeta Joshi 3 years ago

    कम शब्दों में गहरी बात कही आपने

    Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

    जी..! आभार..!

    Pallavi Rani

    Pallavi Rani 3 years ago

    सार्थक प्रस्तुति आदरणीय

    Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

    जी. धन्यवाद

    Champa Yadav

    Champa Yadav 3 years ago

    बहुत.. खूब.. सर

    Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

    जी.. आभार

    Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

    जी.. आभार

    Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

    जी. बहुत धन्यवाद..!

    Amrita Pandey

    Amrita Pandey 3 years ago

    बहुत खूब लिखा सर, स्त्री के मन को सही पढ़ा है आपने।

    Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

    अम्रता जी बहुत धन्यवाद 🙏

    कवितालयबद्ध कविता

    "राख मेरी कौन ढोयेगा "

    • Edited 3 years ago
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    जिन्दगी ख़्वाहिशों का ढेर हो गयी
    दिया तूने सब पर थोड़ी देर हो गयी
    खुशियां सारी जलीं मेरी शोलों में धूं धूं कर
    नशीब मेरी ये दिलफरेब हो गयी।

    कई ख्वाब पाले थे मम्मी ने पापा ने
    अब जलते हुए दिये की
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    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    बहुत खूब 👌🏻

    Bandana Singh3 years ago

    बहुत बहुत आभार आपका

    कवितालयबद्ध कविता

    तुझे मजबूत बनना होगा

    • Edited 3 years ago
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    *दहेज*
    तुझे मजबूत बनना होगा
    कुरीतियों से लड़ना होगा।

    कोख में ही पाठ पढ़ाया
    बलिवेदी पर नहीं चढ़ाना होगा
    संयम शील आचरण कर
    कुठाराघातों से बचना होगा
    तुझे मज़बूत बनना होगा।

    निर्मोही अहंकारियों के
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    SHRUTI GARG

    SHRUTI GARG 3 years ago

    Bohot Khub

    Ritu Garg3 years ago

    धन्यवाद जी

    Kamlesh  Vajpeyi

    Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

    सुन्दर रचना

    Ritu Garg3 years ago

    जी धन्यवाद

    कविताअतुकांत कविता

    करुण अन्त

    • Edited 3 years ago
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    करुण अन्त
    -------------------

    नन्हीं सी परी उतरी है ,
    आज मां के द्वार,
    सब कर रहे थे ,
    उसका इन्तजार
    पापा की नन्ही गुड़िया ,
    मां की थी परछाई,
    भाई का दुलार थी ,
    दादी का अभिमान,
    परी होती गयी बड़ी,
    सुकोमल काया
    रूप का खजाना
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    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    👌🏻

    Madhu Andhiwal3 years ago

    Thanks

    कविताअतुकांत कविता

    आज कुछ नया लिखूंगी

    • Edited 3 years ago
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    आज कुछ नया लिखूंगी

    बहुत लिखा सजनी पर, साजन पर
    मौसम पर, बादल पर
    चूड़ी, बिंदिया, घूंघट पर
    रिश्तो की मर्यादा पर,
    आज कुछ नया लिखूंगी....

    दहेज रूपी दानव
    जो सुरसा की तरह
    मुंह खोले आए दिन
    निगल जाता है
    मेरी
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    Kamlesh  Vajpeyi

    Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

    sach hai Dahejpratha ko khatam karne ke liye Shiksha Anivarya hai

    Amrita Pandey3 years ago

    Ji..

    कविताअतुकांत कविता

    मैं खूँटे से नहीं बंधूगीं

    • Edited 3 years ago
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    *मैं खूंटे से नहीं बंधूगीं*

    मेरी एक दीदी थी
    सुंदर सर्वगुण सम्पन्न
    आज्ञाकारी सबकी
    बाँध दी गई एक खूंटे से
    चढ़ गई दहेज की बलि
    मुझे नहीं बनना वैसी
    मेरा अपना अस्तित्व है
    देखूँगी परखूंगी सब
    फ़िर लूँगी
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    कविताअतुकांत कविता

    मैं खूँटे से नहीं बंधूगीं

    • Edited 3 years ago
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    *मैं खूंटे से नहीं बंधूगीं*

    मेरी एक दीदी थी
    सुंदर सर्वगुण सम्पन्न
    आज्ञाकारी सबकी
    बाँध दी गई एक खूंटे से
    चढ़ गई दहेज की बलि
    मुझे नहीं बनना वैसी
    मेरा अपना अस्तित्व है
    देखूँगी परखूंगी सब
    फ़िर लूँगी
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    कविताअतुकांत कविता

    मैं खूंटे से नहीं बंधूगीं

    • Edited 3 years ago
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    *मैं खूंटे से नहीं बंधूगीं*

    मेरी एक दीदी थी
    सुंदर सर्वगुण सम्पन्न
    आज्ञाकारी सबकी
    बाँध दी गई एक खूंटे से
    चढ़ गई दहेज की बलि
    मुझे नहीं बनना वैसी
    मेरा अपना अस्तित्व है
    देखूँगी परखूंगी सब
    फ़िर लूँगी
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    कविताअतुकांत कविता

    दहेज़ की भेंट

    • Edited 3 years ago
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    पिछले वर्ष आई थी नेहर,
    गुमसुम सी-कुम्हलाई सी.।
    सबके बीच थी फिर भी
    कहीं खोई सी-घबराई सी l।
    पूछा जब माँ ने- है कष्ट तुझे क्या?
    उत्तर में गिर पड़े थे अश्रु
    माँ के आंचल में आकर
    नहीं जाना चाहती थी
    वो उस
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    कविताअतुकांत कविता

    कहती है आज की नारी

    • Edited 3 years ago
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    शीर्षक: कहती हैं आज की नारी

    जब चाहिए दहेज भारी
    क्यों चाहिए शिक्षित नारी।

    जब करवाना चाकरी बहू से
    क्यों चाहिए नौकरी बहू से।

    चाहिए दान में कार और मोटर ।
    और चाहिए मुफ्त की नौकर।

    बहू चाहिए तुमको गाय।
    जो
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    कविताअन्य

    शादी एक व्यापार

    • Edited 3 years ago
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    शादी एक व्यापार

    बहू के साथ सौतेला व्यवहार मत करो,
    सुनो शादी करो, तुम व्यापार मत करो ।

    जितनी जल्दी पक्की होती है रिश्ते की बात,
    सामान की लिस्ट बनने की हो जाती शुरुआत,
    ज़्यादा नहीं, इन्हें चाहिए गाड़ी
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    Bandana Singh

    Bandana Singh 3 years ago

    बहुत ही सुन्दर रचना है आपकी ।

    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    बेहतरीन रचना 👌🏻

    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    बहुत खूबसूरत रचना 👌🏻