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"आसमान"
कविता
बादल
पंछी
धुंधलापन ------------------------ इस रात के घने अंधेरे में मैं देखना चाहता हूँ चारों ओर इस दुनियाँ का रंग रूप पर कुछ दिखता नहीं पर मन में एक रोशनी सी दिखती है | बस हर तरफ से नजरें हारकर बस उसकी तरफ मुड़ जाती है दिखती है वह दूर से आती हुई पर उस
मुझसे पूछो
कद
रूह आसमान में रहती है
काश यह मेरा घर होता
कभी जिये होते आकाश में
मैं आसमान तक जाकर
खुले आसमानों से जिंदगी को देखना, बहुत ही खूबसूरत सा दिखाई देता है।।
एक खुले आसमान की हवाओं की तलाश में
आसमान के पार
गुजारिश की बरसात की आसमान देखकर
कीमतों ने छुआ आसमान
टिके हैं कैसे पांव आसमान के जमीन पर
आसमान पाना चाहता है
छू कर देखूँ क्या आसमान!!
आसमानों से बाते करने लगे हैं
अंधेरों से जुगनुओं की बात होती है
खुले आसमान में जीना चाहता हूँ
सुब्ह भी दोपहर लगती है
आग बरस रही है आसमान से
आसमानों तक साथ चलने की दुवा करने में लगे हैं
हौसला हो तो आसमान कम पड़ जाता है
उठा रखा आसमान है
आज में गुज़रा हुआ कल ढूंढते हो
ज़ौक़-ए-परवाज़ केलिए खुला आसमान है
कहानी
खुला आसमान
" बादलों से घिरा आसमान "
लेख
मैं आसमानी चदरिया
मैं आसमानी चदरिया
बेटी एक पंछी
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