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"केलिए"
कविता
जीने केलिए बंदा मरने को तैयार हो जाता है
सफ़र से गुजरता हर कोई है
इबादत केलिए न इल्मो-हुनर चाहिए
*शाद रहने केलिए नाशाद रहता है*
तेरी इक झलक पाने केलिए आतुर
खुद केलिए बचाकर अंधेरा रखा
नहीं बसर करने के लिए किसीने पूछा
जख़्मे-जिगर सहलाने केलिए
जीने केलिए जगह नहीं
मेहनतकश 'ऐश-ओ-'इशरत केलिए रोता नहीं
है बशर तैयार
दो जून केलिए
जीने केलिए तैयार रहो
खुदको समझाने केलिए तैयार रहो
जीने केलिए मरना पड़त है
किसी और केलिए रोकर भी देखो
आदमी बेचैन है सांसभर चैनो-अमन केलिए
हमतो अपनी गलतियों केलिए मश्हूर हैं
शुक्रिया मेरी जिंदगी में आने केलिए
कोई किसी केलिए ज़रूरी नहीं हो सकता
आख़िर ज़हर तो पीना पड़ता है
डूबने केलिए इक जिंदगी चाहिए
आज और कल बिगाड दिए
सामने आकर खड़े हो गए ग़म ए हयात
दोस्तों से हारा हो
मनहूस जगह है जमाने केलिए
नाम केलिए बदनाम हो जाता है
मन के पट खोल दिया करो
खून पसीना बहाना पड़ता है
जीत नहीं सकता है किसी केलिए
कहने केलिए तैयार रहो
खुद क्यूँ खुद केलिए बुरा सोचो
मसाइल सारे लोगों को लड़ाने केलिए
सुकूनै-क़ल्ब केलिए नींद ज़रूरी
मां-बाप केलिए बेटोंसे बढ़ कर रही हैं बेटियाँ
काम केलिए निकल जाया करो
ज़ौक़-ए-परवाज़ केलिए खुला आसमान है
वक़्त कहाँ है
बेवज़ह लोगों केलिए दुनियामें कोईजगह नहीं है
क़ामयाबी केलिए तुम्हारा यक़ीन ज़रूरी है
ज़माना क्या कम है रक़ाबत केलिए
आप मुक़म्मल दुनिया हो अपने घर केलिए
दोस्त हमेशा दोस्ती निभाने के फ़र्ज़ के लिए होने चाहिए
क्या मर्द अपने प्यार केलिए मर सकता है
ये शेरो-सुख़न उसे बुलाने केलिए है
जगना पड़ताहै सुब्ह फिरसे उड़ने केलिए
खुद केलिए सच्चा रहने वाला दूसरों केलिए झूठा नहीं हो सकता
याद आते हैं सिर्फ़ भुलाने केलिए
बेहतर मुस्तक़बिल केलिए
ख़ून-ए-जिगर चाहिए फ़न केलिए
हुनर महज़ लफ़्ज़ों का नाकाफ़ी है
एक वज़ह ने मज़बूर कर दिया रुक जाने केलिए
किसी केलिए धड़कना भी ज़रूरी है
अकेला पुरू ही काफ़ी है सिकंदर को हराने केलिए
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