कवितागजल
GHAZAL
जुदा तो होतें हैं अपने, मगर जिंदगी यूँ ही चला करती है l
हर रोज कि तरह दिन तो निकलता है, पहले कि तरह शाम ढला करती है l
फरक जहाँ को नहीं पड़ता है, किसी के आने जाने से l
सुकून दिल को मिल जाता है, दो बूंद अश्क के बह जाने से l
इक तेरी याद है जो बन के हमसफ़र, हर पल मेरे साथ चला करती है l
जुदा तो होते हैं अपने, मगर, जिंदगी यूँ ही चला करती है l
हर रोज कि तरह दिन तो निकलता है, पहले कि तरह शाम ढला करती है l
जब तक का लिखा है आबोदाना, तबतक के यहाँ मुसाफिर है l
यहीं से सफर शुरू किया था हमने, यहीं पे सफर का आखिर है l
मजा इस बात में है कि किसी को करें याद हम, और किसी को याद आयें l
किसी के वास्ते दुआ हमारी हो, और मेरे वास्ते भी कोई करे दुआयें l
हॉक समझो कि जब आते हैं जहाँ में, यहाँ साँस भी गिन के मिला करती है ल
जुदा तो होते हैं अपने, मगर जिंदगी यूँ ही चला करती है l
हर रोज की तरह दिन तो निकलता है, पहले की तरह शाम ढला करती है l l