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"जीत"
कविता
वियोगिनी का प्रेम
बाबा कबीर
माँ सीता
ब्रजमंडल में ग्रीष्म
शरद पूर्णिमा में रास
स्वयं को जानो
जोगन की यात्रा
मुझे हारकर जीत जाने दो
जोगन की यात्रा
अवधान
जीत जाएंगे हम....
जीतेगा इंदौर
यह युद्ध जीतें
हौसले से जग जीतता रहा
"दर्द की जीती-जागती मिसाल"
*जीत हुई कभी मात हुई*
नींद औरों की उड़ाकर
इरादों को मदद नहीं चाहिए तक़दीर की
जंग जीत सकते हो अपने किरदार से
खेलकर तीन पत्ती ताश
ख़ुलूस-ए-वफ़ा दरकिनार हुई
मोहब्बत भी तार तार हुई
ज़रूरी है जीते-जी चेहरों पे मुस्कान लाना
जीतने वाला साबित हुआ
जीत के क़रीब होता है
जीत नहीं सकता है किसी केलिए
खेल-ए-सफ़र-ए-हयात
किसीकी जीत-हार ही नहीं
मनसे हारकर कभी नहीं जीता जा सकता
जीने लगा तो बशर मर गया
जीतीहुई बाजी कोभी हमें हार जाना आ गया
मसर्रतें जीत के दीदार की
हम जीतकर भी हार जाते हैं
मन के जीते जीत
जीता सिर्फ़ सिकंदर
फैसले लोग ही लेते हैं कायर की हयात के
कहानी
जीत
मां की हँसी
हार जीत
डर के आगे जीत है
एक नए सवेरे की किताब ( एक ज़िद्द एक जीत )
लेख
हार जीत
जीत जाएंगे हम
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