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Sahitya Arpan Competition - चित्राक्षरी आयोजन - फरवरी 2021
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चित्राक्षरी आयोजन - फरवरी 2021

Competition Stats

  • #Entries 18

  • #Likes 18

  • Start Date 18-Feb-21

  • End Date 22-Feb-21

  • Competition Information/Details

    नमस्कार साहित्यिक स्वजनों

    आप सभी के समक्ष हम उपस्थित हैं, फिर से चित्राक्षरी आयोजन लेकर। इस बार लेखन हेतु पूजा बंकिम सुतरिया जी का चित्र चुना गया है आप सभी के लेखन हेतु। पूजा जी एक बेहतरीन चित्रकारा हैं उनके You Tube चैनल Tints & shades By Pooja में आप उनकी चित्रकारी देख सकते हैं।

    आप सभी जल्दी से कलम उठाइये और जो भी विचार इस पेंटिंग को देखकर आपके मस्तिष्क पटल पर आ रहे हैं जल्दी से लिख डालिये और भेज दीजिये हमें अंतिम तारीख से पहले।

    विषय : चित्र
    आयोजन : प्रतियोगिता
    दिनाँक : 18 फरवरी से 22 फरवरी तक
    विधा : मुक्त

    लेखन से सम्बंधित महत्पूर्ण नियम :-
    1. रचनाएं विषयानुसार ही लिखे.. धार्मिक राजनैतिक भावनाओं को आहत करने वाली रचना न हो।
    2. यदि रचना लम्बी है तो आप उसे भाग में विभाजित कर डाल सकते है।
    3. वेबसाइट पर पोस्ट करने के उपरांत अपनी रचना या उसका लिंक सोशल मीडिया पर साझा कर सकते हैं।
    4. रचना पोस्ट करने के लिए एडिटिंग ऑप्शन में इवेंट का चुनाव करना न भूले।
    5. रचना के साथ चित्र कोई भी सलंग्न अवश्य करें।

    आप सबकी रचनाओं का स्वागत एवं इन्तज़ार रहेगा...
    सार्थक लेखन हेतु अग्रिम शुभकामनाएं....

    धन्यवाद
    साहित्य अर्पण कार्यकारिणी

    कहानीसामाजिक, प्रेम कहानियाँ, प्रेरणादायक, लघुकथा

    इस घर में मां की ममता बसी है...

    • Edited 3 years ago
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    एक पुराने और टूटे माकान के समाने एक बड़ी सी कार आकर रुकती है। जिसे दिखने के लिए वहां के सब लोग इकट्ठे हो जाते हैं। तभी उस कर से एक 25साल का नौजवान निकलता है। जिसे देखकर वहां के आस पास के लोगों में कानाफूसी
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    Anju Gahlot

    Anju Gahlot 3 years ago

    अच्छी है,लेकिन वर्तनीदोषों से पठनीयता को नुकसान होता है।

    Seema krishna Singh3 years ago

    जी शुक्रिया, आगे से इन सब बातों का ध्यान रखुगीं

    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    बहुत खूब 👌🏻

    Meeta Joshi

    Meeta Joshi 3 years ago

    माँ की ममता अतुलनीय है!👌👍

    Srikrishna Kumar

    Srikrishna Kumar 3 years ago

    Beautiful story 😊

    कहानीलघुकथा

    महल

    • Edited 3 years ago
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    चरमराते उस दरवाजे के अंदर न जाने गोपू के कितने अरमान दफ़न हो चुके थे।बड़ा ही बदनसीब था,पैदा हुआ तो पिता चल बसे,पर माँ को तनिक भी दुःख न था।सोचती मेहनत-मजदूरी कर जैसे-तैसे पाल लेगी,बेटे को।कम से कम
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    Girish Upreti

