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Start Date 02-Mar-21
End Date 05-Mar-21
Writer | Rank | Certificate |
---|---|---|
Vijayanand Singh | Certificate | |
Seema krishna Singh | Certificate | |
Kamlesh Vajpeyi | Certificate |
Competition Information/Details
कहते हैं कि दहेज प्रथा खत्म होगयी। परन्तु आज भी यह एक कीड़े की तरह समाज को खोखला कर रही है। आये दिन समाचार पत्रों, सोशल मिडिया व समाचारों में टीवी पर इस विषय में कुछ न कुछ चलता ही रहता है। आइये इसी विषय को अपनी कलम से आईना दिखाते हैं। एक प्रहार करते हैं ऐसी कुरीति पर। इस विषय इस कुरीति पर आप सभी की कलम अवश्य चलनी चाहिये
रचना भेजने के नियम
1. रचनाएं विषयानुसार ही लिखे.. धार्मिक राजनैतिक भावनाओं को आहत करने वाली रचना न हो।
2. यदि रचना लम्बी है तो आप उसे भाग में विभाजित कर डाल सकते है।
3. वेबसाइट पर पोस्ट करने के उपरांत अपनी रचना या उसका लिंक सोशल मीडिया पर साझा कर सकते हैं।
4. रचना पोस्ट करने के लिए एडिटिंग ऑप्शन में प्रतियोगिता का चुनाव करना न भूले। या फिर प्रतियोगिता लिंक से ही ऐड एंट्री करें।
5. रचना के साथ चित्र कोई भी सलंग्न अवश्य करें।
धन्यवाद
साहित्य अर्पण कार्यकारिणी
कहानीसामाजिक, प्रेरणादायक, लघुकथा
हम आये दिन अखबारों में ये खबर पढ़ते हैं कि दहेज के लिए ससुराल वालों ने बहु को जला दिया। हर पल हर क्षण एक बेटी ससुराल वालों के अत्याचार का शिकार होती है।
हर माता-पिता अपनी बेटीयों के लिए एक अच्छे
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Speechless 😍👌👌👏👏 awesome story
Thank you so much❤️
मार्मिक चित्रण व अपर्णा जी का मजबूत व्यक्तित्व👌👏
Thanks🙏
लेखआलेख
#दहेज़ रूपी दानव!
दहेज तो हमारे समाज में एक आम- सी बात है। लड़की मतलब दहेज के पैसे इकट्ठा करना शुरू.....। चाहे लड़की खुद अपने पैरों में खड़ी क्यों ना हो.....? दहेज देना तो बनता है भाई.....!
इस पर तो लड़के वालों
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लेखआलेख
दहेज लेने और देने का रिवाज़ बहुत पेचीदा है। वेसे दहेज लेना और देना दोनों ही कानूनन जुर्म हैं लेकिन आज के दौर में ये जुर्म तब तक जुर्म नही कहलाता, जब तक की कोई जाकर ना बताये। मेने दहेज प्रथा को लेकर
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लेखआलेख
दहेज..का अभिशाप
मात्र यह एक शब्द मन को झकझोर सा देता है.. न जाने कितनी दुल्हनों ने इसके दुष्प्रभाव झेले, कितनों ने चुपचाप अमानुषिक अत्याचार सहे, घुट घुट कर यन्त्रणाओं के बीच, जीवन जिया, कितनों ने
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कम शब्दों में गहरी बात कही आपने
मीता जी. धन्यवाद..!
कम शब्दों में गहरी बात कही आपने
जी..! आभार..!
बहुत.. खूब.. सर
जी.. आभार
जी.. आभार
जी. बहुत धन्यवाद..!
बहुत खूब लिखा सर, स्त्री के मन को सही पढ़ा है आपने।
अम्रता जी बहुत धन्यवाद 🙏
कवितालयबद्ध कविता
जिन्दगी ख़्वाहिशों का ढेर हो गयी
दिया तूने सब पर थोड़ी देर हो गयी
खुशियां सारी जलीं मेरी शोलों में धूं धूं कर
नशीब मेरी ये दिलफरेब हो गयी।
कई ख्वाब पाले थे मम्मी ने पापा ने
अब जलते हुए दिये की
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कवितालयबद्ध कविता
*दहेज*
तुझे मजबूत बनना होगा
कुरीतियों से लड़ना होगा।
कोख में ही पाठ पढ़ाया
बलिवेदी पर नहीं चढ़ाना होगा
संयम शील आचरण कर
कुठाराघातों से बचना होगा
तुझे मज़बूत बनना होगा।
निर्मोही अहंकारियों के
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कविताअतुकांत कविता
आज कुछ नया लिखूंगी
बहुत लिखा सजनी पर, साजन पर
मौसम पर, बादल पर
चूड़ी, बिंदिया, घूंघट पर
रिश्तो की मर्यादा पर,
आज कुछ नया लिखूंगी....
दहेज रूपी दानव
जो सुरसा की तरह
मुंह खोले आए दिन
निगल जाता है
मेरी
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sach hai Dahejpratha ko khatam karne ke liye Shiksha Anivarya hai
Ji..
कविताअतुकांत कविता
*मैं खूंटे से नहीं बंधूगीं*
मेरी एक दीदी थी
सुंदर सर्वगुण सम्पन्न
आज्ञाकारी सबकी
बाँध दी गई एक खूंटे से
चढ़ गई दहेज की बलि
मुझे नहीं बनना वैसी
मेरा अपना अस्तित्व है
देखूँगी परखूंगी सब
फ़िर लूँगी
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कविताअतुकांत कविता
*मैं खूंटे से नहीं बंधूगीं*
मेरी एक दीदी थी
सुंदर सर्वगुण सम्पन्न
आज्ञाकारी सबकी
बाँध दी गई एक खूंटे से
चढ़ गई दहेज की बलि
मुझे नहीं बनना वैसी
मेरा अपना अस्तित्व है
देखूँगी परखूंगी सब
फ़िर लूँगी
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कविताअतुकांत कविता
*मैं खूंटे से नहीं बंधूगीं*
मेरी एक दीदी थी
सुंदर सर्वगुण सम्पन्न
आज्ञाकारी सबकी
बाँध दी गई एक खूंटे से
चढ़ गई दहेज की बलि
मुझे नहीं बनना वैसी
मेरा अपना अस्तित्व है
देखूँगी परखूंगी सब
फ़िर लूँगी
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कविताअतुकांत कविता
पिछले वर्ष आई थी नेहर,
गुमसुम सी-कुम्हलाई सी.।
सबके बीच थी फिर भी
कहीं खोई सी-घबराई सी l।
पूछा जब माँ ने- है कष्ट तुझे क्या?
उत्तर में गिर पड़े थे अश्रु
माँ के आंचल में आकर
नहीं जाना चाहती थी
वो उस
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कविताअतुकांत कविता
शीर्षक: कहती हैं आज की नारी
जब चाहिए दहेज भारी
क्यों चाहिए शिक्षित नारी।
जब करवाना चाकरी बहू से
क्यों चाहिए नौकरी बहू से।
चाहिए दान में कार और मोटर ।
और चाहिए मुफ्त की नौकर।
बहू चाहिए तुमको गाय।
जो
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कविताअन्य
शादी एक व्यापार
बहू के साथ सौतेला व्यवहार मत करो,
सुनो शादी करो, तुम व्यापार मत करो ।
जितनी जल्दी पक्की होती है रिश्ते की बात,
सामान की लिस्ट बनने की हो जाती शुरुआत,
ज़्यादा नहीं, इन्हें चाहिए गाड़ी
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