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आज फिर..... - Champa Yadav (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

आज फिर.....

  • 635
  • 4 Min Read

आज फिर.....

हो गई बरसात, आँँखों से
आज फिर.....
तूने लफ्जों से, यूँँ वार किया
आज फिर.....
ठेस पहुँँचाई, दिल को तूने
आज फिर.....

घुँँट के रह गई, खुदमें !
आज फिर.....
भनक ना होने दी, दर्द को
आज फिर.....
होठों पर मुस्कान लिए, छुपा ली
आज फिर.....

कहती भी, क्यों भला?
आज फिर.....
समाज तो दोषी, मुझे ही ठहराएगा
आज फिर.....
कलंक का थप्पा तो, नारी ही ढोते आई
आज फिर.....

पुरुष तो निष्कलंक ही रहा है, हमेशा से
आज फिर.....
कहाँ करती है? नारी भी सम्मान ! नारी का
आज फिर.....
नारी ही उठाती है, नारी पर आवाज़
आज फिर.....

कौन समझेगा? दर्द को मेरे
आज फिर.....
इसलिए आँसू को छुपा ली, पानी कहकर
आज फिर.....
हाँ ! थोड़ी लाल हुई थी, आँखें
आज फिर.....

तो क्या हुआ, यही तो होता है अक्सर !
आज फिर.....

"ना हो बरसात, आँखों से *फिर कभी.....
नारी! बनो सहारा नारी का *आज से ही....."

@चम्पा यादव
13/10/20

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Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

नारी की उस विवशता को बाखूबी उकेरा है, जहां उसकी इच्छा -अनिच्छा कोई महत्व नहीं रखती।

Champa Yadav3 years ago

जी...धन्यवाद।

Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

वाह

Champa Yadav3 years ago

जी...शुक्रिया.... आदरणीय...।

Neelima Tigga

Neelima Tigga 3 years ago

शीर्षक -"भावनाओं के बारिश में भिगते "आज फिर" में फिर भी सूखती नारी की व्यथा" 1)"आज फिर' विधा कविता 2)रचना -चम्पा यादव 3) प्रकाशक -साहित्य अर्पण एक पहल 4) प्रकाशन की तिथि 13/10/20 नारी समर्पण के भावना से संसार चलाती है लेकिन उसका पति ही जब उसकी वेदना नहीं समझता तो हर पल उसके मन में उथल पुथल होते रहती है कि पति ही नहीं समझेगा तो मेरा कौन है? घर की स्त्री भी नहीं समझ रही उसके दुःख को ये भी पीड़ा मन में है Iयदि किसी के नजर में उसका दुःख आ भी जाए तो वह खुद को किसी के सामने निर्बल जताना नहीं चाहती, इसलिए आँसू को छिपाया पानी कहकर Iउद्वेलित मन को होठों पर हँसी लाकर जबरदस्ती खुश होने का प्रयत्न भी करती है I यद्यपि इस कविता में कवयित्री को क्या कहना है वो भी भ्रमित करता हैं I इधर सब से दुःख भी छुपा रही और उधर मेरा कोई नहीं यह भी कह रही है I अंत में खुद को खुद ही मजबूत करने का आग्रह भी है Iयदि रचनाकारा इसमें कोई भी एक बात पर टिकी रहती तो पढ़ने वालों का उत्साह ज्यादा रहता I एक ही शब्द को बार बार दोहराना भी उचित नहीं लगा I वैसे रचना अवश्य मन को कही ना कही कुछ सोचने पर भी मजबूर करती है I

Champa Yadav3 years ago

शुक्रिया.... नीलीमा जी आपने बहुत अच्छी समीक्षा.. की है। पर आपने रचना के अर्थ को सही से समझ नहीं पाए...अथार्त एक नारी को ना चाह के भी मजबूरन रिश्तो को निभाना पड़ता है क्योंकि हमारा समाज अभी भी नारी के प्रति उतना विकसित सोच नहीं रख पाया है...अभी भी नारी की गलती हो चाह ना हो,पर दोषी उसे ही ठहराया जाता है।....

