Login
Login
Login
Or
Create Account
l
Forgot Password?
Trending
Writers
Latest Posts
Competitions
Magazines
Start Writing
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
Searching
"समझ"
कविता
किसकी आज़ादी...
काश! तुम भी समझते
इंसान आज जमी पर आया है।
लड़कियों को कमजोर समझने की भूल
मैं इसे इशारे समझूं या क्या समझूं?
एहसास को समझूँ
नया ख़्वाब
असां नहीं एक स्त्री को समझ पाना
अच्छी आदतें
एक दूसरे के पूरक है हम
मै भी मौन तू भी मौन, लफ्जो की खामोशी समझे कौन
जीवन का वो सतरंगी सा इंद्रधनुष
कूपमंडूक
तुम्हें कैसे समझाऊं...
मैं ख़ुद को बेकार समझता हूँ,
जिदंगी, मुझको तुझसे प्यार है
अज़ीज़ मुझे समझ न सके अजनबी मग़र समझ गए
अदू समझा जिसे मेरी हबीब निकली
समझें पर्व का मर्म
*समझाने लगे हैं लोग *
*लोग किरदार समझ लेते हैं*
अहबाब
सच समझने में चूका तंत्र सारा
हालाते-हयात को बशर नसीब समझ बैठे
हालाते-हयात को बशर नसीब समझ बैठे
आंखें कराती हैं पहचान
*मनकी गहराई कौन जाने
पैरों पर खड़ा नहीं होता
बशर की औक़ात क्या है
वक़्त को आते-जाते साल न समझ
जर्द पत्ते समेटकर आग लगाने को
साथ रहने को मकीं घर समझ लेते हैं
मिट्टी का मिट्टी में मिल जाना ना समझे
बेहतर ख़ामोशी तेरी आज
इसे समझाये कोई
वसवसे और वहम में गुज़र गई
नादानी और अहम में गुज़र गई
खुदको समझाने केलिए तैयार रहो
जिस नज़र से देखेंगे दुनिया वैसीही दिखाई देगी @ "बशर "
ज़माने ने जैसा समझा वैसा हुआ मैं
समझौता मत करो अपने वक़ार से
उम्र हुई तमाम दर्दे -दिल को समझाने में
जब तलक "बशर" बच्चा था
समझते ही नहीं
समझदार सभी इन्सान हो जाए
सुकून-ए-क़ल्ब को पा लेना
आवाज़ को ख़ामोशी से समझा जा सकता है
नासमझी और नादानी से
खुदको आस्मान पर नहीं रखा हमने
मैं जल्द ही समझदार हो गया
अक्ल अपने पास ज्यादा समझते हैं
'अक़्ल अपने पास ज्यादा समझते हैं
तौर-तरीके तर्ज़ेअमल उस्लूब-ए-वफ़ा-ए-वतन हम नहीं समझे
वफ़ा-ए-मुहब्बत ना समझ लेना
अपना हमदर्द समझते हैं
जान चली जाती है निभाते निभाते
बच्चा बातें सारी आज समझता है
कोई गैर क्या समझेगा
ख़ुद-दारी को अपना ईमान समझता है
वो समझते हैं कि दुनिया बपौती है उनकी
उम्र गुज़रगई मनको बहलाने में
नजरों से समझाकर देखेंगे ©
कहानी
समझदार दादाजी
पिता "नसमझ हूँ मगर प्यार समझता हूँ"
लेख
चित्र को समझने का मेरा नजरिया।
Edit Comment
×
Modal body..