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London is the capital city of England.
कवितालयबद्ध कविता
भूख,इंसानियत और खुदा
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भूखा भूख से तड़प रहा,रोटी नही है तकदीर में
खुदा कोई रहमत नही बची,क्या तेरी जागीर में
ये कैसी तेरी दुनिया मौला,देता न कोई निवाला
जो लाखो फूक दे रहा है,मेरी ही हाले तस्वीर
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कवितालयबद्ध कविता
हम खुद में बेहद खूब है और बेहद खूबसूरत है
खुद की परवाह है हमको,हम खुद की जरूरत है
ये सूरत समाज के मनचलो ने,अपनी है बिगाड़ दी
इसलिए समाज को देखते ही,हमको होती नफरत है
बेकसूर होकर भी समाज के,हर एक दंश
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कविताअतुकांत कविता
माँ जहाँ में हमे लाती है,पिता हमे बढ़ना सिखाता है
माँ खुशियाँ हमे देती,पिता गम से लड़ना सिखाता है
माँ बनती मन का दर्पण,पिता बनता दर्पण की परछाई
माँ हमे जीना सिखाती है,पिता चेहरे पड़ना सिखाता है
रिश्तों
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कवितागजल
डरे से,सहमे से और घबराये नजर आते है
ख़ौफ़जदा हमें अब तो साये नजर आते है
जिनमे पलभर का सुकू नजर नही आता
हमे सभी दर्द के आजमाये नजर आते है
किसे हमसाया कहे,किसे हमसफ़र अपना
मुझे अपनो में ही अब,पराये नजर
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कवितालयबद्ध कविता
बूढ़ी माँ को देखा हमने,जो सड़क पर पड़ी बेसहारा
जिसकी कमजोर जिंदगी,माँग रही थी मौत से सहारा
देख कर हाल उस माँ का,रूह दर्द से कहर रही मेरी
हुआ माझी का हाल कैसा,जिसे खुद न मिला किनारा
तनबदन में जान अब नही
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कवितालयबद्ध कविता
उजड़ गया सुहाग उसका,भरी हुई जवानी में
दुःख का पहाड़ टूट पड़ा,मासूम जिंदगानी में
अब इबारत सिर्फ दर्द की,लिखती हर साँस है
खुशी की बनावट नही दिखती,इस कहानी में
मन के परिंदे कैद है,चाह कर उड़ सकते नही
कोई
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कवितालयबद्ध कविता
माँ तुम मुझको भी,सुला दो ना लोरी गाकर
माँ मुझे भी तुम्हारी,आँचल का सहारा देना
मेरे मौला मुझे मेरी,जन्म देने वाली याद नही
मैं ममता का भूखा हूँ,माँ मुझको दोबारा देना
मुझे बनाने वाली वो, मेरी जिंदा
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कवितालयबद्ध कविता
पंख होते हुए भी,उड़ नही सकती
दिल गगन की पनाह, मैं पाऊ कैसे
बन्धनों की जंजीरों ने,बाँध रखा मुझे
कोई बताये चाह कर ,उड़ जाऊ कैसे
आकाश प्रिय लगता है, प्रियतम की तरह
प्रियतम से कहो मजबूर हु,मैं आऊ कैसे
बहुत
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कवितालयबद्ध कविता
निराशा में भी जो आस खोज लेता है
मन मे छुपा हुआ विश्वास खोज लेता है
वो मन से फकीर और अधीर नही होता
जो खुद में उसका आभाष खोज लेता है
गरीबी,लाचारी,बीमारी जैसा भी हाल हो
घोर अँधियारो में भी प्रकाश खोज
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बहुत खूबसूरत रचना... आशा का एक दीप गहन अंधकार को भी प्रकाशमय कर देता है .
वाह बहुत खूब एक अर्थ प्रदान करती रचना
आभार जी आपका
कवितालयबद्ध कविता
खुद की खुद्दारी पर है जिंदगी गुजार दी
हाथ किसी के सामने मगर फैलाया नही
मेहनत से कमाया हर एक निवाला उसने
मगर भीख माँग उसने तो कभी खाया नही
छोड़ कर गये थे कभी बच्चे उसे सड़क पर
फिर कभी कोई उसे लेने घर
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कवितालयबद्ध कविता
मौत की पकड़ में अब,जिंदगी है आ गयी
खबर है जिंदगी का,अब क्या अंजाम होगा
मौत तरस नही खाती कभी,वो तो है बेरहम
उसके हाथों से जिंदगी का काम तमाम होगा
मौत की पकड़ जिंदगी पर, मजबूत है बहुत
मौत के हाथों से जिंदगी
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कवितागजल
तुझे कभी देख ना पाया,बस इसलिए दुखी हूँ
ख्वाब ना सिरहाने आया,बस इसलिए दुखी हूँ
ठहरी थी नींद पलको पर,एक गुजरे जमाने से
जाने से उसे रोक ना पाया,बस इसलिए दुखी हूँ
वक्त सबकुछ सिखाता है,मगर सिर्फ वक्त
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कविताअन्य
किसी गैर की पनाहों में,देखता खुद की मुहब्बत को
खुद को हरदम समझता हूँ, खैर क्या फर्क पड़ता है
अजनबी हाथों में जब भी,देखता खुद की अमानत को
सोचकर मन को बहलाता हूँ, खैर क्या फर्क पड़ता है
बड़ी शिद्दत से जिसको
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