Sarla Mehta3 years ago

जी, सही कहा आपने

Mamta Gupta

Mamta Gupta 3 years ago

स्त्री के मर्म को सरल अंदाज में बहुत ही खूबसूरती से बयां किया है।। सच मे स्त्री के दर्द को कोई नही समझ पाता है।। आपकी रचना बहुत ही सुंदर है।।

Champa Yadav3 years ago

जी...शुक्रिया... ममता.. जी..सही...कहा... आपने...।

Priyanka Tripathi

Priyanka Tripathi 3 years ago

स्त्री के मर्म को सरल अन्दाज मे खूबसूरती से व्यक्त किया है।उसकी सहनशक्ति को दबे पावं ब्यक़ किया है।तथा नारी पर प्रहार भी किया है कि नारी का दर्द नारी को समझना होगा।

Champa Yadav3 years ago

जी...बहुत.. बहुत.. शुक्रिया... प्रियंका... जी...।

Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

औरतों की मानवीय संवेदना और उनकी आंतरिक पीड़ा को मार्मिक पंक्तियों में रेखांकित किया है। एक औरत की पीड़ा को औरत ही समझ सकती है लेकिन वह भी नहीं समझती! यह सोच व्यथित करने वाली है। हृदय की पीड़ा को ना समझने का अवसाद बखूबी उकेरा है।। नारी ह्रदय के अंतर्द्वंद को दर्शाती संवेदना से परिपूर्ण रचना है। वर्तनी की अशुद्धि पढ़ने में व्यवधान उपस्थित करती है ,जैसे; घुट के स्थान पर घूंट, ठप्पा के स्थान पर थप्पा और दुख पी ली दुख पुलिंग है। टिप्पणी को कृपया अन्यथा ना लें।

Champa Yadav3 years ago

जी..शुक्रिया... मैं... आगे से ध्यान.. रखूँगी...।

Poonam Bagadia

Poonam Bagadia 3 years ago

नारी के चरित्र का काफी शशक्त वर्णन किया आपने..?? बेहद शानदार रचना है..! परन्तु मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि आज फिर.. का प्रयोग कई जगह अनावश्यक किया गया है! हर एक पंक्ति के बाद ही, कम से कम दो पँक्ति के बाद आज फिर का उपयोग किया जाता तो पढ़ने के आनंद में तरोताजगी का एहसास होता..! शब्दों का चयन काफी अच्छा है..?? अच्छी रचना हेतु बहुत बहुत शुभकामनाएं...??? ऐसे ही निरन्तर लिखते रहे और आपके अपने साहित्य अर्पण परिवार से जुड़े रहें..! शुभकामनाओ सहित धन्यवाद..!??????

Champa Yadav3 years ago

जी..शुक्रिया... सही.. कहा.. आपने...।

रानी सिंह

रानी सिंह 3 years ago

नारी ही नारी की होती है दुश्मन,ये बात है पुरानी,नारी ही नारी के दर्द को समझ सकती है ,बस समाज में लाना है कुछ बदलाव| आज भी नारी छिपा लेती है खुद के आँसू,लाल सुंदर नयन को देख पूछे कोई ,कह देती है कछरा गिर गया था कोई , वाह! रे नारी तूने क्या प्रतिभा पाई |नारी के दर्द को, उसे न मिलने वाले सम्मान से सम्बधित रचना है |?

Champa Yadav3 years ago

शुक्रिया.... रानी... जी..।

Amrita Pandey

Amrita Pandey 3 years ago

समाज में नैतिकता के दोहरे मापदंड को लेकर नारी के दर्द को महसूस कराती सशक्त रचना। नारी के स्वाभिमान को जगाने का प्रयास करती और नारी के द्वारा दूसरी नारी की मदद की आवश्यकता को महसूस कराती सुंदर पंक्तियां। हां, 'आज फिर' का दोहराव कुछ कम किया जा सकता था।

Champa Yadav3 years ago

जी...शुक्रिया... अमृता... जी...सही... कहा.. आपने...।

Champa Yadav

Champa Yadav 3 years ago

बहुत.. बहुत... धन्यवाद... आदरणीय।

Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

बढ़िया जी

Champa Yadav

Champa Yadav 3 years ago

जी..धन्यवाद.. आदरणीय।

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

बहुत अच्छा लिखा आपने आज फिर

Champa Yadav

Champa Yadav 3 years ago

शुक्रिया.... जी...साथ देने के लिये।

Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

अब फिर ऐसा नहीं

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