कवितानज़्मगजल
हम देखते रहे
जाते हुए उन्हें दूर तक हम देखते रहे
हर कदम ख़ूने जिगर हम देखते रहे
जो नज़र रहती थी हमीं पे हमेशा
फिरते हुए वो ही नज़र हम देखते रहे
बुसअत-ए-कारोबार कहाँ तक फैला
बिकते हुए ज़ेहनो जिगर हम देखते रहे
शब् भर तेरे ख्याल में तारो के संग रहे
और शाम से होते सहर हम देखते रहे