Login
Login
Login
Or
Create Account
l
Forgot Password?
Trending
Writers
Latest Posts
Competitions
Magazines
Start Writing
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
Searching
"गुज़र"
कविता
शर्त
कारवाँ गुज़र गया
गुजरा ज़माना
रहगुज़र से दूर ही रहा घर-बार मिरा
अच्छा-खासा वक़्त हमारा बशर जहाँ से गुज़र गया
उसी की रहगुज़र हो गए
सबा से गुज़र जाओ
तहखानों में छुपा रखा है
उम्रें गुज़र जाती हैं बात दिल की कानों तक आने में
थोड़ी-सी जरुरतों वाले घर की रहगुज़र पर
किसी की दश्त-ब-दश्त रहगुज़र है
जमाने गुज़र जाते हैं बशर खुशियों के आने में
*रहगुज़र मुकद्दर में ''बशर'' तेरे लिखा है*
अपनी पसंद की रहगुज़र हम निकलें
सफ़र-ए-हयात में कांटों से भरा रहगुज़र आता है
ख़्वाब से गुज़र गई रात अपनी
फिरसे निखर गई रात अपनी
जीना नहीं आया
बेचैन रहती है रात हमारी
ख़ामोशियों में शोर पुरज़ोर होता है
वक़्त गुज़र जाता है
इधर से गुज़र जाने के बाद
बुज़ुर्ग सयाने गुज़र गए
नसीब होगा घर
वसवसे और वहम में गुज़र गई
नादानी और अहम में गुज़र गई
जिंदगी मुसलसल रहगुज़र है
मुग़ालते में गुज़र गई
आईने पे क्या गुज़री
रहगुज़र को सफ़र कहते हैं
जमाने गुज़र जाते हैं तकरार में
जब तलक "बशर" बच्चा था
ख़बर में आते हैं
हयाते-मुस्त'आर हमारी बिन तुम्हारे न गुज़रेगी
सफ़र-ए-हयात सबकी एक ही
वक़्तही कहां लगता है
हर रहगुज़र-ए-सफ़र से गुज़र के देख लिया
दुबारा कौन कमबख़्त चाहता है
कभीतो ग़रीब के घर बरस जाया करो
कांटोभरा रहगुज़र नहीं देखा
हरगिज़ नहीं बशर बेखुदी की रहगुज़र होता
हमभी मर जाएंगे वो भी मर जाएंगे
रहगुज़र ही में बशर गुज़र गया
भटक कर थक जाते हैं
आज में गुज़रा हुआ कल ढूंढते हो
बज़्म-ए-सुख़न सूनी कर गया
बंद कलियाँ खिलती हैं
प्यार में हम हर हद से गुज़र जाएंगे
गुज़र गए मीलके पत्थर मरहले मकाम राहे-सफ़र
बचपन कहीं कभी किसीका वापस नहीं लौटा
ज़िंदगी गुज़रतीभी नहीं किसीके बिना
उम्र गुज़रगई मनको बहलाने में
बुरे का ख़्याल गुजर गया
लेख
कारवाँ गुज़र गया
Edit Comment
×
Modal body..