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"रहे"
कविता
क्या कर रहे हो तुम?
काश ! मृत्यु से पहले जाग जाते
भर-भर लोटा पिए जा रहे
ना अधूरा एक भी श्वास रहे।
राह में कुछ लोग अब भी मुस्कराते चल रहे
बाक़ी हो आज भी मुझमें
फ़र्ज़ की पुकार
बस बच्चा ही बना रहे
आया बसन्त झूम के
नया vs पुराना
अंतिम यात्री
सियासत
दोहा
आजकल पल पल रंग बदल रहे हैं लोग
जीवित श्मशान
मेरी माँ ख़ुश रहे
जीतेगा इंदौर
स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें
चेहरे छुपाने पड़ रहे हैं
पंछी निराले रंगीले।
कारवां गुजर गया
झरने प्रीत के
तेरी यादो के अंजुमन में
मेरे नयना बरस रहे हैं
किस राह के हो अनुरागी
गीत... हो रहे हैं लोग
हम बस देखते रहे
किसी काम के न रहे
संतुलित रहें सदा जज्बात
प्रभु के प्रति रहें कृतज्ञ
खेलते रहेंगे रक़ीब बशर हमारे जज़्बात से
*लोग तो सारे हमारे रहेंगे*
मानवीय संवेदना बनी रहे
*ज़हर पिए जा रहे हैं*
मन में क्यों भरा रहे घमंड
मां का दर रहे सब चूम
*अदब से पेश आएं*
विष बो रहे समाज में सरेआम
मेहमानों की तरह रहे
कैसे खुदा राजी रहे
गुरेज कर जरा परहेज रख
सुख दुःख
बैठे रह गए वो हाथ मलते रहे
आ गए मां-बाप दहेज में
खुश रहें इन्तज़ार क्यूं करें
अना में रहे कम न हुए
जो झुक गए तो कुछ नहीं
हर भरे दरख़्त अब कहाँ रहे
आते जाते रहेंगे लोग
रहे बैठे तिश्नगी लिए अरसा
बोले कब
कोई अपनों से दूर न रहे
किरदार ऐसा हो कि याद रहे
खुद को बहलाते रहे
भुलाये जा रहे हैं
फिर रहे हैं दर बद्दर, तुम, दर दर से पूछ लो
इंतज़ार-ए-हबीब ताक़यामत रहेगा © डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर"
राज-ए-दिल सदा बना रहे
पत्थर जमा करते रहे
मेरा नाम नही 🥵
हम देखते रहे
किरदार अमर होगा गर नियत जिंदा रहेगी
अपना ना रहे साथ तो याद आती है
जी रहे हैं
बर्बादी का हमारे ग़म न करें
सीनेसे निकलकर किधर जाएगा
हम खुदही कहीं रहे नहीं साथ अपने
लोग क्या कहेंगे
कमियाँ निकाल रहे हैं हमारे किरदार में
कोई भी जुस्तजू बाक़ी न रहे
हम मुंतज़िर ही बैठे रहे
रक़ीब ही आते रहे क़रीब हमारे
हमारे बग़ैर भी आबाद थी दुनिया
सुकून-ए-क़ल्ब से रहेंगे हम
न जाने किस तरह के ख़यालों में खोते जा रहे हैं
गृह आभारी रहेगा तेरा
साथ उसके शराफ़त रहे
किये जा रहे थे बसर कर के ख़सारा
मसर्रतें जीत के दीदार की
जाहिल ही रहे जज़्बातों के फ़लसफ़े पढ़ने में
हमेशा शिकायतों के समाधान ढूंढते रहें
आपके नाप के नहीं रहे हैं
फ़रियाद बाक़ी रहे जाती है
अदावतों पर उतारू हो रहे हैं
हम नहीं दिखा रहे होते हैं अक़्सर वो हम होते हैं
गांवके होकर अगर रहे होते
मौसम के मिज़ाज बदल रहे हैं
किरदार रहे जिंदा बेशक मर जाएं हम
अश्आर बनते रहें बेहतर से बेहतर
कहानी
लागे चुनरी में दाग
"मां की कृपा बरसती रहे" 🌺🌺
लेख
वासना-प्रधान बनते चले जा रहे हैं विवाह
हम भी महाकुंभ मेले में जा रहे हैं।
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