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"रहता"
कविता
उदासी
धुंधलापन ------------------------ इस रात के घने अंधेरे में मैं देखना चाहता हूँ चारों ओर इस दुनियाँ का रंग रूप पर कुछ दिखता नहीं पर मन में एक रोशनी सी दिखती है | बस हर तरफ से नजरें हारकर बस उसकी तरफ मुड़ जाती है दिखती है वह दूर से आती हुई पर उस
"अपना सा"
बदल लिया है
मेरा बावरा मन
#शहर
मैं अक्सर खुदबखुद.....
तारीफ
मैं कवि हूँ।
मैं जीवन हूँ
स्थायित्व (Stability)
येह तेरा अहसास मेरे साथ मौजूद क्यूं रहता है
दीपक जगता बुझता रहता है
आदमी परेशान-सा रहता है
*इन्सान का बस आना जाना रहता है*
किरदार जिंदा रहता है
फ़न छुपकर नहीं रहता
लीजिए प्रेम का अवलंब
काम चलता रहता निर्द्वंद्व
छटपटाता रहता है आम इंसान
*शाद रहने केलिए नाशाद रहता है*
होश में रहता हूँ
ला-हासिल ही रहता है यादगार में
इन्सान बेसबब परेशान रहता है
अहसास भी रख लो
ताउम्र करना पड़े पश्चाताप
आदमी परेशान रहता है
क़ीमत शय है ये एहसास
लम्हे पुराने
अपने घर में ही रहता है
ख़ूबसूरत रास्ता रहता है
हिज्र-ओ-वस्ल का सिलसिला रहता है
अकेलपन की राहों अकेला मुसाफिर मै
तू नदिया की धार मैं किनारा सा रहता हूँ
बंदा तक़दीर के भरोसे ही रहता है
घर में रह कर घर ढूंढता रहता है
अपने आपसे भी रहता है नाराज़ आदमी
आदमी जिंदा कहाँ है आज आदमी
कोई पराया कोई अपना नहीं रहता
सपनों से दूर रहता हूँ
इन्सान क्यूँ इतना परेशान रहता है
शिफ़ा मिरी कर या रब
ध्यान सब पर रहता है बड़े सरकार का
किरदार जिंदा रहता है
कहानी
बचपन के रूप...
सावधान
विचित्र प्रेम
"सैनिटाईजेश "
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