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"ज़रूर"
कविता
सुकून मग़र बशर भरपूर है
ज़रूरी नहीं के हर मुफ़लिस बिकने वाला हो
बेसबब बोलने का नुकसान मग़र बशर ज़रूर हो जाएगा
बेसबब बोलने का नुकसान मग़र बशर ज़रूर हो जाएगा
*तोलने की ज़रूरत क्या है*
*ज़रूरी राब्ते निभाना हुआ*
आंखें चुराने की ज़रूरत क्या है
लोग अपनी ज़रूरतों को याद रखते हैं
"एक सौदा ऐसा भी..."
फ़ासले और दूरियां
ज़रूरतें कम सब्र रखें ज्यादा
ज़रूरत क्या है
दुआओं का भागीदार ज़रूर
ज़रूर कोई दम है
सपने देखना ज़रूरी है
समझौता मत करो अपने वक़ार से
ज़रूरतें बदल जाती हैं इन्सान की
कोई किसी केलिए ज़रूरी नहीं हो सकता
ज़रूरी है जीते-जी चेहरों पे मुस्कान लाना
शायद मसाइल का कोई हल भी हो
उसी का आस्तां ज़रूरी था क्या
मन में होना ज़रूरी है
लोग क्या कहेंगे
अपनी ज़रूरत तक अपनाते हैं
सुकूनै-क़ल्ब केलिए नींद ज़रूरी
कुछ हादसात भी ज़रूरी हैं
जगमगाता है अक़्सर घर बेटियों वाला
आईने को ज़रूरत नहीहै आईना साबित करने की
औक़ात होना ज़रूरी है
रहबर की नहीं ज़रूरत उनको
हरजगह गुड़ी पड़वा हो ज़रूरी नहीं
क़ामयाबी केलिए तुम्हारा यक़ीन ज़रूरी है
ज़रूरी नहीं
खुदसे मिलनाभी उतनाही ज़रूरी है
हम किसीकी फ़ितरत को नहीं बदल पाएंगे
परवरिश में ऐहतियात भी ज़रूरी है
किसी केलिए धड़कना भी ज़रूरी है
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