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Start Date 28-Mar-21
End Date 29-Mar-21
Competition Information/Details
होली आई रे कन्हाई रंग बरसे
सुना दे जरा बाँसुरी।
होली के दिन दिल खिल जाते हैं
रंगों में रंग मिल जाते हैं।
और
होली खेले रघुवीरा अवध में
होली खेले रघुवीरा।
हुआ न मन होली के रंग में रंगीन तो देर किस बात की जल्दी से रंग दीजिये पटल को होली के रंगों में। आप सभी की रचनाओं का बेसब्री से इंतज़ार है।
कहानीलघुकथा
सात-साल का वैभव,अपनी माँ की रंगहीन ज़िंदगी देख,मन ही मन घुटता रहता था।कभी ताई की साड़ी,तो कभी दादी की बिंदी ला माँ से पहनने की जिद्द करता।शब्द कम थे,पर उसकी तकलीफ,उसकी हरकतों से महसूस होती।पिता को
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बढ़िया। पूर्णविराम के बाद स्पेस दे कर अगला वाक्य शुरू करें
जी अंकिता जी।सलाह के लिए धन्यवाद।आगे से ध्यान रखूँगी।असल में 100 शब्द व 75 words की stories में comma और पूर्णविराम से चिपके शब्द अलग से counting में नहीं आते वहीं से ये आदत पड़ गई है।अबसे ध्यान रखूँगी।
कवितागीत
होली आयी री सांवरी रंग भर के
आ जा मस्ती में झूमे गायें - २
फागुन फिर से आया - आ हा
रंगीली होली लाया - आ हा
सबका जी हरषाये - हाँ जी
अब तो रहा ना जाए - हाँ जी
होली आयी ओ सांवरी रंग भर के
आ भर लें अपनी
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लेखअन्य
ज़िन्दगी एक रंगमंच है जहाँ हर कोई अपने किरदार की अदाकारी से तालियों की गड़गड़ाहट को कमाना चाह रहा है, और इस रंगमंच में रंग का उतना ही महत्व ही जितना कि एक विवाहित स्त्री के माथे पर सिंदूर.....अगर ये रंग
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बिल्कुल बेहतरीन तरीके से समझाया है आपने आपका यह लेख गौरतलब है और आज के समय में सभी को पढना चाहिये।
शुक्रिया मैंम आपका
सही कहा आपने ज़िन्दगी एक रंगमंच ही तो है।जितनी ज्यादा तालियां आपकी उतना आपका पक्ष मजबूत
आभार🙏
कवितालयबद्ध कविता
शीर्षक : "एक रंग प्रीत का रंग दे मुझे"
एक रंग प्रीत का रंग दे मुझे
हो जाऊँ, मैं भी तुझ जैसी।
तू नटखट कान्हा, कृष्ण- कन्हैया
मैं नार, तनिक शर्मीली सी।।
खेल प्रीत की, मुझ संग होली
चला नयन, पिचकारी सी।
एक
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कवितागीत
मुक्तक
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जलाओ द्वेष की होली, बनाओ यार होली में।
नहीं करना किसी से भी कहीं तकरार होती में।
जमाना हो भले कैसा, बहाओ नेह की दरिया-
चलो सबसे जरा कर लें अजि अब प्यार होली में।।
#होली_विरह_गीत
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होलिका
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बहुत प्यारा सा गीत है संजीव जी 👌🏻
सादर अभिवादन सहित नमन आदरणीया
कहानीसामाजिक, लघुकथा, बाल कहानी
कान्हा जी की छठ्ठी
"मां,इस बार हम बुआ के घर की कान्हा की छठी की धूमधाम नहीं देख पाएंगे,न ?" नन्हें कौस्तुभ ने मृणालिनी का आंचल खिंचते हुए पूछा।
मृणालिनी भी कल से यही सोच- सोच कर उदास थी। अपने घर मना
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सुन्दर निर्णय..!
हार्दिक आभार
धन्यवाद
लेखआलेख
( बुरा मत मानो होली है )
यश चोपड़ा की फिल्म " सिलसिला " जब आयी थी तब मेरी आयु उतनी ही थी जितनी हमारे इस कालजयी आंदोलनजीवी सत्याग्रही की तब थी जब उन्होंने इस फिल्म का मौलिक संस्करण बनाकर जनमन को मुक्तिवाहिनी
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