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"जिन"
कविता
मगर मै न था
#जिन्दगी से जंग
जिन्दगी
मंजिल
मैंने जीवन जीना सीखा है
जिन्दगी की राह
कफस में कनेरी
जिन्दगी
एक दीया शहिदों के नाम
दरिया नहीं सूखेगा
"राख मेरी कौन ढोयेगा "
रात के आकाश में जागता एक चांद
जिन्दगी का सफर
"खुशनुमा लम्हे "
दोहा
आओ और सराहा जाये
जिन्दगी से हमने हमारा बाक़ी सफ़र पूछा
बड़ा फक्र था
खुद्दार युवक
*गिरने का जिनको खौफ़ नहीं होता*
जिन्दगी की जुस्तजू ही जां ले गई
अपनी पसंद की रहगुज़र हम निकलें
काटे नहीं कटती रात
अखबारों में छप जाने से नाम नहीं होता
जिन्दा शख़्स को नहीं दफनाते
जिन्दगी इम्तिहान लेती है
रहगुज़र को सफ़र कहते हैं
जी रहे हैं
ऐ मंज़िल मिरी रुक जा जरा
सरहद पर वीर जवान
कब्र किसीकी कभी होती कहीं आबाद नहीं
जिन्हें भुलाने की कोशिश में
जिन्दगी देखे थे,
पिआ जिन ए भइआ
हरशय फ़ानी है इस क़ायनात में
मनोरथ जिनके कमज़ोर होते हैं
कहानी
जिनावर
नयी जिन्दगी
जिन्दगी की डायरी के पन्ने
नामुमकिन कुछ भी नहीं
नामुमकिन कुछ भी नहीं
अलविदा 2020
" आशा की किरण "💐💐
"थप्पड़"
नयी जिन्दगी
जिन्दगी का दर्दीला पन्ना
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