    Girish Upreti 3 years ago

    भावुक चित्रण❤️

    Champa Yadav

    Champa Yadav 3 years ago

    बहुत... ही...अच्छी कहानी।

    Anju Gahlot

    Anju Gahlot 3 years ago

    मार्मिक रचना

    Meeta Joshi3 years ago

    धन्यवाद अंजू जी🙏❤️

    Mukesh Joshi

    Mukesh Joshi 3 years ago

    सुंदर शैली में मार्मिक अभिव्यक्ति।बहुत खूब👏👏

    Bina Chaturvedi

    Bina Chaturvedi 3 years ago

    बहुत मार्मिक रचना।क्या लिखूं दुखद या भावुक समझ नहीं आ रहा।बहुत खूब👏👏👏

    Bhavay Joshi

    Bhavay Joshi 3 years ago

    Bahut hi achhi kahani👍

    Seema Pande

    Seema Pande 3 years ago

    दिल को छू लेने वाली कहानी

    Kamlesh  Vajpeyi

    Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

    मर्मस्पर्शी स्रजन.

    Seema krishna Singh

    Seema krishna Singh 3 years ago

    बहुत ही खूबसूरत कहानी। एक मां की अपने बेटे के प्रति प्यार की। दिल को छू लेने वाली कहानी 👍

    Shivangi lohomi

    Shivangi lohomi 3 years ago

    Dil ko choo lene wali kahani❤️❤️👌💓😍adbhut

    कवितालयबद्ध कविता

    प्यारा घर

    • Edited 3 years ago
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    फिर याद आया वो टूटा फूटा मकां अपना
    बेतरतीब जिन्दगी और छिटका समान अपना
    वो खूँटी से टंगी तंग दिवारों पर कपड़े की पोटली
    वो रोज ढोती साइकल पर अरमान अपना।
    चंद सासों का वो मालिक जो था घर
    झांकती सूरज
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    Rajesh Kr. verma Mridul

    Rajesh Kr. verma Mridul 3 years ago

    सुंदर प्रस्तुति।

    Bandana Singh3 years ago

    बहुत बहुत आभार आपका

    कवितालयबद्ध कविता

    खुशियाँ

    • Edited 3 years ago
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    खुशियाँ
    ------- -----
    मैं ख़ुशी तलाश रही बड़ी बड़ी सी बातों में,
    प्रिय जन से मुलाकातों में चांदनी सी रातों में,

    ख़ुशी मुझे तलाश रही छोटी छोटी बातों में।
    इंतज़ार की रातों में गम मिटने की चाहतों में।

    मैं ख़ुशी तलाश
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    कविताघनाक्षरी

    *कसक*

    • Edited 3 years ago
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    * कसक *
    ❤❤❤❤❤
    ✍✍
    शहर की ऊँची इमारतों और,
    चमचमाती चकाचौंध में।
    वो तारों की मनभावन टिमटिमाहट
    ढूँढती हैं मेरी उदास आंखें ।।
    ✍✍
    दो कमरों के बंद फ्लैट के,
    कुशन लगे सोफ़े पर बैठ
    खुले आंगन की चारपाई
    Read More

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    Shashi Ranjana

    Shashi Ranjana 3 years ago

    बहुत सुंदर👍👍

    Pallavi Rani3 years ago

    धन्यवाद 🌹

    Vivek Prajapati

    Vivek Prajapati 3 years ago

    बेहतरीन अंदाज के साथ पेश किया आपने

    Pallavi Rani3 years ago

    बहुत आभार आदरणीय

    कविताघनाक्षरी

    *कसक*

    • Edited 3 years ago
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    * कसक *
    ❤❤❤❤❤
    ✍✍
    शहर की ऊँची इमारतों और,
    चमचमाती चकाचौंध में।
    वो तारों की मनभावन टिमटिमाहट
    ढूँढती हैं मेरी उदास आंखें ।।
    ✍✍
    दो कमरों के बंद फ्लैट के,
    कुशन लगे सोफ़े पर बैठ
    खुले आंगन की चारपाई
    Read More

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    Kamlesh  Vajpeyi

    Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

    सुन्दर और भावपूर्ण..!

