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"हयात"
कविता
कामयाबी हमारी राहे-हयात का इक ख़ूबसूरत मरहला है
किसीको जीना आ जाता है बशर
हयाते-मुस्त'आर बशर कमाल की हो
ख़त्म करो बशर येह तलाश अपनी गैरों की हयात में
रहगुज़र से दूर ही रहा घर-बार मिरा
शाम ए हयात होने को आई
अच्छा-खासा वक़्त हमारा बशर जहाँ से गुज़र गया
हयात-ए-मुस्त'आर खुदमें इक छोटासा सफ़र है
अश्आर तेरा काम लिखना है
तालीम-ए-हयात कभी मुक़म्मल नहीं होती
हयात में मग़र बशर हयात से मात खाता है आदमी
हयात जीना अलग बात है
सुलझी हुई मिली थी बशर हयात आदमी को
कोई और काम आ गया है
हयात क़ज़ा की मोहताज बनकर रह गई है
खुद अपना तमाशा मत कर
*हयात ने मारा बशर*
हयात मेरी बता मुझको
"ईमान आदमी का"
*हयात अधूरी रही*
अपनी भी ग़ैरत है अना है
सबक बन गए
दुश्वारियां सिमट जाती हैं हयात से
*रंग- ए- मौसम -ए -हयात*
*रंग-ए-मौसम-ए-हयात*
*रंग-ए-मौसम-ए-हयात*
*अहसासे-फुर्क़त हुआ हदे- हयात से निकलकर*
ख़ूबसूरत झूठ है हयात तेरी
हालाते-हयात को बशर नसीब समझ बैठे
हालाते-हयात को बशर नसीब समझ बैठे
*शाद रहने की वज़ह ढूंढ लेने का नाम हयात है*
*हयात रूकी हुई है*
हयात में मिले हर फ़रेब से वाकिफ़ हूँ
मतपूछ हमसे कैसे हमने हयात गुजारी हो
एक और साल गया
हयात-ए-मुस्त'आर की सदाक़त जानले
एक और बरस हयात से चला गया
चले जाएं रंजो-मलाल भी
सफ़र-ए-हयात में कांटों से भरा रहगुज़र आता है
मां -बाप भी बंट जाते हैं
ला-हासिल ही रहता है यादगार में
ज़िक्र तेरा सब सफ़्हात में
जिगर का टुकड़ा बिछड़ जाता है
'बशर' नादान है
तुमसे ज्यादा नहीं है खास कोई
मशक़्क़त से गुजरी है हयात अपनी
मुंतज़िर दोनों तरफ़ अहबाब मुलाक़ात के
उसूल ए हयात
मसर्रतें हयात से ख़फा रहती हैं
मेहनतकश 'ऐश-ओ-'इशरत केलिए रोता नहीं
मतलबियों को दफा कहा
जिंदगी लाजवाब है
हौंसले काम आते हैं
हयात इक ख़ूबसूरत ख़्वाब है
मुस्कराकर बात कर
तहरीर ए किताब ए हयात
सफ़र-ए-हयात-ए-मुस्त'आर
जिंदगी मुसलसल रहगुज़र है
कांटे न बिछाइये इस क़दर
हुई शामे हयात सहर होते हुए
हयात का आदमी अज़ीम किरदार होता है
तजरबात मिले
हुआ मशहूर हयात में
मुसीबत से बड़ी मकतबे-हयात नहीं होती
लम्हे जो जी लिए अपने नाम चाहिए
उम्र हुई तमाम दर्दे -दिल को समझाने में
सामने आकर खड़े हो गए ग़म ए हयात
दर्द ए दिल मिला कि अश्क ए चश्म मिला ग़म ए हयात मुझे तुमसे मेरे हमदम मिला
क़ुदरत हमारी तस्वीर ए हयात तराशती रहती है
हयाते-मुस्त'आर हमारी बिन तुम्हारे न गुज़रेगी
सफ़र-ए-हयात सबकी एक ही
मुमकिन नहीं मुलाक़ात है
हालाते-हयात आदमी को ना मज़बूर करे
नज़रिया हर कहीं बदल सकते हैं
बे-वक़्त बिछड़ने वाले
खेल-ए-सफ़र-ए-हयात
अपने-आप से जमा-खर्चे के हिसाब मांगे
न हबीब का कोई पयाम है
बिनमांगे हरशय हुई मयस्सर
रात आख़री हो
भरोसा करने की आदत नहीं छूटी
मसर्रतों के चुरा लो अवसर थोड़े बहुत
हयात ए डवाँ-डोल का मीज़ान लिखते हैं
दिलचस्पी बाक़ी कोई मुझ को रही नहीं हयात में
हरशय फ़ानी है इस क़ायनात में
तजुर्बात -ए-हयात
वक़्त अपना बेकार जाया कर दिया
तराना-ए-हयात हमने गा लिया
माटी से शुरू माटी पर ख़त्म बात हयात की
भीड़ में खोने की बजाय अकेले चलने का हुनर रखो
वो जान मिरी हयात मिरा जहान थी
ज़िंदगी को हांकना पड़ेगा उसके हालपर
ध्यान सब पर रहता है बड़े सरकार का
इक कसक सी हयात में रह जाती है
आपकी हयात को आपसे मुहब्बत हो जाएगी
हयात मौका देती हैकि आप खुदको नया जन्म दे पायें
फैसले लोग ही लेते हैं कायर की हयात के
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