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Start Date 01-Jul-21
End Date 20-Jul-21
Competition Information/Details
सभी साहित्यिक स्वजनों को सादर नमस्कार..
अक्सर कुछ परिस्थितियों में कुछ लोग मजबूरियों के चलते हालात और वक़्त के सामने घुटने टेकने पर विवश हो जाते हैं परंतु वो कहते है ना.. स्वाभिमान की कभी हार नही होती
जी हाँ.. स्वाभिमान व्यक्ति का वो गहना है जिसे धारण करने पर व्यक्ति खुद के व्यक्तित्व में निखार के साथ एक मजबूती को भी कसता है
अपने स्वाभिमान से परिस्थिति हालात सब को झुका सकता है।
हमारी प्रतियोगिता का विषय भी स्वाभिमान है तो लिख भेजिए अपने अपने स्वाभिमान का जुनून अपनी कलम की जुबानी।
दिनाँक - 1 जुलाई से 10 जुलाई 2021
दिन - वीरवार से अगले शनिवार
विषय - स्वाभिमान
विधा - मुक्त
लेखन से सम्बंधित महत्पूर्ण नियम :-
1. रचनाएं विषयानुसार ही लिखे.. धार्मिक राजनैतिक भावनाओं को आहत करने वाली रचना न हो।
2. यदि रचना लम्बी है तो आप उसे भाग में विभाजित कर डाल सकते है।
3. वेबसाइट पर पोस्ट करने के उपरांत अपनी रचना या उसका लिंक सोशल मीडिया पर साझा कर सकते हैं।
4. रचना पोस्ट करने के लिए एडिटिंग ऑप्शन में इवेंट का चुनाव करना न भूले।
5. रचना के साथ चित्र कोई भी सलंग्न अवश्य करें।
आप सबकी रचनाओं का स्वागत एवं इन्तज़ार रहेगा...
सार्थक लेखन हेतु अग्रिम शुभकामनाएं....
कार्यक्रम अध्यक्ष
पूनम बागड़िया
धन्यवाद
साहित्य अर्पण कार्यकारिणी।
कवितालयबद्ध कविता
जीवन" ओ तू जरा तो साथ चल,
थामें हुए हाथों में हाथ पथ पर,
दे तो जरा हौसला, पालूं उम्मीदें,
तू संभाले रहना, जाऊँ मैं जब मचल।।
फलसफा जो बना हैं, मिटा भी सकूं,
कंकर भरे रास्तों पर कदम बढ़ा भी सकूं,
तू कर
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कहानीलघुकथा
नई जिंदगी ****
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आज पूजा बहुत देर से सोच रही थी कि वह कहां गलत थी ! रजत की कोई बात को आज तक मना नहीं करा ! आज रजत ने सारी सीमा तोड़ दीं ! शादी से अब तक वह सोचती रही कि वह सब ठीक कर लेगी । रजत के सारे दोषों
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कविताअतुकांत कविता
✍️अधूरा सा प्यार था,
खामोश कर के चला गया।।
जिंदगी का हमसफर,
यूं ही ऐसे निकल गया।।
बहुत खूबसूरत थे, वो पल
जिसमें हर चीज दफन होता चला गया।।
अब अधूरा सा रह गया हैं,
इन बदलो की तरह।।
जो
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कविताअतुकांत कविता
परछाईयाँ अगर बोल सकतीं
तो मैं उनसे जरूर पूछती
क्या तुम भी मेरी तरह
मन मस्तिष्क में उठने वाले ज्वार भाटो में
घिरी रहती हो......
अवसाद के आँगन में बैठ कर
क्या तुमने भी अपने भावों को
धूप में सुखाए है
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कविताअतुकांत कविता, लयबद्ध कविता
पंछी निराले रंगीले,
उड़ चले हवा में पंख फैलाकर।
मंजिल तक जाना था उनका,
नहीं हटे किसी से डर कर।
हौसला था मन में जाना है वहां,
अपना कर्तव्य छोड़ा नहीं संघर्ष करते रहे।
पंख टूटने
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गलती नही है मनोज जी विषय से हटी हुई लगी मुझे थोड़ा... हौसला और स्वाभिमान एक दूसरे के पूरक हो सकते है परंतु आपका स्वाभिमान रचना में खुल कर प्रदशित नही हो पा रहा..!
मनोज जी आपकी रचना बेहद उम्दा है परंतु मुझे ये थोड़ा विषय के अनुरूप नही लगी ..
😊 तब इसमें क्या गलती है । कृपा बताओ न
कविताअतुकांत कविता
मेरा स्वाभिमान
ब्याह के सात फ़ेरों के हैं
सात वचन जीवनभर के
आज से तुम्हारा घर होगा
मेरा सदा उम्र भर के लिए
थक चुकी हूँ पराया सुनते
घर मेरा तो प्यार बेटी सा
नहीं हो कोई भी भेदभाव
करूँ शिकवे माँ पापा
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