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"निकल"
कविता
कोई दिल में जब उतरता है
बादल
माई
एक और रामधुन
मैं बाहर निकलूंगा तो
हमसफर.....
#सृष्टि का क्रम
ये हुनर दिखाने का
एक और रामधुन
अदू समझा जिसे मेरी हबीब निकली
थोड़ी-सी जरुरतों वाले घर की रहगुज़र पर
*जीने के हुनर भूल गए *
आह निकली
*अहसासे-फुर्क़त हुआ हदे- हयात से निकलकर*
खुशियों से ज्यादा ग़म निकले
अपनी पसंद की रहगुज़र हम निकलें
वक़्त हाथ से फिसल गया
हबीब की रक़ीबों से रब्त-ए-शानाशाई निकली
होश में रहता हूँ
सफ़रपर तो निकलना पडेगा
ताबे'दार बे-शु'ऊर निकला
वक़्त को मनाने में जमाने निकले
दिल से वतन निकला ही नहीं
कागज़, किताब ओ कलम बचे
दूर खुद से भागता रहा आदमी
कहाँ गया आदमी
क्या आखीर-ओ-तासीर से भी बचकर निकल सकते हो
मतलब निकल जाए तो कदर कौन करता है - sumit arya shayari - शायरी
गुजिश्ता साल.... नज़्म
बच निकला उसे रब मिला
तजरबात मिले
बेवफ़ा निकला हबीब हमारा
सफ़र का हो गया
अल्फ़ाज ऐसे न निकल पड़े कि वापस लेने पड़े
लौट कर नहीं आऊंगा
पता लगा कि लापता निकले
लहू पसीना बनकर रोमरोम से निकल आता है
भँवर से निकलना मुश्क़िल होता है
ख़्याल हमारे पुराने निकले तो
दिल से लोग क्यूँ नहीं निकल पाते
सारा शहर उसके जनाजे में निकला इक वो न निकला जनाज़ा जिसके तक़ाज़े में निकला @"बशर"सारा का सारा शहर उसके जनाजे में निकला
सीनेसे निकलकर किधर जाएगा
इन्सां संभल जाता है तूफ़ान-ए-हवादिश से निकल जाने के बाद
वाह वाह और सिर्फ़ वाह वाह
खुद से निकलकर नहीं देखा
बे-वक़्त बिछड़ने वाले
अपनों की फ़िक्र से निकलें तो हाल अपना देखें © 'बशर' bashar بشر
जिस्मों से इश्क़ 🥀
दम निकला हैं 🥀🥹
गाँव की गलियों से निकलकर कोईदरवेश आया @"बशर"
ग़ज़ल
कुछ हादसात भी ज़रूरी हैं
रखे ऊंची आवाज़
कमाने के लिए घर से निकलना पड़ता है
काम केलिए निकल जाया करो
मिरा ही साया निकला मैं जिसके पीछे चला
हमारे लिए दुआ मांगने वाले ही हमारे क़ातिल निकले
रास्ते निकल जाते हैं
इस जहाँसे आगे जहाँ औरभी है
दिल की अनसुनी करकेअक़्ल का निकला दिवाला
हम तपती रेतपर ही बैठेहुए देखते रह गए
वाना निकल पड़ा आगके दरिया की जानिब
हमारी भी चाह की कोई राह निकले
जिंदगीसे भागकर आगे निकलने की न होड़कर
मर मर कर जीना सरासर बेमानी है
तुम्हारी दुनिया से निकलकर ही चला गया
कहानी
और सूरज निकल आया
और सूरज निकल आया
झरौखे की चा ह
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