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"हमने"
कविता
क्या हाल बनाया तुम्हारा वसुंधरा
दीप हैं हम (गीत)
जिन्दगी
"हमारा हिन्दुस्तान"
रात की बात
ठानी है हमनें
सितम हमने बशर क्या क्या न क़ल्ब बेचारे पे किए
चले आए हम सवाली की तरह
जीने के अहसासात गुजारे हमने गाँवमें अपने
जिन्दगी से हमने हमारा बाक़ी सफ़र पूछा
*अनसुनी करी नफ़्ज-ए-क़ल्ब हमने*
यह कैसी दोस्ती की है
*अहसासात*
Ghazal
बनाकर किरदारे-दास्ताँ छोड़ दिया
मतपूछ हमसे कैसे हमने हयात गुजारी हो
ग़म जमानेभर से पाये हमने
रास्ते सफ़र के बहुत हमने बदल बदल कर देखे
कच्चा धागा तोड़ दिया हमने
जिंदगी क्या है
हमने मान लिया कि यही सही है
खुदही हमने खुदका तमाशा किया
जवानी हमने रूठने मनाने में गुजारी है
चेहरों की सिलवटों में हमने पढी हैं
जल्दबाजी कभी नहीं करते हुए देखा
जी भरकर हमने जिया ही नहीं
हमने बच्चा बनकर रहना चाहा
हमने सबने ही खुदको मारा है
गुजिश्ता साल.... नज़्म
दीदार-ए-यार किया
रातों की नींद गंवाई है
टकरार क्या करना
दिन का सुकून,नींद रातों का,गुजार रखा है
ख़राब वक़्त में हमने अकेले ही दिन बिताए
सितम लोगों ने कलसे ज्यादा आज किया
जिंदगी तिरे लिए हमने मरके देख लिया
हर रहगुज़र-ए-सफ़र से गुज़र के देख लिया
यादों की सफ़र”
एकतरफ़ा इश्क
तेरा ग़म
खुदको आस्मान पर नहीं रखा हमने
जिंदगी तिरा एहतराम किया
रेगज़ारों की हमने भी खाक छानी है
वाबस्ता होता नहीं किसीभी मज़हब से ख़ुदा
राजे-दिल हमने बहोत छुपाया
दर्दे-दिल ने बड़ा आघात भी सहा है
तराना-ए-हयात हमने गा लिया
आबो-हवा हमने दुनिया-भर की देखी
मैं श्रमिक हूँ
कहानी
अक्ल खूंटी पर
सफ़र ए दास्तान
अबे ये तो अंधा है
मेरी पहली पदयात्रा
लेख
भारत को ईश्वर नहीं ऐश्वर्य चाहिए
योगा होगा ….नहीं होगा ..?
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