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"होती"
कविता
बूंदों की सिफारिश
तुम होते तो बात ओर होती
स्त्री कमज़ोर नहीं होती है
अब बात नही होती
कौन कहता खामोशी में बात नही होती
ज्यों-ज्यों बड़ी होती है बेटी
माँ ऐसी ही होती है
एक मृतक के समान
एक अंधाधुंध दौड़ में
एक अंधाधुंध दौड़ में
सांप की हंसी कैसी होती
मुहब्बत बेजुबा होती
किस्तों में अदा होती है
महब्बत महब्बत होती है
थोड़ी-सी हसरत होती है
साथ जिस शख़्स के हमेशा तुमने शराफ़त की होती है बशर
असल जिंदगी बशर हर तर्ज़ ओ तक़रीर से परे होती है
तालीम-ए-हयात कभी मुक़म्मल नहीं होती
ख़ाकसारी में भी बशर उन की बड़ी शान होती है
बे-शुमार मसर्रतें होती हैं मयस्सर जरा-सा मुस्कुराने से
वहशीपन का शिकार होती मानवता
जिंदगी बेहाल होती जा रही है
बात नहीं होती
वुजूहात हमारे अंदर जज़्ब होती हैं
*बात नहीं होती*
*ख़्वाहिशें कहाँ ख़त्म होती हैं*
अगर जिंदगी किताब होती
मरने से फुरसत न होती
खामियाँ हर कहीं होती हैं
किसी के लिए किसी में कोई खास बात होती है ©️ "बशर"
संजीदगी अगर कहीं होती है
हैरत नहीं होती है
जितनी बड़ी जंग होती है
हमारे अगर बेटी नहीं होती
तन्हाई की ख़ामोशी से गुफ़्तगू होती है
हद होती है
जिंदगी आसान होती
घर में एक ही खिड़की होती थी ब्यार आने की
अंधेरों से जुगनुओं की बात होती है
मनसे फ़कीर होना बड़ी बात होती है
मुसीबत से बड़ी मकतबे-हयात नहीं होती
आजमाइश उसूल-ओ-ईमान वालों की ही होती है
फ़ितरत में होती है
इन्सान की औक़ात उसकी गैरत में होती है
मिलती नहीं खुशी होती है
सफ़र ज़िन्दगी की आसान हो गई होती
कब्र किसीकी कभी होती कहीं आबाद नहीं
सलाहियत कम होती है
चाहत की सबर नहीं होती
छोटेसे नामकी शुरुआत मुश्क़िल से होती है
अहसासों की नई नई मज़ार होती हैं
पांवोंतले ज़मीन होती है
ना तो मुमकिन जुबाँ से कद -ए-औरत की सना होती है.
ग़लती देखने वाले की भी होती है
मुश्क़िल काम में दिलचस्पी कमाल होती है
नादानी में जिंदगी तन्हा होती है
लबों से बयां नहीं होती
पता किसीकी औक़ात लग जाती है
मां से ढेरों बातें होती थी
मख़मूर तबीअ'त लोगोंकी ऐसीही आदत होती है
शामोसहर गरीब के घर आम होती है
मायूसियां उदासियां छाई इस क़दर नहीं होती
होती नहीं खुद ही से खुदकी मुलाक़ात
मु'आफ़ी मांग लेना ही तहज़ीब की निशानी नहीं होती
कहानी
माँ बनती नहीं , होती है
पराई होती हैं बेटियां
मोहताज नहीं होती कला
लेख
लुप्त होती सामान्य लोगों की न्याय की आस
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