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"कहाँ"
कविता
"चाँद की चाँदनी "
कहाँ से लाओगे
सुनहरा बचपन
क्यों पढ़ूँ अखबार
नये दौर के बच्चों में नादानियाँ कहाँ रही
अंतर मिट गया
कहाँ कठिन है ज़िंदगी
उलझन
साठ गाँठ
सिमटते परिवार
कहाँ खो गया मेरा प्यार
विकास
कहाँ खो गया मेरा प्यार
बहरी क्यों सरकार आज है
आहट साजन की
मेरा प्यारा मीशु
सियासत जरूरी है।
कहाँ गए वो बचपन के दिन
#बचपन के पल...
संवेदना
अंजान पथ
कहाँ खो गए तुम
उसकी हर सौगात को सम्मान दें
तेरे बिना धड़कन भी कहाँ धड़कती है
तेरे बिना धड़कन भी अब कहाँ धड़कती है
कहाँ गए वे दिन
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
कौन जाने कब कहाँ ......
कहाँ गये वो दिन कान्हा...
आफ़्ताब-ए-ज़ीस्त
तुम ही बतलाओ कान्हा...
खो गया है मेरा प्यार
मतलब की बातें करते हैं
किसीको पता कहाँ है
वक़्त मिलता ही कहाँ है बशर जिंदगी को संवरने के लिए
निकालने को जाए कहाँ ख़ुद का ग़ुबार आदमी
बंदे तेरा अंदर कहाँ है
ख़त में उसके आज भी वही ख़ुश्बू आती है
दीपक जगता बुझता रहता है
मंज़िल से लौटे हुए मुसाफ़िर कहाँ जाएं
बीते हुए वोह जमाने ढूंढ़ कर कहाँ से लाऊँ
कहाँ सुनता है
*माटी में माटी होने दफ़्न आ गई*
*रंग-ए-मौसम-ए-हयात*
*ख़्वाहिशें कहाँ ख़त्म होती हैं*
ज़मीन से उठकर मिट्टी कहाँतक जाएगी
जिंन्दगी हमें कहाँ कहाँ ले गई
मंजिल से फिरभी दूरी है
जाने तू कहाँ है माँ
अय्यारी जहाँ होगी
हर भरे दरख़्त अब कहाँ रहे
जाने वजूद हमारा कहाँ होगा
दूर खुद से भागता रहा आदमी
कहाँ गया आदमी
रुपय्या बचा कहाँ है
बशर तू कहाँ फिदा है
मुद्दत हुई जिसे खुदसे मिले
अकेला अब्र बेचारा कहाँ कहाँ बरसे
वो लड़की नहीं है वो एक तितली है
दाल में कहाँ कहाँ काला है
इन्सान की क़ीमत कहाँ
बशर हैं सब अग़्यार यहाँ
ख़ुदकुशी का हौसला कहाँ से लाएं
अहबाब की पसंद का हो ख़्याल जहां कमाल वहाँ है
रूतबा उसकी पहचान नज़र आता है
एहसास
ये ज़िन्दगी के रेले
ग़ज़ल
आदमी जिंदा कहाँ है आज आदमी
मौत न जाने कहाँ मर गई
बबूलके पेड़ बोकर बशर आम कहाँसे खाएगा
सफ़र में किसीका कहाँ घर "बशर"
अहबाब की रक़ाबतें पहचानने का इल्म कहाँ से लाईए
वक़्त कहाँ है
इन्सान कहाँ है
आदमी के भेस में मिलते शैतान यहाँ हैं
इन्सान का इम्तिहान हालात लेते हैं
खुद को हया आती है
कहानी
बोए पेड़ बबुल के आम कहाँ से पाए
" फौजी -बिटिया " 💐💐
" अपना गाँव अपना देश " 🍁🍁
"वह मुझको छोड़ गया मां" 🌺🌺
लेख
जानें कहाँ गए वो दिन
सतर्कता की अति भी अच्छी नहीं
लोकतंत्र में व्यक्ति कहाँ है ?
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