कविताअन्य
मैं मजदूर हूँ
क्या गाँव क्या नगर घूमा हूँ काम की तलाश में l
हर कदम मेरा बढ़ा है अपने देश के विकास में l
नजरअंदाज हमने किया निज की भूंख और प्यास को l
मगर हमने तजा कभी न काम की तलाश को l
जितने नमूने स्थापत्यकला के सबको हमने बनाया है l
बदले में थोड़ी मजदूरी या फिर बेगारी पाया है l
ताज महल या लालकिला हो बनाने में सहे मौसम के सितम l
बाधाएं चाहे जितनी भी आयी हों फिर भी पकड के रखा साहस का दामन l
तंगी में हम जिये मगर भारत माँ को दिये कई विलक्षण लाल l
जो सपने मेरे साकार किये गढ़ रहे नये आयाम और कर रहे कमाल l
सीना गर्व से चौड़ा मेरा मन हर्षित हो हो कर हो रहा निहाल l
जीवन का बस एक मंत्र जो अबतक मैंने जाना है l
जबतक साहस साथ निभाए हाथ पाँव चलाते जाना है l
संसद के गलियारों से बड़ा ही गहरा नाता है l
फिर भी मेरी दीन दशा को कोई देख नहीं पाता है l
एक गुजारिश मेरी है श्रम को उचित सम्मान मिले l
हर श्रमिक खुशहाल रहे चेहरे पर मुस्कान खिले l
श्रमिक कल्याणार्थ सरकार जब जब योजना लाई है ल
हो कृतघ्न मजदूर समाज ने अर्पित की बधाई है l
जय श्रम जय श्रमिक 🙏🙏🙏🙏🙏
Alok mishra