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"जाने"
कविता
यह तिरंगा कैनवास
मैंने पूछा चाँद से
तुम्हारा ज़िक्र
मैं और वह
हिन्दी को दो मान
सन्नाटे में तैरता सा कोलाहल
जाने ये कैसी है मीडिया
मैं जिंदगो हूँ
ना जाने क्यूँ
किरदार
मासूम कलियां
मेरे जज्बात-2
मुझे हारकर जीत जाने दो
ना जाने किस वेश में
तुम क्यों शोक मनाते हो?
ना जाने नारी कब किस रूप में ढल जाती है
बँटे आज हम जाने क्यूँ
दिल का दर्द
अब कोई नही है
मिले खुदसे हुए ज़माना सा लगता है
तारे जमीन पर
एक जमाना बीत गया
डर रहा हूं मैं
प्रेम एक अहसास
आज भी पीछा करती हैं
मेरा बावरा मन
अलविदा ऐ जाने वाले
सब कुछ पाकर भी....
एक पुरानी खिड़की
यह तिरंगा कैनवास
साल भर अपना रिश्ता रहा
ना जाने क्यूँ आज अधूरा
ना जाने कौन
ओ सनम मेरे सनम
फूल या कांटा
तेरे जाने के बाद।
अन्नदाता
छलकते जज्बात *❤
मन बन वनवासी राम सा
बीते हुए लम्हों में
उसकी हर सौगात को सम्मान दें
आजकल पल पल रंग बदल रहे हैं लोग
तेरे मेरे दरमियां
ऐ फूल
दिल ही तो जाने है
डिजिटल जनरेशन
सन्नाटे में तैरता सा कोलाहल
सबसे पीछे
भय की शिला
माँ
बीते दिन वापस नहींं आते
बँटे आज हम जाने क्यूँ
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
एक अंधाधुंध दौड़ में
मैं तो तो अकेला ही चला था
एक अंधाधुंध दौड़ में
कौन जाने कब कहाँ ......
मैंने पूछा चाँद से
बप्पा, तुम जल्दी चले गये
माँ जाने क्या कहती है
मेरा अपना आप
"हमसफर "💐💐
जरुरी तो नहीं
मैं तो तो अकेला ही चला था
वक्त के इस काफिले में
कल फिर हो ना हो
वक्त के इस काफिले में
हमारा बचपन 🥰🥰
मां
मतलब की बातें करते हैं
दर्द किसानों के वो क्या जाने
अज़ीज़ मुझे समझ न सके अजनबी मग़र समझ गए
*पहचाने जाने में जमाने लगे हैं*
प्रेम या दर्द
विरह गीत
*हम तो अपने इरादे जानें*
रूह तक उतर जाने दो
"आधुनिक पथभ्रष्ट समाज"
मेहमानों की तरह रहे
किसी और का नसीब क्या जानें
खुद खुदा ही जाने उसकी खुदाई
*मनकी गहराई कौन जाने
अखबारों में छप जाने से नाम नहीं होता
जिंदगी की आँधी
जाने तू कहाँ है माँ
इधर से गुज़र जाने के बाद
जाने वजूद हमारा कहाँ होगा
जिंदा रहना है
दिल टूट जाने के बाद
~ नाराज़गी मेरे महबूब की
रंग लगाकर नहीं गया
अब खुदको भी समय कुछ दान करो
पत्थर जमा करते रहे
मुसाफ़िर उतर रहा था
जब तलक "बशर" बच्चा था
वोभी जाने जो हमसे कहा न जाए
ख़बर में आते हैं
नहीं कोई ग़म फ़कीर बन जाने का
व्यर्थ न जाने पाएं तौला हो के मण
इन्सां संभल जाता है तूफ़ान-ए-हवादिश से निकल जाने के बाद
आने जाने के दरमियाँ ज़ालिम ज़माना पड़ता है
वक़्तही कहां लगता है
पछतावा
भैंस के आगे बीन बजाने का क्या फ़ायदा
बिखर जाने दो सपने बीती रात के
ना जाने किस मुकाम
न जाने किस तरह के ख़यालों में खोते जा रहे हैं
कमाने के लिए घर से निकलना पड़ता है
मौत न जाने कहाँ मर गई
बे-खुदी में खुदसे ही हो गए बेगाने
कोई किसीका आसक्त नहीं होता
ख़ुद-दारी को अपना ईमान समझता है
जा ही रहा है उसे भूल जाइए और जाने दीजिए
फ़रियाद बाक़ी रहे जाती है
जानेवाले साल तुझे विदाई का पयाम आख़री
एक वज़ह ने मज़बूर कर दिया रुक जाने केलिए
हम नहीं दिखा रहे होते हैं अक़्सर वो हम होते हैं
ज़ायका मीर-ओ-ग़ालिब के फ़न का
कहानी
बस नंबर 703 (भाग 1)
कतरनी
मैच्युरिटी
तुच्छ सोच (लघु कथा)
तुच्छ सोच (लघु कथा)
*शीर्षक- नाच न जाने आँगन टेढ़ा*
पेंटिंग की सच्चाई
बात जोहता डेरा
घाव
आओ अपने गौरवशाली इतिहास को जाने
एक और साल...!
संवेदनहीनता
जिज्जी भाग - 9
अक्श की सफेद धुंध
" राह अपनी-अपनी " 💐💐
अनजाने रिश्ते
" लंगड़ी-कन्या" 💐💐
" "नन्ही मिनी की रुमानी दुनिया " 💐💐
"रामरती चाची " 🍁🍁
लेख
जानें कहाँ गए वो दिन
नन्हीं जान
हार जीत
हिंदी: विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली अंतरराष्ट्रीय भाषा
आया है मुझे फिर याद वो जालिम
ये अनजाने
कारवाँ गुज़र गया
" बैलगाड़ी की यात्रा"
साडी़ बिच नारी है कि....
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