    Pallavi Rani3 years ago

    सादर धन्यवाद 🙏

    कविताअतुकांत कविता

    विरहिन

    • Edited 3 years ago
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    चित्र पर आधारित रचना उस विरहिणी को समर्पित है जो अपने साजन की राह देखती रहती है,,,,



    जिसका पिय परदेश गया है

    उसकी पत्नी क्या करती होगी,

    आँच न आये मेरे सिंदूरी को

    ये सोच सोच कर डरती होगी।

    वे नयन नहीं
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    Shashi Ranjana

    Shashi Ranjana 3 years ago

    सुंदर रचना👍👍

    Ritu Garg

    Ritu Garg 3 years ago

    सुंदर प्रस्तुति

    Himanshu Samar3 years ago

    धन्यवाद

    Sarita Gupta

    Sarita Gupta 3 years ago

    हमें तो रचना बहुत अच्छी लगी ।

    कवितागीत

    जीवन गाथा

    • Edited 3 years ago
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    जीवन सुख का सार, क्षण में खो जाता है।
    जाने क्या – क्या यार, पल में हो जाता है।।

    चले ढूंढने मोद, गमों से पड़ गया पाला।
    प्रात खुशी थी संग, हुआ फिर दिन बस काला।।
    मोद भरा सम्राज्य, भी क्षण में खो जाता है।
    जाने
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    Pallavi Rani

    Pallavi Rani 3 years ago

    👌👌👏

    Maniben Dwivedi

    Maniben Dwivedi 3 years ago

    बहुत सुंदर

    Poonam Bagadia

    Poonam Bagadia 3 years ago

    बढ़िया...

    कविताअतुकांत कविता

    बहुत याद आए

    • Edited 3 years ago
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    # चित्राक्षरी फरवरी 21
    *याद बहुत आए*

    कच्ची पक्की पगडंडियाँ
    नीम पीपल की घनी छाँव
    याद बहुत आए है मुझको
    दूर बसा वो छोटा सा गाँव

    छोटा प्यारा घर वो पुराना
    उखड़ी उखड़ी सी दीवार
    याद बहुत आए है मुझको
    टूटी छत
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    Gita Parihar

    Gita Parihar 3 years ago

    बहुत मनभावन सृजन है

    कविताअतुकांत कविता

    याद बहुत आए

    • Edited 3 years ago
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    # चित्राक्षरी 15,2,21
    *याद बहुत आए*

    कच्ची पक्की पगडंडियाँ
    नीम पीपल की घनी छाँव
    याद बहुत आए है मुझको
    दूर बसा वो छोटा सा गाँव

    छोटा प्यारा घर वो पुराना
    उखड़ी उखड़ी सी दीवार
    याद बहुत आए है मुझको
    टूटी छत से होती
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    कवितागीत

    इंतजार

    • Edited 3 years ago
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    *इंतजार*
    आज भी
    राह निहारती है वह दहलीज
    नन्हे पैरों ने जहां कदम भरे थे।
    दरवाजे के बीच का फासला
    खोजता है तुम्हारा वजूद।
    तुम गए तो फिर लौट कर ना आए
    अभी तक
    नजरें वह ढूंढती है अठखेलियां
    जहां जवानी ने कदम
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    Ritu Garg

    Ritu Garg 3 years ago

    प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त धन्यवाद साहित्य अर्पण

    Sarita Gupta

    Sarita Gupta 3 years ago

    गांव को इंतजार आज भी है । अच्छी रचना ।

    Ritu Garg3 years ago

    जी धन्यवाद

    कहानीप्रेरणादायक

    हमारी साइकिल

    • Edited 3 years ago
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    हमारी साइकिल

    माँ पापा  को बोलो ना की मुझे नई साइकिल दिला दे
    स्कूल मैं सब मेरा मजाक बनाते है ,की तेरी साइकिल
    बेलगाड़ी है, माँ अब मैं अगर पापा ने नई साइकिल नही
    दी तो अब में स्कूल नई जाऊंगा बोल देना!
    माँ
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    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    रचना बहुत बढ़िया है मगर कुछ शाब्दिक त्रुटियां खलती हैं। उन्हें ठीक कर लीजियेगा रचना और निखर जाएगी

    Punam Bhatnagar3 years ago

    जी बिलकुल

    कवितालयबद्ध कविता

    मेरा गांव मेरा आंगन

    • Edited 3 years ago
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    शीर्षक-मेरा गाँव मेरा आँगन

    आज फिर बढ चले है
    उस कच्ची डगर पे मेरे पांव
    जहां रेतीले धोरों के बीच
    बस्ता था मेरा सुंदर गाँव
    जहां बीता अलबेला बचपन
    सुनहले सपन सी अलहङ जवानी
    कल की ही बात
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    कविताअतुकांत कविता

    अपना वह घर पुराना...

