कवितालयबद्ध कविता
याद आती होगी,वो बचपने की,
जहाँ माँ के छाँव में, जिन्दगी देखे थे
खेले -कूदे खूब मगर, आंगन गलियों में,
गिरकर संभलना सीखे थे
पितृ अंगुली पकङ के,वो चलते थे,
बारिश के पानी मे,छप-छप कूदते थे,
याद आती होगी,वो बचपने की,
जहाँ माँ के छाँव में जिन्दगी देखे थे,
शिक्षा के मंदिर में पहला कदम, याद आता,
पाठशाला जाना, अब तक याद आता ,
पानी की बोतल गले लटकाये,वो पाठशाला जाना
बार -बार पीछे मुडकर वापस आना,
याद आती होगी,वो बचपने की,
जहाँ माँ के छाँव में जिन्दगी देखे थे,
बचपने में,चढे उन कान्धो पर,
जिनका अहसास चुका नही सकते,
जिन्दगी में आये उतार-चढ़ाव तो,
संधर्ष से लङना सीखते,
किशोरावस्था के दिनों हम
सपने संजोये किया करते,
याद आते होगे वो दिन ,
काम पूरा ना होने पर,पाठशाला में,
मास्टर जी से मार खाते ,
याद आती होगी,वो बचपने की,
जहाँ माँ के छाँव में जिन्दगी देखे थे,