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"मिला"
कविता
८४ जूनी बाद मिला है जीवन
मिलाते तो सही
माँ से जब भी मिला हूँ खुदको बिसरा हूँ
देस विदेस की सैर
सैर देस परदेस की
मेरा प्यारा मीशु
मेरा प्यारा मीशु
मेरा प्यारा मीशु
मेरा प्यारा मीशु
ओ प्यारे पपी
जिंदगी ! तुझे पढ़ न पाया
जिंदगी ! तुझे पढ़ न पाया
मिल गई मुझे शामदानी
विरह वेदना
दे दे मिलाई।
एक झिलमिलाती सुबह
मेहरबां है रब जो उसने हमें मिलाया
उर्मिला की विरह वेदना
रंग रही मैं नवरंग रे
बाजार
मुहब्बत बेजुबा होती
किसी को ये ज़मी दे दो किसी को आसमाँ दे दो
औरत,स्त्री... !
... सच्चे मीत
नसीब से मग़र कमही मिला है
अहबाब फ़िक्र-ए-मुसबत वाले क़िस्मत से मिला करते है
*ऐतबार जहां किया वहीं पे फ़रेब मिला*
संवेदना
आंखें चुराने की ज़रूरत क्या है
किनारों को मिलाने चले हो
ना मैं दोबारा मिला
क्या -कुछ न थे
बच निकला उसे रब मिला
मस्अला क्या है
बस दुआओं में मिला कोई हक़ नहीं आया
ईद की बधाई
सुकून-ए-क़ल्ब असल सरमाया
किरदार हमें हमारे कर्म से मिला है
मुझको मिला वो सिला किसीके पास नहीं मिला
तरु लगाने की,
दर्द ए दिल मिला कि अश्क ए चश्म मिला ग़म ए हयात मुझे तुमसे मेरे हमदम मिला
कर्मों का ही सिला मिला है मुझे
चलने वालोंको ही मंज़िल मिला करती है
सुकून-ए-क़ल्ब मयकदे में आकर मिला
नसीहतों पर अम्ल किया करो
तू मिला हैं 🥹
फोन पर बात होगई मान लियाकि मुलाक़ात होगई
हर किसीको मौसमे-बहार ख़ुशनुमा मिले
इन्सान को इन्सान से मिलाये तालीम
चैन-ओ-अमन किस भाव में मिला
कहानी
भगवान ने मिलाई कुंडली
मेले में मिलाप
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