Login
Login
Login
Or
Create Account
l
Forgot Password?
Trending
Writers
Latest Posts
Competitions
Magazines
Start Writing
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
Searching
"जाती"
कविता
यथार्थ रूप भाग-३
स्त्री की अभिलाषा
थमी-थमी सी जिंदगी
कभी नहीं आते
धुंधलापन ------------------------ इस रात के घने अंधेरे में मैं देखना चाहता हूँ चारों ओर इस दुनियाँ का रंग रूप पर कुछ दिखता नहीं पर मन में एक रोशनी सी दिखती है | बस हर तरफ से नजरें हारकर बस उसकी तरफ मुड़ जाती है दिखती है वह दूर से आती हुई पर उस
यादें तो यादें हैं
अभिलाषा
शमा तू फिर भी जल
यह जिंदगी है
जब हम किसी के प्यार में होते हैं तो
मायूसी
आई चिडि़या
अंतर मिट गया
हाथों में आ जाती है कलम
मुस्काती है ज़िन्दगी
उत्पीड़न
जो असलियत है.......
ये बेटियाँ हमारी
ना जाने नारी कब किस रूप में ढल जाती है
साठ गाँठ
लाड़ो...ओ लाड़ो...
जिंदगी मुट्ठी में बंद रेत सी
माँ
माँ- बेटी
कव्वाली-त्यौहारों की
धुँधलाई सी, भरमाई सी....
छुअन,,,,,,तेरे रूप अनेक
मुस्काती है ज़िन्दगी
कुछ एहसास हैं भिन्न
मैं नारी, नहीं हारी
बदलाव
नदी की अभिलाषा
खुशफहमी.....
स्त्री का अस्तित्व
दिल से दिल तक
दिल से दिल तक
मेरा इकरारनामा
(राष्ट्रीय बालिका दिवस) गर मैं गर्भ में न मारी जाती...
जब कोई बात दिल में घर कर जाती है
नस नस से गुजरती संवेदनाएँ
संवेदना
मन ख्वाहिशों का जंगल
माँ
लागे ना मोरा जिया
अदब की निशानी
गाँव ! तुम्हारी बहुत याद आती है
गाँव ! तुम्हारी बहुत याद आती है
सृजन
लागे ना मेरा जिया
गरीबी की मार
काजल*
"एक कविता"
कविता
आ भी जाओ गौरैया
कविता
धुँधलाई सी, भरमाई सी....
न्याय इतनी दूर क्यों ?
न्याय इतनी दूर क्यों ?
आई चिडि़या
मां
माँ
एक लहराते पंछी सी
मील के पत्थर
वह फूल कांटा ही चुभाता है
ऐ सूरजमुखी के फूल
आशाएं
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
💐💐"लड़कियों के बचपन से पचपन तक का सफर💐💐 "
मैं सामान नहीं
धुँधलाई सी, भरमाई सी....
हरी हिना लाल रंग
हरी हिना लाल रंग
यह जिंदगी है
पंछी
संबल
तमन्नाए...
शुभ कर्मों में देरी क्यूँ
सिंहावलोकन
" महकती कली "
अनमोल धागे
मां
गुनगुनाती धूप
कविता -नजर
हम नारी
किसीको जीना आ जाता है बशर
ऊंची हो जाती है दीवार कभी कभी
जाती उसकी मग़र यादें नहीं
शिद्दत और बढ जाती है उनके याद आने की
ख़त में उसके आज भी वही ख़ुश्बू आती है
कौम गूंगी, बहरी, अंधी हो जाती है
लेखक की कलम
उम्रें गुज़र जाती हैं बात दिल की कानों तक आने में
*आँखों से नमी नहीं जाती*
मेरी प्यारी माँ
*दूल्हा नहीं दिखता*
*क्यूं कोसते हो अपने आज को*
सहर-ए-वस्ल जाती क्यूँ है
दुश्वारियां सिमट जाती हैं हयात से
गुरेज कर जरा परहेज रख
यादें
शब्दशिल्पी कोईभी नहीं हो जता
जान में जान आ जाती है
तिश्नगी बढ जाती है
परेशानियाँ हर-बात में
शराब हदें भूल जाती है
बड़ी जंग अकेले में लड़ी जाती है
अनसुनी सदाएं रह जाती हैं
दिल में किसीकी जगह
नींद को आने में देर हो जाती है
उलझने बढाना कौन चाहता है
रात काटी जाती है
दिल की बस्ती
उजालों की अहमियत घट नहीं जाती
व्यापकता असीमित हो जाती है
ज़रूरतें बदल जाती हैं इन्सान की
जिंदगी ऐसे गुजारी जाती है
यादें जीने की वज़ह बन जाती हैं
खुशियाँ अपने पास नहीं आती
शुक्र है सिर्फ़ महसूस करता है
बर्बादियों की ओर जाती हैं
उदासियां उन्हें नज़र नहीं आतीं कभी
चांद ही की ईद हो जाती है
चांद ही की ईद हो जाती है
चाहत ही मिट जाती है जग में रहने की
क्यों न खुद को तुम में बुन लूं मैं
एकउम्मीद
हौसला हो तो आसमान कम पड़ जाता है
कुछ गीत- कविताये हमारी,
दिल पर कोई गहरी बात लग जाती है
पता किसीकी औक़ात लग जाती है
मां से ढेरों बातें होती थी
जफ़ा को वफ़ा बताई नहीं जाती हमसे
बिगड़ी बात बन जाती है
अदाकारी हमसे दिखाई नहीं जाती
हयात ए डवाँ-डोल का मीज़ान लिखते हैं
यादाश्त भी तो जाती नहीं हमारी
दिलजलों की कानाफ़ूसी और सरगोशियां खा जाती है
मुहब्बत का हक़दार नहीं मिलता
भीड़
जान चली जाती है निभाते निभाते
आशिक़ी अक़्ल के बोझतले दम तोड़ जाती है
बेसबब जिंदगी बीती जाती है
हसरतें कहीं जाती नहीं हैं
याद रह जाती है
फ़रियाद बाक़ी रहे जाती है
सोच और कर्म से हासिल की जाती है
इक कसक सी हयात में रह जाती है
कहानी
जुन्हाई
श्रीनगर की कानी शॉल
डर के आगे जीत है
मिलन उत्सव
लेख
लोकल ट्रेन के एक्सपीरिएंस
क्लास श्री बिटिया
क्लास श्री बिटिया
क्रिसमस/ बड़ा दिन
सोच रही हूँ
चुनावी मौसम बनाम चूना फ्री मौसम
Edit Comment
×
Modal body..