    • Edited 3 years ago
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    चित्राक्षरी काव्य रचना
    फरवरी - 2021
    [रचना]
    अपना वह घर पुराना..
    '''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
    बीता हुआ वह जमाना,
    जब कभी याद आता है,
    मिट्टी का अपना वह घर,
    पुराना बहुत याद आता है।

    पिता से मिलता सिक्का,
    अम्मा
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    Babita Kumari

    Babita Kumari 3 years ago

    सुन्दर भाव भरी रचना ।

    Rajesh Kr. verma Mridul3 years ago

    जी, सादर आभार आदरणीया।

    Krishnkant Verma

    Krishnkant Verma 3 years ago

    🥰❣️🥰

    Rajesh Kr. verma Mridul3 years ago

    💐💐

    Krishnkant Verma

    Krishnkant Verma 3 years ago

    सुंदर रचना 👍🏻

    Rajesh Kr. verma Mridul3 years ago

    धन्यवाद

    के . मौर्या

    के . मौर्या 3 years ago

    बचपन की यादों का बेहतरीन काव्य संयोजन

    Rajesh Kr. verma Mridul3 years ago

    जी बिल्कुल

    Naresh Gurjar

    Naresh Gurjar 3 years ago

    बेहद खूबसूरत

    Rajesh Kr. verma Mridul3 years ago

    सादर धन्यवाद महोदय! आपकी सराहना हमारी लेखनी को बल देती है

    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    बहुत ही प्यारी सी रचना 👌🏻

    Rajesh Kr. verma Mridul3 years ago

    आपकी टिप्पणी एवं सराहना सदैव बना रहे।

    कहानीसस्पेंस और थ्रिलर

    अहम सबूत

    • Edited 3 years ago
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    जन्अमदिन की शुभकामनाएं
    हम सबूत
    मैं ऑनलाइन थी। मुझे पुरानी प्रोपर्टी में दिलचस्पी है, वही सर्च कर रही थी कि एक मेसेज फ़्लैश हुआ,यह कोई मर्लिन थी।संदेश के साथ एक फोटो भी थी,लिखा था,अपनी सलामती चाहती
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    Gita Parihar

    Gita Parihar 3 years ago

    जी, आभार

    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    बहुत खूब

    कहानीसस्पेंस और थ्रिलर

    अहम सबूत

    • Edited 3 years ago
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    अहम सबूत
    मैं ऑनलाइन थी। मुझे पुरानी प्रोपर्टी में दिलचस्पी है, वही सर्च कर रही थी कि एक मेसेज फ़्लैश हुआ,यह कोई मर्लिन थी।संदेश के साथ एक फोटो भी थी,लिखा था,अपनी सलामती चाहती हैं तो इसे फ़ाइनल करने
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    कवितालयबद्ध कविता

    उस घने पेड़ की छांव

    • Edited 3 years ago
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    एक टूटे से घर में था प्रेम का बसेरा
    मिट्टी के आंगन में था खुशियों का डेरा
    लहराता था नीमका पेड़ जहां
    उसी की छांव में हम बैठते थे वहां
    पास ही खड़ी होती थी एक साईकिल
    ढूंढते थे उसपर पिताजी का नाम है कहां
    बरसो
    Read More

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    Naresh Gurjar

    Naresh Gurjar 3 years ago

    अत्यंत जीवंत रचना

    Seeta Tiwari3 years ago

    Thank you so much sir

    कवितालयबद्ध कविता

    एक घने पेड़ की छांव

    • Edited 3 years ago
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    एक टूटे से घर में था प्रेम का बसेरा
    मिट्टी के आंगन में था खुशियों का डेरा
    लहराता था नीम का पेड़ जहां
    उसी की छांव में हम बैठते थे वहां
    पास ही खड़ी होती थी एक साइकिल
    ढूंढते थे उसपर पिताजी का नाम है कहां
    बरसो
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